पटना (ब्यूरो)। गंगा के गांधी सेतु के एक बड़े हिस्से में ग्रीन जोन डेवलप करने की योजना वन एवं पर्यावरण विभाग, बिहार सरकार की है। लेकिन समस्या यह है कि किस हिस्से में पौधे लगाए जाएंगे, यह जिला प्रशासन की ओर से चिन्हित नहीं किया गया है। इस कारण वन एवं पर्यावरण विभाग की ओर से इसे जमीनी तौर पर मूर्त रूप देने में भी कठिनाई उत्पन्न हो रही है। जानकारी हो कि यह संकल्पना दूसरे प्रदेशों में ग्रीन जोन को बढ़ाने के साथ ही नदी तट क्षेत्र के कटाव को रोकने और जैव विविधता को भी बढ़ावा देने के तहत किया जा रहा है।

अधिकारियों को मिल चुका है प्रशिक्षण
दिल्ली में यमुना डायवर्सिटी पार्क है और इसे आईआईटी दिल्ली के एक्सपर्ट की टीम ने डिजाइन किया है। इस प्रोजेक्ट की विशेषताओं और कार्ययोजना आदि को समझने के लिए बिहार सरकार के वन विभाग के अधिकारियों की टीम दिल्ली विजिट कर चुकी है। सिर्फ यही नहीं, पटना में वन विभाग के ऑफिस में ऑफिसर्स की टेनिंग इन एक्सपर्ट की ओर से कराई गई है। वन एवं पर्यावरण विभाग के एडीशनल चीफ सेक्रेटरी दीपक कुमार सिंह ने बताया कि इस दौरान ऑफिसर्स को बताया गया कि कौन-कौन से पेड़ लगाएं जाएं, जो कि नदी क्षेत्र के आस-पास लगाने के लिए उपयुक्त होंगे। खास बात यह है कि दिल्ली आईआईटी, दिल्ली के एक्सपर्ट ने यमुना डायवर्सिटी पार्क वहां बनाया जो बंजर और बालू युक्त था, लेकिन आज वहां ग्रीन जोन बन चुका है। दीपक कुमार सिंह का मानना है कि जिस प्रकार से दिल्ली में यह संभव हुआ, उसी तर्ज पर पटना के गंगा क्षेत्र में भी यह किया जा सकता है।

हाइएस्ट फ्लड लेवल तक
गंगा क्षेत्र में प्लांटेशन जटिल है, क्योंकि यह बाढ़ क्षेत्र भी है। एक्सपर्ट बताते हैं कि प्लांटेशन सुरक्षित रहें इसके लिए जहां तक हाइएस्ट फ्लड लेवल जाता है, उस लेवल के पास ही यह संभव है। हालांकि कहां पौधे लगाएं जाएं, कौन से एरिया चिन्हित हैं, ये सभी जिला प्रशासन की ओर से डीसीएलआर से निर्णय लिया जाता है।

इसलिए जरूरी है नदी क्षेत्र के पास प्लांटेशन
नदी क्षेत्र में प्लांटेशन जरूरी है। जूलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ गोपाल शर्मा ने बताया कि जहां प्लांटेशन होगा, वहां नदियों का कटाव क्षेत्र सेफ हो जाता है। कम से दो-तीन साल तक पौधे बच जाएं तो मिट्टी का कटाव बच जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि पौधे ऐसे लगाये जाने चाहिए जो फलदार हो और विशाल हों। ताकि यह वाइल्ड लाइफ के लिए एक हैबिटैट हो और उन्हें फूड भी मिलता रहे। इस संबंध में एडीशनल चीफ सेक्रेटरी वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के दीपक कुमार सिंह ने बताया कि हमारी योजना है कि गंगा क्षेत्र के आस-पास ग्रीन जोन डेवलपमेंट हो। यहां बायोडवर्सिटी जोन बनाया जा सकता है। हालांकि अब तक ग्रीन जोन एरिया के लिए जमीन चिन्हित नहीं किया गया है। जमीन चिन्हित होने के बाद ही डीपीआर और अन्य गतिविधियां होंगी।