लग रहा है अनुमान

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि खासतौर पर घरेलू उत्पादन में कमी आने के चलते दालों की कीमतें बढ़ी हैं. वहीं मानसून की बात करें तो यह लगातार दूसरा साल होगा जब खराब मानसून की भविष्यवाणी अभी से कर दी गई है. ऐसे में इस तरह की भविष्यवाणियों के सरकार MMTC जैसी सरकारी ट्रेडिंग फर्मों के जरिये दालों के आयात को लेकर मन बना रही है. इस आयात का मकसद सिर्फ और सिर्फ घरेलू आपूर्ति में बढोतरी करना है. इस तरीके से खुदरा कीमतों को भी बढ़ने से रोका जा सकेगा.

कुछ ऐसा कहते हैं मंत्रालय से प्राप्त आंकड़े

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो सामने आता है कि बीते एक साल के अंदर उड़द की दाल सबसे ज्यादा महंगी हुई है. इसके अलावा अरहर, मसूर, चना और मूंग की दालों के भाव भी काफी बढ़ गए हैं. वहीं सरकार से प्राप्त ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो अप्रैल के महीने में उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर घटकर महज चार महीने के सबसे निचले स्तर 4.87 फीसद पर पहुंच गई है.

कुछ ऐसे बढ़े दाम

वहीं दालों के अलावा दूसरी ओर गौर करें तो सामने आता है कि इसके विपरीत कई खाद्य वस्तुओं की कीमतों में नरमी आई है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से प्राप्त आंकड़े दिखाते हैं कि दालों के दामों में खासी बढ़ोतरी हुई है. इसकी कीमतों पर गौर करें तो अभी महानगरों में उड़द की दाल 105 से 123 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जा रही है. बीते साल इसी दाल की कीमत महज 64 से 80 रुपये प्रति किलो थे.

अन्य दालों की यह है हालत

वहीं तुअर और अरहर की दाल की कीमत 53 फीसद बढ़त के साथ 102-116 रुपये प्रति किलो हो गई है. बीते साल इसकी कीमत 68-86 रुपये प्रति किलो हुआ करती थी. मसूर की दाल की कीमत में 40 फीसद की तेजी आई है. अब यह दाल 80 से 94 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है. इसी कीमत बीते वर्ष 60 से 75 रुपये प्रति किलो हुआ करती थी. मूंग के दाम की कीमत में भी 26 फीसद का इजाफा हो गया है. इसकी कीमत बढ़कर अब 107 से 116 रुपये हो गई है. विशेषज्ञों की मानें तो दलहनों की खेती बारिश से सिंचित क्षेत्रों में होती है. सामान्य तौर पर कम मानसून के चलते फसल 2014-15 के दौरान घरेलू उत्पादन में कमी के चलते दालों की कीमतों में तेजी आई है.

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