बंगलुरु (पीटीआई)। चंद्रयान -2 का 'विक्रम' मॉड्यूल शनिवार सुबह चंद्रमा पर ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तैयार है, भारत के दूसरे मून मिशन से चंद्रमा के उस हिस्से पर रोशनी डालने की उम्मीद है जो अभी तक अछूता रहा है-चंद्रमा का दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र (साउथ पोल)। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग को इस मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है।

पानी की मौजदूगी, सोलर सिस्टम का फॉसिल रिकॉर्ड  

इसरो के अनुसार, चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव कई कारणों से रुचि जगाता है, यहां चंद्र सतह का छाया में रहने वाला हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में कहीं अधिक बड़ा है। यहां हमेशा छाया में रहने वाले हिस्सों में पानी की मौजूदगी की उम्मीद है, इसके अलावा, दक्षिण ध्रुव क्षेत्र में क्रेटर हैं जो कोल्ड ट्रैप सरीखे हैं जिनमें सौर मंडल के आरंभ का फॉसिल रिकॉर्ड मौजूद है।

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चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहला मिशन

चंद्रयान -2 के लैंडर 'विक्रम', इसमें रखे रोवर 'प्रज्ञान' के साथ, को 7 सितंबर को 1 से 2 बजे के बीच नीचे उतारने की प्रक्रिया शुरू होगी, इसके 1.30 बजे से 2.30 बजे के बीच सतह को छूने की उम्मीद है। लैंडिंग के बाद, रोवर 'प्रज्ञान' लैंडर विक्रम से सुबह 5.30 से 6.30 के बीच बाहर आएगा। एक सफल लैंडिंग भारत को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बना देगी, इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन को ही इसमें कामयाबी मिली है, लेकिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यह पहला मिशन होगा।

चंद्रमा का 1 दिन धरती के 14 दिन के बराबर  

इसरो ने कहा है, चंद्रयान -2 लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान' को दो क्रेटर्स, मंज़िनस सी और सिमपेलियस एन के बीच लगभग 70 डिग्री दक्षिण में ऊंचाई पर स्थित मैदान में सॉफ्ट लैंड कराने की कोशिश करेगा। 'प्रज्ञान' जहां एक चंद्र दिन (लूनर डे) जो धरती पर 14 दिनों के बराबर है की अवधि के लिए चंद्र सतह पर विभिन्न प्रयोग करेगा, मुख्य ऑर्बिटर की मिशन अवधि एक साल होगी।

भारत से पहले यहां कोई नहीं गया

यह बताते हुए कि चंद्रयान 2 दक्षिण ध्रुव जा रहा था, एक जगह जहां कोई और नहीं गया है, इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने पूर्व में कहा था कि देश और दुनिया भर का वैज्ञानिक समुदाय इस मिशन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उनके अनुसार दक्षिण ध्रुव के चुनाव में सुविधा और विज्ञान दोनों का ध्यान रखा गया है। 'विज्ञान के दृष्टिकोण से, दक्षिणी ध्रुव के नीचे का छाया वाला हिस्सा उत्तरी ध्रुव से अधिक है, इसलिए इसके कारण पानी के वहां होने की अधिक उम्मीद है, उन्होंने कहा कि वहां खनिज भी हो सकते हैं।

दक्षिणी ध्रुव में छिपा पानी व खनिजों का भंडार  

इसरो ने कहा कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर अरबों वर्षों से सूर्य के प्रकाश से अछूते हैं, इसलिए उनमें हमारे सोलर सिस्टम की उत्पत्ति का रिकॉर्ड छिपा हो सकता है और हमेशा छाया से घिरे क्रेटर्स में लगभग 100 मिलियन टन पानी होने का अनुमान है। इसके रेजोलिथ में हाइड्रोजन, अमोनिया, मीथेन, सोडियम, मरकरी और चांदी के निशान हैं जो इस अछूती जगह को आवश्यक संसाधनों का महत्वपूर्ण स्त्रोत बनाती है। अंतरिक्ष एजेंसी ने आगे कहा कि इसकी एलीमेंटल ओर पोजीशनल एडवांटेज इसे भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए उपयुक्त बनाती है।

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खुलेगा चंद्रमा व पृथ्वी की उत्पत्ति का रहस्य  

अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, चंद्रमा, पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास का महत्वपूर्ण लिंक है सोलर सिस्टम के आंतरिक वातावरण का ऐतिहासिक रिकॉर्ड मौजूद है। कुछ परिपक्व मॉडल मौजूद होने के बावजूद, चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में अभी भी और स्पष्टीकरण की जरूरत है। इसरो के अनुसार चंद्रमा की सतह की मैपिंग और उसमें आने वाले बदलावों का अध्ययन इस बारे में और प्रकाश डाल सकता है। चंद्रयान -1 द्वारा खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्य पर आगे के अध्ययन की आवश्यकता है, यह पता लगाना होगा कि सतह के नीचे, सतह पर और अंदर पानी के अणुओं की मौजूदगी कितनी है।

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