समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं को बताया, "डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) एक अपील दाख़िल करने जा रही है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ (सुप्रीम कोर्ट में) में एक अपील दाख़िल की जाएगी."
डीओपीटी सीबीआई का प्रशासनिक कामकाज देखता है. पीटीआई के मुताबिक सिब्बल ने कहा कि डीओपीटी ने इस मसले पर उनसे चर्चा की है और उसके बाद एक अपील दाख़िल करने का निर्णय हुआ.
इससे पहले गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया था, जिसके आधार पर सीबीआई का गठन किया गया था. इसके साथ ही गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सीबीआई की सारी कार्रवाइयों को 'असंवैधानिक' बताया है.
प्रधानमंत्री से चर्चा
"डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) एक अपील दाख़िल करने जा रही है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ (सुप्रीम कोर्ट में) एक अपील दाख़िल की जाएगी."
-कपिल सिब्बल, क़ानून मंत्री
इससे पहले शुक्रवार को कार्मिक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने इस मसले पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाक़ात की.
अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने पीटीआई को बताया, "फ़ैसला साफ़तौर पर ग़लत है...हम निश्चित रूप से इसे चुनौती देने जा रहे हैं और सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील दाख़िल की जा सकती है."
गुवाहाटी हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष मल्होत्रा ने ही रखा था.
न्यायमूर्ति आईए अंसारी और इंदिरा शाह की खंडपीठ ने यह फ़ैसला नावेन्द्र कुमार की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया. नावेन्द्र ने सीबीआई के गठन करने वाले प्रस्ताव को चुनौती दी थी.
मल्होत्रा ने दलील दी कि सीबीआई के गठन के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में सही ठहराया गया है.
फैसले की वज़ह
पीटीआई रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि सीबीआई के गठन के लिए "गृह मंत्रालय का प्रस्ताव न तो केंद्रीय कैबिनेट का फ़ैसला था और न इन कार्यकारी निर्देशों को राष्ट्रपति ने अपनी मंज़ूरी दी थी."
अदालत ने आगे कहा, "संबंधित प्रस्ताव को अधिक से अधिक एक विभागीय निर्देश के रूप में लिया जा सकता है, जिसे क़ानून नहीं कहा जा सकता."
पीटीआई के मुताबिक अदालत ने आगे कहा, "मामला दर्ज करने, किसी व्यक्ति को अपराधी के रूप में ग़िरफ़्तार करने, जांच करने, ज़ब्ती करने, आरोपी पर मुक़दमा चलाने जैसी सीबीआई की गतिविधियां संविधान के अनुच्छेद-21 को आघात पहुंचाती हैं और इसलिए उसे असंवैधानिक मानकर रद्द किया जाता है."
संविधान का अनुच्छेद-21 व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है.
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