आगरा (ब्यूरो)I सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज की ब्लड बैैंक में एंटीबॉडीज को लेकर स्टडी चल रही है.इसमें अब तक वैक्सीन लगवाने के बाद छह माह तक की फाइंडिंग्स सामने आई हैैं. इसमें पता चला है कि जिन लोगों को पहले कोविड-19 का संक्रमण हो चुका है, उनमें एंटीबॉडीज भरपूर मात्रा में बन रहे हैैं. जबकि जिनको कोविड नहीं हुआ है, उनमें कोविड पॉजिटिव हो चुके लोगों की अपेक्षाकृत कम एंटीबॉडीज बने हैैं.

पड़ सकती है बूस्टर डोज की जरूरत
आगरा में जनवरी से स्वास्थ्य कर्मियों को कोविड वैक्सीनेशन की शुरूआत की गई थी. इसके बाद फ्रंटलाइन वर्कर्स का नंबर आया. इनमें पुलिसकर्मी, नगर निगम, प्रशासन समेत कई विभागों के अफसर और कर्मचारी शामिल थे. जनवरी-फरवरी में इन कोविड योद्धाओं को वैक्सीन लगाई गई. दुनियाभर में हुई अभी तक की स्टडी के अनुसार कोविड वैक्सीन लगभग नौ महीने से एक साल तक मजबूती से बचाव करता है. हालांकि वास्तव में इसका कितना असर रहेगा. इसको लेकर अभी स्टडी जारी हैैं.

बी-सेल बनाती हैैं एंटीबॉडीज
शरीर की बी-सेल एंटीबाडी बनाती है. जबकि टी-सेल प्रतिरोधक क्षमता को इतना बढ़ाते है कि वायरस इसके सामने टिक नहीं पाता. यूं कहें कि टी-सेल वायरस को खा जाते हैं. लिहाजा एंटीबाडीज के साथ टी-सेल इम्यूनिटी की जांच करना भी जरूरी है. एंटीबाडी के साथ वायरस से बचाव के लिए मजबूत टी-सेल भी बहुत जरूरी हैं.

"कोरोना वायरस से लडऩे वाली एंटीबॉडीज के लिए हम डाटा कलेक्शन कर रहे हैैं. अभी तक हमें छह महीने तक की फाइंडिंग्स मिली हैैं. इसमें उन लोगों को ज्यादा एंटीबॉडीज बनी हैैं, जिनको पहले कोविड का संक्रमण हुआ है. हम अभी वैक्सीन लगने के 300 दिन बाद की फाइंडिंग्स के लिए भी सैैंपल्स लेकर जांच के लिए भेजेंगे."
- डॉ. नीतू चौहान, ब्लड बैैंक प्रभारी, एसएनएमसी