- डॉक्टर्स व अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए जानिए अपने राइट्स

- स्वास्थ्य का अधिकार है आपका मौलिक अधिकार

केस- 1

23 जून 2016 को चिलुआताल एरिया की जंगल महेवा उर्फ मोहम्मदपुर टोला गगरखा निवासी चंद्रिका की 32 वर्षीय पत्नी रुना देवी की डिलीवरी होनी थी। परिजनों ने उसे चरगांवा स्वास्थ्य केंद्र में एडमिट कराया। डॉक्टर ने उसकी हालत देख मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। गायत्री देवी व सविता शर्मा 102 नंबर एंबुलेंस से मेडिकल कॉलेज पहुंचीं। वहां से महिला को गायनी इमरजेंसी में भेजा गया। आधा घंटा चेकप के बाद डॉक्टर ने एडमिट करने से इनकार कर दिया। परिजनों का कहना था कि डॉक्टर्स ने भद्दी बातें कही। बोला कि सड़े-गले मरीज का इलाज यहां नहीं किया जाएगा, उसे कहीं और ले जाओ।

केस - 2

पांच अक्टूबर 2016 को देवरिया के लार वरदहिया की रहने वाली हजरुन निशा (35 साल) इलाज कराने बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचीं। 25 जून को दो पक्षों के बीच विवाद में हुई फायरिंग के दौरान उनके कंधे में गोली लग गई थी। इलाज के बाद वह तो ठीक हो गई, मगर गोली अब भी कंधे में फंसी रह गई थी। इसे निकलवाने के लिए जब वे मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में पहुंचीं तो डॉक्टर ने बिना इलाज किए ही दूसरी जगह जाने की सलाह दे दी। इससे नाराज महरुन सीधे सीएमएस कार्यालय पहुंचीं और शिकायत की। सीएमएस ने महिला से बात की और बुधवार को ओपीडी में दिखाने का आश्वासन देकर शांत कराया।

यह केस तो एग्जाम्पलभर हैं, मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल के अलावा शहर के दूसरे अस्पतालों में मरीजों के साथ अक्सर ऐसा मिसबिहैव किया जाता है। कई बार तो हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन मरीजों को एडमिट करने से ही इनकार कर देता है। मगर, यदि आप अपने अधिकार के लिए डट जाएं तो न तो डॉक्टर इलाज से मना कर सकते हैं और न ही अस्पताल आपको एडमिट करने से इनकार कर सकता है। स्वास्थ्य हमारा मौलिक अधिकार है। इसकी उत्पत्ति संविधान में अनुच्छेद 21 में दिए गए जीने के अधिकार से होती है।

डॉक्टर्स की है जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट का साफ निर्देश है कि अगर कोई भी व्यक्ति नाजुक हालत में हॉस्पिटल पहुंचता है, तो सरकारी हो या प्राइवेट हॉस्पिटल्स, उनके डॉक्टर्स की जिम्मेदारी है कि मरीज को तत्काल फ‌र्स्ट एड मुहैया कराए। वहीं जो व्यक्ति मरीज को लेकर हॉस्पिटल पहुंच रहा है, उसे न तो हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन परेशान कर सकता है और न ही पुलिस। उन्हें हर हाल में उसका इलाज करना पड़ेगा। अगर ऐसा करने से डॉक्टर्स या जिम्मेदार इनकार करते हैं, तो शहर के सीएमओ या डीएम से इसकी शिकायत की जा सकती है।

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यह है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन अपने यहां नियुक्त डॉक्टर्स और एंप्लाइज की लापरवाही के लिए जिम्मेदार होगा। पेशेंट्स के पेरेंट्स, कंज्यूमर्स की तरह मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजा पाने के अधिकारी होंगे। कोई भी कंसल्टेंट अपने जूनियर को अगर बिना उनकी काबिलियत जाने अपना काम करवाता है, तो यह लापरवाही होगी। मरीज के सवालों के प्रति डॉक्टर्स और उनका स्टाफ उत्तरदायी है। डॉक्टर्स दवाइयों के नाम पूरा और साफ तरीके से लिखेंगे ताकि मरीज को समझने में आसानी हो। नर्सिग स्टाफ टे्रंड होना चाहिए और उन्हें मेडिकल की वर्तमान जानकारी होनी चाहिए। मरीजों के लिए डॉक्टर्स, नर्स और हॉस्पिटल के दूसरे कर्मचारियों का नजरिया मानवीय होना चाहिए, फायदा हासिल करने वाले व्यवसाय की तरह नहीं होना चाहिए।

यह हैं आपके अधिकार

- आपको सम्मान सहित सुरक्षित इलाज पाने का अधिकार है।

- आपको इलाज ठुकराने का अधिकार है।

- आप किसी को अपनी बात कहने का अधिकार दे सकते हैं।

- गोपनीयता का अधिकार है।

- आपके पास अपने रिकॉर्ड गुप्त रखने का अधिकार है।

- आपको अपना मेडिकल रिकॉर्ड रिव्यू करने का अधिकार है।

- आपको जबतक दूसरा अस्पताल स्वीकार नहीं करता, आपको रेफर नहीं किया जा सकता।

- आपको अस्पताल से बाहरी लोगों के जुड़े होने वाले लोगों को जानने का अधिकार है।

- आपके ऊपर होने वाली रिसर्च से आप इनकार कर सकते हैं।

- आपको अस्पताल की हकीकत जानने का अधिकार है।

- अस्पताल के नियम और शर्ते जानने का आपको अधिकार है।

- पोस्टमॉर्टम करने वाले के बारे में जानने का अधिकार है।

- आपको हर तरह के शोषण से दूर रखे जाने का अधिकार है।

- अपने डॉक्टर के बारे में जानने का अधिकार है।