PATNA: हाईकोर्ट ने टॉपर्स घोटाला मामले में जांच को लेकर सरकार से सवाल किया है। पटना हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि इस पूरे घोटाले में डीएम को अभियुक्त क्यों न बनाया जाए। वे परीक्षा केंद्र तय करने के साथ कैमरे लगवाते हैं। आंसर शीट की जांच की सुरक्षा में भी उनकी भूमिका होती है। इसके अलावा भी अनेक प्रकार की गतिविधियों की जानकारी डीएम को होती है, लेकिन एसआइटी ने उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया। न्यायाधीश हेमंत कुमार श्रीवास्तव ने जमानत मामले पर सुनवाई करते हुए यह जानकारी ली। कोर्ट ने कहा कि डीएम को भी पार्टी बनाया जाना चाहिए था। मालूम हो कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तत्कालीन सचिव हरिहर नाथ झा एवं प्राचार्य बिशेश्वर प्रसाद यादव की जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

तो क्यों नही विरोध किया

पूर्व सचिव की तरफ से वरीय अधिवक्ता वाईवी गिरि ने कहा कि सचिव की संलिप्तता नहीं थी। सारा आदेश अध्यक्ष का चलता है। उन्होंने कहा कि सचिव ने परीक्षा केन्द्र बदलने के बारे में कोई आदेश नहीं दिया था। राजेन्द्र नगर बालिका उच्च विद्यालय के प्राचार्य की ओर से कहा गया कि वे केवल स्कूल के प्राचार्य थे, इसलिए उन्हें अभियुक्त बना दिया गया।

-लेकिन उन्हें तो जानकारी थी

इधर, अपर लोक अभियोजक अजय मिश्रा ने कहा कि एसआइटी ने जब जांच की तो पूर्व सचिव ने बताया था कि उन्हें सेंटर बदलने की जानकारी थी। घर से कम्प्यूटर एवं अन्य कागजातों को खंगाला गया था। केवल विशुनदेव राय के स्कूलों का सेंटर पटना रखा गया था। अन्य स्कूलों का केन्द्र कैमूर एवं सासाराम रखा गया था। यदि वे अध्यक्ष के फैसले से राजी नहीं थे, तो इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से करनी चाहिए थी। सुनवाई में कोर्ट ने पूछा कि अनुसंधान जब पूरा हो गया तो अभियुक्त को जेल में रखने का क्या मतलब है? ट्रायल चला कर दोषी पाए जाने पर सजा दें।