पटना (ब्यूरो)। महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत के जिन महान त्यागियों ने अपना ऐश्वर्यपूर्ण सुखमय जीवन का त्याग कर दिया और देश-सेवा के लिए समर्पित हो गए, उनमें सेठ गोविन्द दास का नाम भी शुमार है। स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान और उसके बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी और हिन्दी साहित्य के आंदोलन को सेठ गोविंद दास का बहुत बड़ा संबल प्राप्त हुआ। हिन्दी के प्रश्न पर वे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी लड़ पड़े। इसके कारण, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का सुनिश्चित पद उनके हाथ से निकल गया। यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा। अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि तबके राजनेता अपने सिद्धांत के लिए मुख्यमंत्री पद का मोह त्याग देते थे, जैसा की हिन्दी के लिए सेठजी ने किया और आज मुख्यमंत्री बनने के लिए कोई नेता कुछ भी करने पर आमादा रहता है। एक वह भी समय था जब बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू श्रीकृष्ण सिंह विना पूर्व सूचना के साहित्य सम्मेलन आ जाते थे और सम्मेलन का सुख-दु:ख पूछ जाते थे। डॉ। सुलभ ने कहा कि सेठ जी की साहित्यिक प्रतिभा भी उच्च कोटि की थी। जयंती पर सम्मेलन के पूर्व सभापति शिवनन्दन सहाय को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि खड़ी बोली की प्रथम पीढ़ी के साहित्यकारों में उनका बड़ा ही श्रद्धेय नाम था। वे 1921 में संपन्न हुए, सम्मेलन के तीसरे अधिवेशन के सभापति थे। उन्हें हिन्दी का प्रथम जीवनीकार भी माना जाता है। प्रो। राम ईश्वर सिंह, विनय चंद्र, नारायण कुमार, अमन वर्मा, सुरेंद्र साह, नन्दन मीत, दिगम्बर जायसवाल, डौली कुमारी, रवींद्र सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित रहेे।