भाजपा ने बाड़मेर सीट से हाल ही में कांग्रेस छोड़ कर पार्टी में आए कर्नल सोनाराम चौधरी को प्रत्याशी बनाया है.

राजनीतिक प्रेक्षक इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और जसवंत सिंह के बीच वर्चस्व और व्यक्तित्व की लड़ाई के रूप में देख रहे है.

कभी भाजपा के शीर्ष नेताओ में शुमार किए जाने वाले जसवंत सिंह को पार्टी ने बाड़मेर से लोकसभा का टिकट देने से इनकार कर दिया था.

दिलचस्प लड़ाई

"लोगो में जसवंत सिंह के प्रति हमदर्दी का भाव है. बीजेपी ने चार दिन पहले पार्टी में आये व्यक्ति को टिकट दे दिया और जसवंत के साथ बुरा सलूक किया ,इसका असर पड़ेगा."

-जगदीश कुमार, सीमावर्ती गडरा सिटी के निवासी

लेकिन जब जसवंत ने अपनी वेदना का इज़हार किया तो पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने उन्हें कहीं समायोजित करने का प्रस्ताव रखा.

इससे आहत जसवंत ने सोमवार को बाड़मेर की जनसभा में अपने समर्थको के बीच दुखी होकर भाव से कहा, "मैं कोई मेज़ कुर्सी और फर्नीचर नहीं हूँ. मैंने कभी एडजस्टमेंट की राजनीति नहीं की."

यूँ तो कांग्रेस से बाड़मेर के मौजूदा सांसद हरीश चौधरी भी मैदान में हैं.

मगर इस चुनावी जंग में एक कर्नल और एक मेजर की मौजूदगी से लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गई है.

जसवंत सिंह ने सोमवार को बाड़मेर में अपने समर्थकों की भारी भीड़ वाली रैली को सम्बोधित किया और समर्थन माँगा.

जसवंत सिंह के फ़ैसले पर भाजपा में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ भाजपा प्रत्याशी सोनाराम जब मंगलवार को नामांकन दाखिल करेंगे तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद बाड़मेर में मौजूद रहेंगी.

नाइंसाफ़ी का आरोप

जसवंत सिंह ने जब नामांकन दाखिल किया तो उनके पुत्र और बाड़मेर से भाजपा विधायक मानवेन्द्र सिंह मौजूद नहीं थे.

इससे पहले राजे ने बाड़मेर और जैसलमेर के पार्टी विधायकों और नेताओं को शनिवार को जयपुर तलब किया था.

लेकिन मानवेन्द्र सिंह इसमें शामिल नहीं हुए. मुख्यमंत्री राजे ने अपने विधायकों को कर्नल सोनाराम का साथ देने का निर्देश दिया है.

भाजपा से टिकट न मिलने के बाद जसवंत सिंह जब अपने गृह जिले बाड़मेर पहुंचे तो उनके समर्थकों ने बड़ा जुलूस निकाला.

जसवंत के क्रोधित समर्थकों ने राजे और भाजपा के पोस्टर जलाए और पार्टी पर नाइंसाफ़ी का आरोप लगाया.

जसवंत सिंह अपने समर्थको से रूबरू हुए तो भावुक होकर कहने लगे अब भाजपा पर बाहर के लोगों का अतिक्रमण हो गया है.

भाजपा की आंतरिक लड़ाई

जसवंत सिंह की बग़ावत और 'क़िस्सा कुर्सी' का

बाड़मेर के अख़बारो में सिंह की हिमायत में छपे पोस्टरो में जसवंत सिंह को पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की तस्वीरों के साथ पेश किया गया है.

इस पोस्टरो के निवेदकों ने खुद को असली भाजपा बताया है. प्रेक्षक कहते है ये पोस्टर भाजपा की आंतरिक लड़ाई की बानगी है. इससे संकेत मिलता है पार्टी अब नए नेतृत्व के हाथों में है.

भाजपा इस अंतरकलह पर क्लिक करें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत कहते हैं भाजपा ने आडवाणी की बेक़द्री की, जसवंत को बे-टिकट किया और एक मौक़ापरस्त को टिकट दे दिया.

उधर भाजपा प्रत्याशी सोनाराम अपनी जीत के प्रति आश्वत हैं. वे राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली किसान वर्ग की एक प्रमुख जाति से आते है.

सोनाराम कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में तीन बार इस सीट से सांसद चुने गए. लेकिन 2004 के चुनावो में जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह ने उन्हें कोई ढाई लाख से भी ज़्याद वोटों से हरा दिया था.

'किस्सा कुर्सी का'

पाकिस्तान की सरहद से लगे बाड़मेर और जैसलमेर ज़िलों के विशाल भूभाग में फैले इस लोक सभा क्षेत्र में चुनाव परिणाम तात्कालिक मुद्दों के साथ जाति-बिरादरी के समीकरणों पर भी बहुत निर्भर करते हैं.

बाड़मेर में समंदड़ी के पीर सिंह कहते हैं लोग जिसकी सरकार हो उसके साथ ही रहना चाहेंगे.

मगर सीमावर्ती गडरा सिटी के जगदीश कुमार कहते है, "लोगो में जसवंत सिंह के प्रति हमदर्दी का भाव है. भाजपा ने चार दिन पहले पार्टी में आए व्यक्ति को टिकट दे दिया और जसवंत के साथ बुरा सलूक किया, इसका असर पड़ेगा."

इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक भी बड़ी तादाद में है. लेकिन वे अभी चुप्पी साधे हुए है.

सरहद के एक गाँव से मुस्लिम बिरादरी के व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर कहा इस त्रिकोणतमक लड़ाई में वे ऐसे चेहरे को वोट देंगे जो सेक्युलर हो और विकास भी कराए.

लोग भूल गये कभी 'किस्सा कुर्सी का' फ़िल्म बनाने वाले स्वर्गीय अमृत नाहटा दो बार बाड़मेर से सांसद रहे हैं. नाहटा तो अब दुनिया मे नहीं रहे मगर उनके इस पुराने चुनाव क्षेत्र में राजनीति के मंच पर 'किस्सा कुर्सी' का अब भी मंचित हो रहा है.

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