-ठंड में हर साल भूटान, नेपाल, न्यूजीलैंड और यूक्रेन समेत दर्जनों देशों से पहुंचते हैं विदेशी मेहमान

-पक्षियों में प्रजनन के लिए 4 से 10 डिग्री सेल्सियस है बेहतर

क्चङ्गन्क्त्र/क्कन्ञ्जहृन्: गंगा और गोकुल जलाशय के संगम स्थल दियारा इन दिनों साइबेरियन पक्षियों से गुलजार हो रहा है। तटीय क्षेत्रों में उड़ते साइबेरियन पक्षियों को देख बरबस नजरें खींच जाती है। साथ में उछल-कूद मचाते दुर्लभ काले हिरण इलाके की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। दियारा में हजारों एकड़ में प्राकृतिक सौंदर्य इन दिनों देखने लायक है। बक्सर और भोजपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में सात समुंदर पार से साइबेरियन पक्षियों का जत्था पहुंचा है।

साइबेरिया में पारा शून्य से नीचे

इन दिनों साइबेरिया में कड़ाके की ठंड पड़ती है और तापमान शून्य से काफी नीचे चला जाता है। ठंड से बचने के लिए हर साल हजारों पक्षी यहां प्रवास करने पहुंचते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि दिसंबर में इन पक्षियों का आगमन होने लगता है। इस साल दिसंबर के शुरू में ठंड कम पड़ने से जनवरी में पक्षियों का आगमन शुरू हुआ है। बक्सर-कोइलवर तटबंध और गंगा नदी के बीच के जंगली क्षेत्रों में पक्षियों का कलरव जारी है।

7 हजार किमी से आते हैं पक्षी

फरवरी शुरू होते ही साइबेरियन पक्षियों का लौटने का सिलसिला शुरू हो जाता है। फरवरी के दूसरे सप्ताह तक सभी यहां से चले जाते हैं। साइबेरियन पक्षी करीब 7 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पहुंचते हैं। प्राकृतिक नेविगेशन के आधार पर पक्षी कब से यहां आ रहे हैं, यह ग्रामीण भी नहीं बता पाते हैं। गांव के बुजुर्ग रामाशीष राय बताते हैं कि बचपन से इस सीजन में सइबेरियन पक्षी यहां आते देख रहे हैं। कहते हैं कि रूस, यूक्रेन चेकोस्लोवाकिया में इन दिनों तापमान माइनस 20 से 60 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। इस कारण पक्षियों के प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है।

नहीं होता कोई स्थायी घोंसला

पर्यावरणविद् त्रिपाठी बताते हैं कि साइबेरियन पक्षियों का स्थायी घोंसला नहीं होता है। वर्ष भर ये पक्षी विचरण करते है। दिसंबर-जनवरी में उत्तर-मध्य भारत के बड़े जलाशयों और नदियों के आसपास प्रवास करते हैं। इसके बाद फरवरी से अप्रैल तक नेपाल और चीन के क्षेत्रों में रहते हैं। इसके बाद इन इलाकों में गर्मी बढ़ने पर वापस साइबेरिया लौट जाते हैं। अक्टूबर के मध्य से दोबारा साइबेरियाई इलाका छोड़ने की तैयारी में जुट जाते हैं।

शिकारियों पर नजर जरूरी

विदेशी मेहमानों को देख जहां ग्रामीण खुश होते हैं। वहीं शिकारियों के दु:साहस भी जागने लगते हैं। ग्रामीण महाबत यादव बताते हैं कि जब भी कोई शिकारी इन विदेशी मेहमानों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है तो ग्रामीण उसे रोकते हैं। ऐसे में वे लोग दुर्गम और सुनसान इलाकों में बसेरा डाले पक्षियों को निशाना बनाते हैं।

इधर कावर में विदेशी पक्षियों का करवल

पारा गिरते ही कावर झील का एरिया विदेशी पक्षियों की कलरव से गुलजार होने लगा है। पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बार हजारों पक्षियां कावर पहुंच चुके हैं। लेकिन इनके दुश्मन शिकारी भी जाल बिछाने लगा है। 1 हजार से 3 हजार रुपए में इन पक्षियों को बेचा जा रहा है। कावर परिक्षेत्र के मंझौल और बखरी अनुमंडल के छौड़ाही, चेरिया बरियारपुर, गढ़पुरा के करीब 15 हजार एकड़ में झील क्षेत्र है।

जयमंगलागढ़ से लेकर पचैला तक

लो लैंड महालय, कोचालय, धनफर, नयन महल, कमल सर, गुआवारी, जयमंगलागढ, श्रीपुर एकंबा, परोड़ा, नारायणपीपर और पचेला आदि जल ग्रहण क्षेत्रों में विदेशी मेहमानों का कलरव जारी है।

लालसर से लेकर दिघौच तक

लालसर, सिल्ली, सराय, नेशनलपिट्टा, कॉमनटील, घोघिल और दिघौच आदि प्रजाजियों की पक्षियां हैं।

इन देशों से आते हैं विदेशी मेहमान

फिनलैंड, साइबेरिया, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, नेपाल, न्यूजीलैंड, रूस, यूक्रेन और चेकोस्लोवाकिया आदि देशों में पारा माइनस से काफी नीचे पहुंचने पर हर वर्ष विदेशी मेहमान कावर क्षेत्र में पहुंचने लगते हैं।

नवंबर से फरवरी तक प्रवास

तीन महीने यानी नवंबर से फरवरी तक यहां प्रवास के बाद ये विदेशी मेहमान लौटने लगते हैं।

क्या है इनका चारा

झील एरिया में धान आदि की फसल और उस पर मंडराने वाले कीट-पतंग चारा के रूप में काफी संख्या में उपलब्ध होते हैं।

यहां का मौसम साइबेरियन पक्षियों में प्रजनन के लिए मुफीद है। ये पक्षी रोजाना 100 से 110 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां आते हैं। साइबेरियन पक्षियों में प्रजनन के लिए सबसे बेहतर तापमान 4 से 10 डिग्री सेल्सियस होता है। यह माहौल यहां मिल जाता है।

-सतीश चंद्र त्रिपाठी, पर्यावरणविद्