- पैसेंजर्स के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं डग्गामार बसें

- प्रदेश के प्रवर्तन दस्तों ने अपनी जेब भरने के लिए दे रखी है इन्हें छूट

- पॉलीटेक्निक, शहीद पथ, कानपुर रोड के साथ ही कई जगहों से हो रहा है डग्गामार बसों का संचालन

LUCKNOW: एक तरफ राजधानी में शनिवार से नेशनल रोड सेफ्टी वीक की शुरुआत हुई, वहीं दूसरी ओर डग्गामार बसें ही इस सेफ्टी वीक की हवा निकालते दिखाई दीं। कन्नौज में हुए बस हादसे के बाद भी परिवहन विभाग ने अपनी आंखे बंद कर रखी हैं। विभागीय अधिकारियों के पास ऐसा कोई प्लान नहीं है कि वह इन डग्गामार बसों पर अंकुश लगा सकें। विभागीय अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई तो उनका कहना था कि हम प्रयास कर रहे हैं। यह आलम तब है जब पिछले कई वर्षो से डग्गामार बसें पैसेंजर्स के लिए मौत का दूत बनी हुई हैं।

हादसा होने पर ही चलता अभियान

परिवहन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि लखनऊ में डग्गामार बसों के खिलाफ अभियान नहीं चलता है। किसी तरह का हादसा होने पर एक-दो दिन अभियान चलाकर काम पूरा कर लिया जाता है। अपनी जेब भरने के लिए राजधानी ही नहीं प्रदेश भर के आरटीओ ऑफिस के प्रवर्तन दस्ते इन वाहनों की तरफ रुख भी नहीं करते। राजधानी में तीन जगह से रोजाना डग्गामार बसों का संचालन किया जाता है, लेकिन आज तक इस पर अंकुश नहीं लग सका। डग्गामार बसों का सबसे बड़ा अड्डा पॉलीटेक्निक चौराहा है। यहां पर इन बसों को हटाने के लिए आठ विभाग एक जुट हुए। परिवहन निगम के एमडी ने इसके लिए सभी विभागों को मिलकर प्रयास करने के निर्देश दिए थे, लेकिन सब बेकार।

चालान भरने के बाद फिर शुरू कर देते हैं सफर

इसी तरह से कानपुर रोड, शहीद पथ के पास और चारबाग से डग्गामार बसों का संचालन होता है, लेकिन कहीं किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती है। डग्गामार बसों के अधिकारी कहते हैं कि प्रवर्तन दस्ते जो चालान करते हैं, हम उसको भर देते हैं, लेकिन बस खड़ी नहीं करते। इसमें हमारा नुकसान हो जाता है। ऐसे में बस चलती रहती है। डग्गामार बसों के संचालकों का मानना है कि यदि संचालन नहीं होगा तो पब्लिक को सुविधा नहीं मिलेगी। इस समय प्रदेश में डग्गामार बसों का कारोबार रोजाना दस करोड़ से ऊपर का है। एक बस ही रोजाना एक लाख रुपए से अधिक की आय हासिल करती है।

कोट

डग्गामार बसों के खिलाफ नियमित अभियान चलता है। चालान होने पर वह धनराशि जब्त कर देते हैं। उसके बाद फिर वह रोड पर दौड़ने लगते और हम फिर उनका चालान करते हैं। इसके लिए हमें नियमों में बदलाव की जरूरत होती है।

वीके सिंह

अपर परिवहन आयुक्त प्रवर्तन

परिवहन विभाग

डग्गामार बसों के चालान के लिए निर्देश दिए गए हैं। लगातार तीन बार से अधिक डग्गामार बस मिलने पर उसका परमिट भी निरस्त करने के लिए कहा जा चुका है।

धीरज साहू

परिवहन आयुक्त

जानकारी में आया है कि कई लोग ऑनलाइन जाकर अपने टिकटों की बुकिंग पैसेंजर्स के लिए उपलब्ध कराते हैं। ऐसे में आधा दर्जन कंपनियों के खिलाफ एफआईआर कराने के साथ ही इनकी जांच के आदेश दिए गए हैं।

एके पांडेय

अपर परिवहन आयुक्त राजस्व

बॉक्स

परिवहन विभाग और निगम ने दो दिन अभियान चला कर चंद बसों के खिलाफ एक्शन लेकर अपनी पीठ खूब थपथपाई। यह मान लिया गया कि प्रदेश में अब डग्गामार बसों का संचालन खत्म हो गया। कहां कितनी बसों का चालना हुआ और कितनी बंद हुई, इसका ब्यौरा भी जारी कर दिया गया।

11 और 12 दिसंबर को चलाया था अभियान

2 दिन चला अभियान

228 बसों की चेकिंग पहले दिन

167 बसों का चालान पहले दिन

53 बसें बंद की गई पहले दिन

1000 बसों की चेकिंग दूसरे दिन

398 बसों का चालान दूसरे दिन

117 बसों को दूसरे दिन बंद किया

बॉक्स

नहीं मिलता पुलिस का सपोर्ट

परिवहन विभाग के अधिकारियों के अनुसार हम लोग अभियान चलाने से भी डरते हैं। हमारे पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है। पुलिस से हेल्प मांगने पर उनका सपोर्ट नहीं मिलता है। वह अन्य कार्यों में व्यस्त रहती है। ऐसे में अकेले ना तो किसी बस को रोका जा सकता है और ना ही एक्शन लिया जा सकता है। कई बार डग्गामार बस संचालक लड़ाई झगड़े पर उतारू हो जाते हैं।

कई बार हो चुके हैं हादसे

- वर्ष 2014 में यूपी रोडवेज की बस में आग लगने से 23 यात्री मरे थे। बस में यह आग हाइवे पर ट्रक से बस भिड़ने के बाद लगी थी। बस में 40 से ज्यादा यात्री सवार थे। बाकी यात्री आग में झुलस गए थे।

- दिसंबर 2019 में उन्नाव में दो बार प्राइवेट बस पलटी। इनमें 20 से अधिक पैसेंजर्स घायल हुए।

- 31 अक्टूबर 2019 को जानकीपुरम में डग्गामार बस ने रोड किनारे सो रहे लोगों को कुचल दिया। दो बच्चों की मौत हो गई और सात लोग घायल हो गये।

- पिछले साल दिल्ली जा रही रोडवेज बस यमुना एक्सप्रेस वे के पास पुल से नीचे गिर गई, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई

- दो साल पहले भदोही में स्कूली बस ट्रेन से जा भिड़ी। इसमें आठ बच्चे की मौके पर मौत हो गई।

- कुशीनगर में स्कूली वैन एक्सीडेंट में एक दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गई।