डॉ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिर्विद्)। Holi 2022 Significance: बता दें, जिस दिन होलिका का दहन होता है हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अन्तिम दिन रहता है दूसरे दिन जब होली खेली जाती है तो वर्ष का पहला दिन होता है। रंगोत्सव के दिन चैत्र मास के पहले दिन का आरम्भ होता है। इसीदिन से हिन्दुओं का नया वर्ष प्रारम्भ हो जाता है। कुछ जगहों या स्थानों पर मान्यता है कि नये वर्ष का प्रारम्भ नवरात्री के समय से माना जाता है। होलिकोत्सव के 15 दिन बाद नवरात्री आता है हमारे हिंदू वर्ष का यह प्रारम्भ बिंदु है। नये वर्ष के आगमन की खुशी पर हम एक दूसरे पर रंग या गुलाल लगाते है विभिन्न तरह के पकवान एवं मिष्ठान बनाते है एवं दूसरों को खिलाते हैं। नव संवत्सर में आपकी जिंदगी के साथ साथ भारत एवं विश्व पटल पर क्या बड़े परिवर्तन होगें, आगे समझते हैं... 17 मार्च 2022 को राहु केतु राशि परिवर्तन कर रहें है। राहु केतु अपनी उच्च राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेगें। राहु केतु मजबूत स्थिति में थे इसी कारण कोरोना जैसी महाबीमारी दो वर्षों से चली आ रही है। जोकि धीरे-धीरे यह समाप्ति की ओर बढ़ेगी। राहु केतु के कारण विश्व स्तर पर लड़ाई-झगड़े एवं विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियाँ बनी हुई है। 17 मार्च के बाद राहु केतु के कमजोर होने से विश्व स्तर पर लड़ाई-झगड़े एवं विश्व युद्ध की संभावना में कमी आने लगेगी। यद्यपि राहु मेष राशि में विराजमान होगा इसलिए उत्तेजना बनी रहेगी। थोड़ा सोच-समझकर ही कार्य करना होगा तभी स्थितियाँ पटरी पर आयेगीं।

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रामनवमी से गुरु बदलेंगे अपना स्‍थान
10 अप्रैल 2022 से गुरु मीन राशि में प्रवेश करेगा जिससे लोगों में समझ विकसित होगी। लोग सूझ-बूझ से कार्य करेगें। गुरु के मीन में आने के कारण विश्व स्तर पर लड़ाई-झगड़े जैसी परिस्थितियों में कमी आने लगेगी। लोग समझदारी से कार्य करने लगेगें। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी भारत और विश्व के अनेक देश अग्रणी भूमिका निभाने का प्रयास करेगें। लोगों में तेजी से समझ विकसित होगी और मिलजुल कर और शांति से रहने के लिए लोग प्रेरित होने लगेगें। 29 अप्रैल को शनि भी राशि परिवर्तन करके कुंभ में प्रवेश करेगा। इससे रोजी-रोजगार के क्षेत्र में भारत एवं विश्व के देश आगे बढ़ने का प्रयास करेगें। परिस्थितियाँ संतोषजनक और उन्नतिशीलता की ओर बढ़ेगी। विश्वस्तर पर राजनीतिक उठापटक के बीच अच्छे लोग सामने आयेगें। अपने देश के विकास के लिए कर्मठता से आगे बढ़ने का प्रयास करेगें। कुल मिलाकर देखा जाये तो वर्ष के प्रारम्भ में थोड़ी कठिनाईयाँ रहेगी लेकिन धीरे-धीरे कठिनाईयाँ दूर होगीं और लोग विकास एवं शांति को महत्व देगें। भारत जैसे देश विश्व से जुड़कर तेजी से प्रगति करने का प्रयास करेगें। गुरु के मजबूत होने से भारत की साख बढ़ेगी और भारत को भी विश्वस्तर पर उचित सम्मान मिलेगा। भारत भी आर्थिक एवं सामाजिक रुप से उन्नति होगी। भारत विश्व गुरु की भूमिका में आयेगा और बड़ी पहचान विश्व पटल पर रखने में सफल होगा।

होली का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
बसंत ऋतु में होली का उत्सव मनाया जाता है इसकी एक सनातन परंपरा है हमारे धार्मिक ग्रन्थों में होली का महोत्सव मनाने के पीछे अति प्राचीन काल से चली आ रही एक कथा का विवरण भी मिलता है। जिसमें भगवान विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद की कथा है। हिरण्यकश्यप एक क्रूर एवं अत्याचारी राजा था। उसने अपने राज्य में सभी देवी-देवताओं की पूजा बंद करा दी विष्णु की पूजा पर भी प्रतिबंद लगा दिया। भगवान की जगह प्रजा से अपनी पूजा करने का आदेश दिया। उसके आदेश को जो नहीं मानेगा उसे दंडित किया जायेगा। प्रह्लाद जो हिरण्यकश्यप का पुत्र था पिता के आदेश के बाद भी विष्णु पूजा करता था। पिता के लाख मना करने पर भी वह निरन्तर विष्णु पूजा करता रहा इससे क्रोधित होकर हिरणयकश्यप ने प्रह्लाद को महल के उपर से फिकवा दिया लेकिन प्रह्लाद बच गये। प्रह्लाद को उसने अनेक यातनायें दी जिससे प्रह्लाद विचलित नहीं हुए और निरन्तर विष्णु जी की आराधना करते रहें। अन्त में हताश होकर हिरण्यकश्यप ने निश्चय किया कि प्रह्लाद को अग्नि में जला दिया जाए। हिरण्यकश्यप की बहन अर्थात प्रह्लाद की बुआ को देवताओं से यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि यह दुष्ट बालक प्रह्लाद नहीं मानेगा। यह विष्णुजी की पूजा करता रहेगा। इसलिए तुम प्रह्लाद को लेकर अग्नि की वेदी पर बैठ जाओ जब अग्नि प्रज्जवलित हो जायेगी तो प्रह्लाद उसमें जलकर खत्म हो जायेगा। जब अग्नि जलने लगी तो होलिका स्वयं उसमें जलकर राख हो गई प्रह्लाद विष्णु जी के मंत्र का जाप करते हुए सकुशल बाहर आ गये। होलिका जलकर राख में तब्दील हो गई।

यह खबर जब हिरण्यकश्यप ने सुनी तो वह बहुत क्रोधित हो गया वह तलवार से अपने पुत्र की गर्दन पर प्रहार किया। तलवार खंभे पर टकरा गई और खम्भा टूटकर गिर गया। फिर विष्णु भगवान खंभे से नरसिंह के अवतार के रुप में प्रकट हुए, उन्‍होंने गोधूली के समय हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया। अपनी गोद में बिठाकर अपने तीखे नाखूनों से उसके पेट को फाड़कर दो भागों में विभाजित कर दिया। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह न दिन में मरेगा, न रात्री में मरेगा, न आकाश में मरेगा, न ही जमीन पर मरेगा, और न मनुष्य से मरेगा, न देवता से मरेगा। इसीलिए हिरण्यकश्यप को गोधूली में भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर उसके जीवन का अन्त कर दिया। क्रूर आताताई की मृत्यु के बाद जनता में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उसके अन्त की खुशी से प्रसन्न होकर दूसरे दिन रंगोत्सव खेला जाता है। यह परंपरा तभी से चली आ रही है।

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