लखनऊ (ब्यूरो)। संजय गांधी पीजीआई में जल्द ही प्रदेश भर में बढ़ रही बीमारियों को लेकर जागरूकता से लेकर ट्रीटमेंट तक में मदद करेगा। इसके लिए संस्थान में नया विभाग पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट शुरू होने वाला है। जहां डॉक्टर टेलीमेडिसिन की मदद से हेल्थ ऑफिसर को बीमारी से लेकर ट्रीटमेंट तक में अपडेट करेंगे। वहीं, जरूरत पड़ने पर मरीज को संस्थान रेफर किया जा सकेगा।

हेल्थ आफिसर्स को करेंगे अपडेट

निदेशक प्रो। आरके धीमन ने बताया कि प्रदेश में थैलेसिमिया, कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, फैटी लिवर, पार्किंसंस जैसी बीमारियां लगातार बढ़ रही है। इसको लेकर अभी कम्युनिटी में ज्यादा जागरूकता नहीं है, जिसके कारण मरीजों को यहां वहां भटकना पड़ता है। इसी को देखते हुए संस्थान में पब्लिक हेल्थ विभाग शुरू करने जा रहे है। जिसके तहत कम्युनिटी में सहायता, अवेयरनेस को लेकर काम किया जाएगा। साथ ही टेलीमेडिसिन की मदद से डिस्ट्रिक्ट लेवल पर हेल्थ ऑफिसर्स को इन बीमारियों के प्रति जागरूक करने से लेकर ट्रीटमेंट तक में मदद करेंगे।

जनता तक पहुंचने का काम करेंगे

निदेशक प्रो। धीमन ने आगे बताया कि इसके अलावा पब्लिक आउटरीच प्रोग्राम भी चलाया जाएगा। जिसके तहत दूर-दराज के इलाकों में डॉक्टर्स की टीम जाकर मेडिकल कैंप के साथ अवेयरनेस का काम करेगी। क्योंकि अब शहर के साथ गांव के लोगों में भी मोटापा, फैटी लिवर व कैंसर जैसी बीमारियां लगातार बढ़ रही है। विभाग को 2-3 महीने के अंदर शुरू कर दिया जाएगा। वहीं, विभाग में 8-10 लोगों की टीम रहेंग, जिसमें डॉक्टर्स, रेजिडेंट््स के साथ अन्य स्टाफ भी होगा।

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बार-बार ब्लड चढ़ाने से बढ़ जाता है आयरन लेवल

थैलेसीमिया के मरीजों में आयरन ओवरलोड होने की समस्या होती है। यह समस्या बार-बार रक्त चढ़ाने से होती है, जिसके कारण इसका असर शरीर के दूसरे अंगों पर पड़ता है। यह जानकारी उड़ीसा से आये डॉ। आरके जेना ने उप्र हेमेटोलॉजी ग्रुप के तत्वावधान में रविवार को अटल बिहारी बाजपेयी कन्वेंशन सेंटर में केजीएमयू में प्रथम एनुवल कॉन्क्लेव के दौरान दी।

ज्यादा आयरन से शरीर को नुकसान

डॉ। जेना ने आगे बताया कि जिन लोगों में हीमोग्लेाबिन डिफेक्टिव रहता है। उनमें शुरू से खून नहीं बनता है। ऐसे में बार-बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है। जो माह में दो-तीन बार तक करना पड़ता है। वहीं, दस यूनिट से ज्यादा ब्लड चढ़ जाता है तो साथ में आयरन कलेक्ट होता रहता है। जो शरीर के अंगों में जैसे लिवर, हार्ट और ब्रेन में कलेक्ट होने लगता है। जिससे इन अंगों को नुकसान पहुंचता है। पर अब कई ऐसी ड्रग्स आ गई हैं, जिनके यूज से अतिरिक्त आयरन यूरीन या स्टूल द्वारा निकल जाते हैं।

मरीजों की पहचान बेहद जरूरी

पीजीआई चंडीगढ़ से आईं डॉ। रीना दास ने बताया कि रक्त टूटने वाले रोग जन्मजात होते हैं। उनकी पहचान करना मुश्किल होता है। यह समस्या कंजेनाइटल एनीमिया कहलाती है। इसमें रेड सेल के मेमब्रेन, एनजाइम या फिर हीमोग्लोबिन में गड़बड़ी होने से होती है, जिसके कारण रक्त समय से पहले टूटने लगते है, जबकि ब्लड सेल की उम्र 120 दिन की होती है। वहीं, आयोजन सचिव डॉ। एसपी वर्मा ने बताया कि सेमिनार के दूसरे दिन प्रथम सत्र में राज्य के संस्थानों में हेमेटोलॉजी में पीजी कर रहे चिकित्सकों ने भाग लिया। जिसमें बीएचयू की टीम ने प्रथम, आरएमएल की टीम ने दूसरा और एमएलएन प्रयागराज की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। विजेताओं को वीसी प्रो। सोनिया नित्यानंद द्वारा पुरस्कृत किया गया।