पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Holashtak 2022 : होली का त्योहार 18 मार्च को मनाया जाएगा। हालांकि होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को अशुभ समझा जाता है। इस समय को होलाष्टक कहा जाता है। इस बार होलाष्टक 10 मार्च से 18 मार्च तक रहेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन दिनों शुभ मांगलिक कार्य करना निषेध होता है। इस दाैरान किए गए कार्यों का फल प्राप्त नहीं होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा से पहले अष्टमी को चंद्रमा,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरु,त्रियोदशी को बुद्ध,चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा होलिका दहन के समय को राहु केतु का उग्र प्रभाव होता है। इसलिए इस दाैरान मष्तिष्क में कुछ दुर्वलता एवं बेचैनी बढ़ती है।

होलाष्टक क्यों होते अशुभ

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के बाईं ओर आद्याशक्ति रूपादेवी पार्वती भी बैठकर उनके सानिध्य में आनंद का अनुभव करतीं हैं। विश्व विनाशक सभी देवों तथा सभी देवों में अग्रणी पूज्य गणपति जी भी अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्दी के साथ प्रेमालाप में आनंदित हो जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था क्योंकि कामदेव प्रेम के देवता होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई तब उनकी पत्नी रति ने शिवजी से छमा याचना मांगी तत्पश्चात शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया।

यह भी मान्यता

ऐसी भी मान्यता है कि एक पौराणिक कथा के अनुसार होलाष्टक से धुलण्डी तक के आठ दिन तक प्रहलाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु से मोहभंग करने के लिए अनेक प्रकार की यातनायें दीं थीं। इसके बाद प्रहलाद को जान से मारने के भरसक प्रयास भी किये थे परंतु प्रत्येक बार भगवान प्रहलाद की रक्षा कर उसे बचा लेते थे। आठ दिन के बाद जब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को खत्म करने के लिए अपनी बहन होलिका को अग्नि स्नान में साथ बैठाकर भस्म करने की योजना बनाई। तय समयानुसार जब होलिका ने प्रहलाद को गोद में बैठाकर अग्निस्नान शुरू किया तुरन्त ही भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका तो जल गई मगर प्रहलाद का बालबांका भी नहीं हुआ।