पटना ब्‍यूरो। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा रेणु जयंती पर आयोजित समारोह और कथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, डा मधु बर्मा ने कहा कि रेणु जी का संपूर्ण जीवन अंतहीन-संघर्ष और क्रांति की मशाल का पर्याय बन रहा। उनके अंतर मन में एक सतत क्रांति की ज्वाला धधकती रही। उनकी रचनाओं में ग्रामीणों की पीड़ा और क्रांति के सूत्र साथ-साथ दिखाई देते हैं।

स्वागत करते हुए कुमार अनुपम ने फणीश्वर नाथ रेणु जी के साथ 74 आंदोलन के दिनों में उनके सानिध्य में बिताए गए अपने संस्मरणों की चर्चा करते हुए उन्हें एक क्रांतिकारी रचनाकार बताया जो कलम छोड़ कर सड़कों पर भी लाठी झेलने के लिए तैयार रहता है।

जिनके अंदर व्यवस्था परिवर्तन के लिए एक विकल्प की तलाश की चेतना आकार ले रही थी। यही ज्वाला और समाज की पीड़ा उनके आंचलिक उपन्यासों में भी दिखती है।

चंदा मिश्र की वाणी वंदना के बाद कथाकार सागरिका राय ने उनके चर्चित उपन्यास मैला आंचल में वर्णित सामाजिक अंतर्द्वंद्व का उल्लेख किया.शालिनी पांडे ने रेणु जी की कई रचनाओं और तीसरी कसम फिल्म की चर्चा करते हुए, उन्हे अत्यंत संवेदन शील लेखक बताया।।

वरिष्ठ कवि डॉ बच्चा ठाकुर ने रेणु को प्रेमचंद के समान ही एक श्रेष्ठ उपन्यास कार बताया जिनकी वजह से आज बिहार को देश भर में प्रतिष्ठा मिलती है।