सीए बनने का था सपना

28 दिसंबर साल 1952 को नई दिल्ली में जन्में अरुण जेटली बचपन से ही कुछ अलग करने का सपना था। वह सीए बनना चाहते थे। पढ़ने में काफी तेज अरुण जेटली ने दिल्ली के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से इकोनॉमिक्स में स्नातक की पढ़ाई की। इतना ही नहीं इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी ली है।

छात्र संघ के अध्यक्ष बने

अरुण जब दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे तभी से राजनीतिक सफर शुरू हो गया था। यह सबसे पहले छात्र संघ के अध्यक्ष बने थे। वे अखिल भारती विद्यार्थी परिषद में दिल्ली ईकाई और अखिल भारतीय अध्यक्ष भी बने थे। देश में अपातकाल के समय इन्होंने एक खास भूमिका निभाई थी। इन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

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सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील

आज सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकीलों में गिने जाने वाले अरुण जेटली ने 1977 से प्रैक्टिस शुरू की थी। साल 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के समय अरुण जेटली इसके यूथ विंग का अध्यक्ष बनाए गए थे। एक सक्रिय युवा नेता के रूप में इन्होंने भारतीय जनता पार्टी में एक खास भूमिका अदा की है।  

बच्चे भी चले पिता की राह

अरुण जेटली बेहद गंभीर स्वभाव के व्यक्ति माने जाते हैं। अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को संगीता जेटली से शादी की थी। संगीता जेटली स्वर्गीय गिरधारी लाल डोगरा की बेटी हैं। आज अरुण जेटली के एक बेटी सोनाली और एक बेटा रोहन हैं। इनके बच्चों ने भी अपने पिता की तरह ही वकालत के पेशे को अपनाया।

बजट में शायराना अंदाज

अरुण जेटली को शेरो शायरी का बेहद शौक है। उनका ये अंदाज तीन सालों से बजट पेश करते समय देखने को मिला है। कई बार उन्होंने शायरियों के बल पर ही विपक्ष पर काफी अच्छे से तंज कसा है। अपनी इन शायरियों को लेकर अरुण जेटली काफी चर्चा में भी रह चुके हैं।

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साल 2017 के बजट पेशकश में ये जेटली ने पढ़ी ये शायरी....

इस मोड़ पर घबरा कर न थम जाइए आप,

जो बात नई है अपनाइए आप,

डरते हैं क्यों नई राह पर चलने से आप,

हम आगे आगे चलते हैं आइए आप,

साल 2016 में बजट पेश करते समय जेटली ने पढ़ी थी ये शायरी...

कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें,

लहर लहर तूफान मिलें और मौज-मौज मझधार हमें,

फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको,

इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें

2015 में भी बजट पेश के दौरान जेटली की शायरी ने खींचा था ध्यान...

कुछ तो फूल खिलाये हमने

और कुछ फूल खिलाने हैं,

मुश्किल ये है बाग में

अब तक कांटें कई पुराने हैं।

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