PATNA CITY : चंद महीने पहले सोनमतिया (बदला नाम) के क्0 से क्भ् साल के तीन बच्चे एक-एक कर गायब हो गए। अपने जिगर के टुकड़ों से बिछड़ने वाली वह अकेली महिला नहीं है बल्कि ऐसे सैकड़ों मां-बाप और भी हैं जो आज भी अपने बच्चों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे हैं। ऐसे मामले में एक तरफ जहां पुलिस सिर्फ रिपोर्ट लिखकर खानापूर्ति कर देती है वहीं दूसरी तरफ राजधानी में कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जो माता-पिता से बिछड़े नौनिहालों को न सिर्फ सहारा देती है बल्कि उसके परिवार से मिलाने की हरसंभव कोशिश भी की जाती है। मगर दो साल तक एक भी बच्चे को गोद नहीं दिया जा सका। इसके पीछे कारण था कोर्ट से अनुमति मिलने में देरी। लेकिन हाल के दिनों में जर्मनी, बंगलुरु और कोलकाता के दंपति ने बालिकाओं को गोद लेकर मिसाल कायम की।

नियम में किया गया है बदलाव

जिला बाल सरंक्षण की सहायक निदेशक ममता झा बताती हैं कि फ्रेजर रोड में प्रयास नवजीवन और दानापुर के आनंद बाजार में सृजनी नारी गुंजन संस्था काम करता है। पहले शून्य से म् वर्ष के बच्चों को ही गोद लेने का कानून था। मगर वर्ष ख्0क्भ् में नियमावली में संशोधन हुआ। इसके बाद से 0 से क्8 वर्ष तक के बच्चों को गोद लिया जा सकता है।

क्या है गोद लेने-देने की प्रक्रिया

ममता की मानें तो म् वर्ष से ऊपर के बच्चों को उसकी फैमिली से मिलाने की कोशिश की जाती है। पहले अखबार में उसकी फोटो के साथ डिटेल्स प्रकाशित कराई जाती है और म्0 दिनों तक वेट किया जाता है। यदि कोई बच्चा म् वर्ष से बड़ा है, तो उम्मीद रहती है कि वह अपने परिवार के बारे में कुछ बता सकेगा। क्योंकि गोद देने के बाद परिवार के बारे में जानकारी मिलने पर परेशानी होती है। ऐसे में कोशिश की जाती है कि कुछ वक्त भले ही लग जाए लेकिन बच्चा अपने मूल माता-पिता के पास ही जाए। जब ऐसा नहीं हो पाता है तो नियमानुसार उसे गोद दिया जाता है।

नवजात को देते हैं वरीयता

बिहार, यूपी और झारखंड के पैरेंट्स नवजात और बेटे को वरीयता देते हें। मगर यहां 0-ख्, ख्-ब् और ब्-म् ऑप्शन सिलेक्ट करने का होता है। वैसे भी भारत में बेटा, सुंदर नाक-नक्श और कम आयु की डिमांड अधिक है। लेकिन काउंसिलिंग कर बेटी को गोद लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। वहीं दक्षिण भारत और बंगाल के लोगों की पहली पसंद फिमेल होती है।

क्या आती है परेशानी

नियम के अनुसार फेमिली कोर्ट में आवेदन देने के दिन से दो माह के अंदर आदेश निर्गत कर दिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। पिछले फ् माह में कोर्ट ने 7 आर्डर दिए हैं। आदेश के बाद बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट आदि बनवाया जाता है। इस बीच गोद लेने वाले दंपती बच्चे की शारीरिक जांच कराना चाहें तो करा सकते हैं। इसके पीछे कारण होता है कि अधिकांश बच्चे लावारिस स्थिति में मिलते हैं या कुपोषण या बीमार होते हैं। दूसरी तरफ विदेशी दंपति को बच्ची गोद देने में कोर्ट कतराता है।

कोर्ट और समाज पहल करे तो स्थिति काफी बदल सकती है। लोगों को यह धारणा बदलनी होगी कि बेटे ही सबकुछ नहीं हैं बेटियां भी नाम रौशन कर रही हैं। उन्हें तवज्जो दें। उन्हें अपनाएं।

-ममता झा, सहायक निदेशक, जिला बाल सरंक्षण

इटली के एक दंपति ने बच्ची को गोद लेने की इच्छा जताई है। बच्ची भी खुश है कि उसका लालन-पालन अब ठीक से होगा। लेकिन मामला गृह मंत्रालय के पास लंबित है।

- डेजी कुमारी, अधीक्षिका, निशांत गृह गायघाट