- एनआईटी पटना में एलुमनी मीट आयोजित

- एलुमनी मीट में गेट टुगेदर में आए विभिन्न बैच के एलुमनी

PATNA :

एनआईटी ग्राउंड पर रविवार की सुबह एनआईटी के एलुमनी जमा हुए और मिलते ही खूब किस्से-कहानियां और कैंपस से जुड़ी यादें ताजा हो गईं। बीसीई-एनआईटी एलुमनी एसोसिएशन के सदस्य अरुण कुमार सिन्हा ने बताया कि उनके 1974-78 बैच के समय से पहली बार ग‌र्ल्स कैंडिडेट की इंट्री हुई। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं था कि वे यहां पढ़ नहीं सकती थी, बल्कि तब के माहौल में इंजीनियरिंग सेक्टर में आना उनके अथक संघर्ष का परिणाम था। इसके बाद ग‌र्ल्स कैंडिडेट की संख्या लगातार बढ़ती ही गई। अरुण कुमार सिन्हा, यहां से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बार आईएएस बने और उत्तर प्रदेश में एडीशनल चीफ सेक्रेटरी के पद पर रिटायर हुए। उनके साथ उनके बैचमेट और सीनियर बैच मेट का एक बड़ा जत्था यहां मौजूद रहा।

- बीसीई-एनआईटी होना चाहिए नाम

इस दौरान बीसीई-एआईटी के वाइस प्रेसिडेंट अमरनाथ सिन्हा ने बताया कि साल भर में एक दिन होता है जब फरवरी के पहले हफ्ते में वे एलुमनी मीट के बहाने अपने कॉलेज डेज के साथियों के साथ मिलते-जुलते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में एनआईटी अन्य राज्यों में भी है और उनका पुराना नाम कायम है। जैसे भोपाल में मालवीय एनआईटी है। इसी प्रकार, पटना में भी इसका नाम बीसीई- एनआईटी ही होना चाहिए। वे इस मांग को यहां के पूर्ववर्ती छात्र और वर्तमान में सीएम नीतीश कुमार के समक्ष भी रखेंगे। ताकि इसकी जो गौरव गाथा है, शब्दों में भी वह अमिट रहे।

देश के हर हिस्से में हैं इंजीनियर

एनआईटी पटना देश के छह सबसे पुराने इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक है। वाइस प्रेसिडेंट अमरनाथ सिन्हा ने इसके गौरवशाली इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि यहां के इंजीनियर देश के विभिन्न संस्थानों में उच्च पदों पर हैं। 1974 बैच के इंजीनियर कर्नल रजनफर हुसैन ने बताया कि वे इंडियन आर्मी में कोर्प ऑफ इंजीनियर्स में तैनात थे। उन्होंने इन सर्विस एक वाक्या का जिक्र किया। बताया कि फजिलका, पंजाब में उनकी पोस्टिंग थी। तब उन्होंने रातो-रात लोहे का पुल बनाया और अचानक से मन्नवर तबी नदी के अचानक से बढ़े जलस्तर से 40 हजार लोगों की जान बचाने में सफलता पाई। इसके लिए इंडियन आर्मी से उन्हें बेहतरीन सर्विस के लिए गैलेंट्री अवार्ड दिया गया। पंजाब गर्वमेंट ने भी सम्मानित किया।

तब अलग था जॉब सेनेरियो

1974 बैच के पास आउट अरुण कुमार सिन्हा ने बताया कि आज जो स्थिति जॉब और प्लेसमेंट की है, वह पहले कुछ और ही थी। उन्होंने बताया कि उनके बैच के सभी साथियों को 1981 में बिहार सरकार ने प्लेसमेंट दिया था। इसमें 17 कैंडिडेट सिविल इंजीनियर्स के थे। तब सिविल इंजीनियर्स का जलवा था।