इसीलिए भारत और चीन के बीच आपसी व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है जबकि भारत चीन का 15वां सब से बड़ा व्यापारिक भागीदार.

साल 2012 में चीन और भारत के बीच आपसी व्यापार 66 अरब डॉलर का था. चीन ने भारत को लगभग 48 अरब डॉलर का सामान बेचा.

वहीं भारत ने चीन को केवल 18 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया.

दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध मुख्य रिश्ते का आधार है. दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं दुनिया की बड़ी अर्थव्यस्थाओं में गिनी जाती हैं.

दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते की शुरुआत साल 1978 में हुई,लेकिन साल 2000 में आपसी व्यापार केवल तीन अरब डॉलर का था, जो साल 2011 में बढ़ कर 73 अरब डॉलर का हो गया.

सुविधाएं

भारत पर क्यों भारी है चीन?

पिछले साल दोनों देशों की लीडरशिप ने इसे साल 2015 तक बढ़ा कर 100 अरब डॉलर तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है.

लेकिन व्यापारिक संतुलन चीन के पक्ष में है. पिछले साल चीन ने 29 अरब डॉलर का सामान भारत से अधिक निर्यात किया.

 

सुनील कुमार सेठ रजाई बनाने वाली मशीनें चीन से आयात करते हैं. वो कहते हैं, "चीन हर मामले में भारत से 50 साल आगे है. मैं जब चीन जाता हूँ तो हमें नज़र आता है कि भारत चीन से कितना पीछे है. हमारे यहाँ बिजली और पानी तक की कमी है जब कि वहां कारखानों को हर तरह की सुविधाएं मौजूद हैं."

जे के भल्ला बिजली घर बनाने वाली चीनी कंपनियों के भारतीय एजेंट हैं और इसके अलावा वो चीन से कई तरह का माल भी आयात करते हैं.

वो कहते हैं, "चीन में कुशल श्रमिकों को नौकरियां ट्रेनिंग के बाद मिलती है. इस कारण उनका सामान हम से बेहतर होता है. भारत में कोई भी बढ़ई बन सकता है कोई भी सुनार बन सकता है."

व्यापारिक भागीदार

भारत पर क्यों भारी है चीन?

मेड इन चाइना सामान की भारत में खपत से चीनी कंपनियां और भी सामान निर्यात करने की योजना रखती हैं.

भारत की कंपनियां चीनी कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पा रही हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों देशों के बीच व्यापार तेज़ी से बढ़ तो रहा है लेकिन अगले दो सालों में 100 अरब डॉलर का लक्ष्य पूरा करना मुश्किल नज़र आता है.

जे के भल्ला इसका ज़िम्मेदार भारतीय निर्यात को मानते हैं. "अगर ये लक्ष्य पूरा करना है तो भारत को निर्यात बढ़ाना होगा. नए क्षेत्रों में चीन से सहयोग करना होगा."

लेकिन सुनील कुमार सेठ के अनुसार वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण दोनों देश आपसी व्यापार का लक्ष्य साल 2015 तक पूरा नहीं कर सकते.

लेकिन इसके बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना रहेगा.

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