जीवों की दुनिया में केवल स्तनधारी जीव ही अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, जिनमें मनुष्य भी शामिल हैं। इसे 'असली' दूध कहा जाता है।

लेकिन स्तनधारी जीव के अलावा कुछ दूसरे जीव भी अपने बच्चों के लिए दूध की तरह का तरल पदार्थ स्रावित करते हैं, जो दूध जैसा होता है।

हालांकि ये दूध दिखने में गाय के दूध या मानव दूध जैसा नहीं होता और न ही वो उस तरह से पैदा होता है।

बावजूद इसके यह काम दूध की तरह ही करता है, यानी बच्चों के पोषण का काम करता है।

चलिए बताते हैं अपने बच्चों को 'दूध' पिलाने वाले इन जीवों के बारे में।

कबूतर

कबूतर,कॉकरोच भी बच्चों को पिलाते हैं 'दूध'

कबूतर अपने बच्चों के पोषण की ज़िम्मेदारी के बारे में काफी गंभीर होते हैं। स्तनपायी जीवों में केवल मादा ही अपने बच्चों को स्तनपान करा सकती है लेकिन कबूतर में नर-मादा दोनों अपने बच्चे को 'दूध' पिला सकते हैं।

कबूतरों की गर्दन में थैली जैसी बनावट होती है, जिससे तरल पदार्थ निकलता रहता है। इसे क्रॉप मिल्क भी कहते हैं। अंडे से चूज़े के निकलने के बाद कबूतर उन्हें इसी थैली से 'दूध' पिलाते हैं।

इसमें काफी ज़्यादा प्रोटीन और वसा होता है। 1952 में एक अध्ययन के दौरान जब चिकेन को ये पिलाया गया तो उनकी ग्रोथ 38 फ़ीसदी तक बढ़ गई।

फ़्लेमिंगो और एम्परर पेंग्विन जैसे जीवों में भी क्रॉप मिल्क पाया जाता है।

कॉकरोच

कबूतर,कॉकरोच भी बच्चों को पिलाते हैं 'दूध'

कुछ कॉकरोच भी अपने नवजात शिशुओं को 'दूध' पिलाते हैं। पैसिफ़िक बीटल कॉकरोच ऐसे ही कॉकरोच हैं।

इसमें मादा बीटल कॉकरोच के अंडे के निषेचित होने से पहले ही इसमें से एक तरह का तरल पदार्थ निकलने लगता है।

बीटल कॉकरोच अपने अंडे को भी शरीर में बनी थैली में ही रखती है, यानी बच्चे को पहले से ही पोषण मिलने लगता है।

लिहाज़ा बीटल कॉकरोच जब अंडे से निकलता है तो वह काफी विकसित और पोषित हो चुका होता है।

स्यूडोस्कॉरपियंस

पैसिफ़िक बीटल कॉकरोच की तरह ही मादा स्यूडोस्कॉरपियंस से भी 'दूध' जैसा पदार्थ निकलता है।

मादा स्यूडोस्कॉरपियंस अपने पेट से सटी थैली में अंडे को रखती है। जब उससे नवजात शिशु निकल आता है तो वहीं उसे अपनी मां का 'दूध' मिलता है।

कबूतर,कॉकरोच भी बच्चों को पिलाते हैं 'दूध'

स्यूडोस्कॉरपियंस 2-3 मिलीमीटर लंबा होता है।

अमूमन कमरे में किताबों पर जमी धूलकण में ये पाया जाता है. इसे बुक स्कॉरपियंस भी कहते हैं।

डिस्कस फिश

इस मछली का 'दूध' भी गाय या इंसान के दूध की तरह नहीं होता।

प्रोटीन्स और दूसरे एंटीबॉडी वाले तत्वों वाला यह 'दूध' नर और मादा डिस्कस मछली से एक समान निकलता है। यह उनके शरीर के बाहरी हिस्से से निकलता है।

अंडे से मछली के निकलने के बाद दो सप्ताह तक उसे इस 'दूध' की जरूरत होती है। अमूमन एक बार 'दूध' पीने में 5-10 मिनट का समय लगता है।

तीसरे सप्ताह तक डिस्कस फिश अपने माता-पिता की देख-रेख में तैरना शुरू कर देती है।

ताइता अफ्रीकन कैसिलियन

कबूतर,कॉकरोच भी बच्चों को पिलाते हैं 'दूध'

कैसिलियन मूल रूप से मेढ़क और सैलामैंडर जैसे होते हैं, लेकिन उनके पांव नहीं होते हैं और वे केंचुए की तरह दिखते हैं।

ज़्यादातर कैसिलियन अपने अंडे की देखभाल करते हैं और बच्चे के निकलते ही उसे छोड़ देते हैं।

दक्षिण पूर्व कीनिया में पाए जाने वाली मादा कैसिलियन बच्चे के पोषण के लिए अपने केंचुल निकाल देती है. ये केंचुल प्रोटीन और वसा का स्रोत होता है.

यह इतना पोषक होता है कि उसे खाते ही बच्चे की लंबाई एक सप्ताह में 11 फ़ीसदी बढ़ जाती है।

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