-वायरस के साथ बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन का कहर

-एक से अधिक संक्रमण से कमजोर इम्युनिटी वाले पेशेंट्स की हालत हो जाती है गंभीर

PATNA: पटना एम्स और आईजीआईएमएस में एडमिट पेंशेंट्स में करीब 30 परसेंट ऐसे हैं, जो कोरोना वायरस के साथ या उसके बाद सुपर इंफेक्शन से पीडि़त हैं। कोरोना के साथ बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन पेशेंट्स के लिए मुसीबत बन रहा है। डॉक्टर इसे सुपर इंफेक्शन (वायरस के साथ बैक्टीरियल, फंगल या अन्य पैथोजन से हुआ संक्रमण) नाम दे रहे हैं। सुपर इंफेक्शन के कारण पेशेंट्स न सिर्फ बेहोश हो जाते हैं बल्कि कई अंग भी काम करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति में पेशेंट्स को बचाना मुश्किल हो जाता है।

देर से दवाओं का असर

पटना एम्स और आईजीआईएमएस में एडमिट पेशेंट्स में करीब 30 परसेंट ऐसे हैं, जो कोरोना वायरस के साथ या उसके बाद सुपर इंफेक्शन से पीडि़त हैं। ऐसे पेशेंट्स पर दवाओं का असर देर से होता है। पटना एम्स के नोडल अफसर डॉ। संजीव कुमार ने बताया कि पहली लहर में जो पेशेंट्स आ रहे थे, वे सामान्यत: सिर्फ कोरोना वायरस से पीडि़त होते थे। दूसरी लहर में 30 परसेंट पेशेंट्स ऐसे थे, जो कोरोना वायरस के साथ बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन से भी पीडि़त थे। आईसीयू में भर्ती गंभीर पेशेंट्स में तो इनकी संख्या अधिक थी। ऐसे में यदि समय पर बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन की जांच कर इलाज नहीं किया जाता है तो पेशेंट्स की जान को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक वायरस का इंफेक्शन होने पर दूसरा वायरस सामान्यत: संक्रमित नहीं करता है।

ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा

डॉ। संजीव कुमार ने बताया कि कोरोना संक्रमण के गंभीर पेशेंट्स की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में आईसीयू आदि में लंबे समय से एडमिट पेशेंट्स सुपर इंफेक्शन यानी अन्य बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण की चपेट में आसानी से आ सकते हैं। सेप्टीसीमिया, ब्लैक फंगस और चेस्ट इंफेक्शन के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं। यदि पेशेंट्स की सांसें तेज हों, धड़कन बढ़ जाए, त्वचा पर चकत्ते, कमजोरी या मांसपेशियों में दर्द, पेशाब रुकना, अधिक गर्मी या ठंड लगना कोरोना के साथ अन्य संक्रमण के कारण हो सकते हैं।

खतरनाक फंगस व बैक्टीरिया

ईकोलाई

सेप्टीसीमिया

म्यूकोरमाइकोसिस

कैंडिडा फंगल इंफेक्शन

एस्परजिलस

निमोनिया

हाइपोक्सिया

क्लेबसिएला

स्टेफाइलोकोकस

स्युडोमोनाज

अलर्ट रहना जरूरी

कोरोना के इलाज के साथ लक्षणों के आधार पर अन्य संक्रमण की भी जांच कराकर उसके लिए दवा दें। हॉस्पिटल्स में उपकरण आदि को स्टरलाइज कर ही यूज करें और हाइजीन मेंटेन करें। शुगर लेवल मेंटेन रखने के साथ समय-समय पर अन्य संक्रमण की जांच कराते रहें। स्टेरायड जरूरत होने पर ही दें और इम्यूनो सप्रेसिव दवाएं बंद कर दें। कोरोना मुक्त होने के दो से तीन सप्ताह तक हेल्थ के प्रति विशेष रूप से अलर्ट रहने की जरूरत है।