पटना (ब्यूरो)। अंगदान और देहदान की आशा में हजारों मरीज आधुनिक दधीचि के इंतजार में हैं। अगर हम बिहार की बात करें तो फिलहाल प्रदेश में अंगदान तो दूर देहदान से जुड़े फॉर्म को भरने और उसमें हस्ताक्षर करने से भी बच रहे हैं। ऐसा जागरूकता के अभाव की वजह से हो रहा है। लेकिन अब लोगों में इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए यूजीसी ने बड़ा कदम उठाया है। जरूरतमंदों को अंगों की उपलब्धता में भारी कमी से जूझ रहे देश में विश्वविद्यालय युवाओं को जागरूक करते हुए प्रेरित करेंगे। अंगदान जागरूकता के लिए यूजीसी ने देशभर के विवि एवं उच्च शिक्षा संस्थानों को यह जिम्मा सौंपा है। यूजीसी ने हेल्पलाइन नंबर और नियत वेबसाइट को युवाओं तक पहुंचाने के लिए कहा है ताकि युवा स्वैच्छिक रूप से अंगदान के लिए प्रेरित हों। 18 साल या इससे उपर का कोई भी व्यक्ति नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन क्र(नोटटो) वेबसाइट पर अंगदान की शपथ लेते हुए स्वयं को पंजीकृत करा सकता है। ब्रेन स्टेम डेथ की स्थिति में एक व्यक्ति आठ लोगों को दान कर सकता है। अंगदान में किडनी, लीवर, हृदय, फेफड़े, पेनक्रियाज, छोटी आंत, कॉर्निया, बोन, त्वचा व हृदय वाल्व शामिल हैं। इस स्थिति में एक ब्रेन डेड व्यक्ति अपने बाद आठ से नौ लोगों को जीवनदान दे सकता है।

ऐसे ले सकते हैं अंगदान की शपथ
इच्छुक व्यक्ति http://notto.abdm.gov.in पोर्टल पर जाकर स्वयं को अंगदान के लिए पंजीकृत करा सकते हैं। आधार नंबर दर्ज करने सहित कुछ औपचारिकताओं के बाद पंजीकरण हो जाएगा। टोल फ्र नंबर 1800114770 पर भी बात की जा सकती है।

अंगदान की शपथ में महाराष्ट्र टॉप पर
देशभर में महाराष्ट्र इकलौता ऐसा राज्य है जहां सर्वाधिक लोगों ने अंगदान की शपथ लेते हुए खुद को उक्त वेबसाइट पर पंजीकृत कराया है। एक सितंबर 2023 से 30 दिसंबर तक देशभर में एक लाख उन्नीस सौ सतरह लोगों ने अंगदान की शपथ ली है और इसमें 24 हजार केवल महाराष्ट्र से हैं।

बिहार में ऑर्गेन बैंक नहीं
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से ऑर्गेन के लिए रजिस्टर्ड मरीजों की सूची ऑनलाइन करने के निर्देश दिये थे। लेकिन बिहार में अब तक कोई काम नहीं हुआ है। आंकड़ों की बात करें तो अबतक सिर्फ 300 लोगों ने ही अंगदान किया है जबकि 115 लोगों ने ही अपना पूर्ण शरीरदान देने के लिए फॉर्म भरा है। हालांकि नेत्रदान के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि पटना के आईजीआईएमएस में काफी कम खर्च में ट्रांसप्लांट होते हैं।

वादे से मुकर जाते हैं परिजन
जिन व्यक्तियों का पंजीयन देहदान के लिए किया जाता है, उनकी मृत्यु के बाद विभाग का यह दायित्व बनता है कि परिजन से उनकी बॉडी की मांग करें, जब टीम पहुंचती है तो परिजन अपनों के वादे से फिर जाते हैं।