क्या घोटालों को लेकर निशाने पर हैं मनमोहन सिंह  
घोटालों को लेकर मनमोहन सिंह को निशाना बनाने के सवाल पर विनोद राय कहते हैं कि इसका तो सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने बताया कि यहां उनका मतलब था कि जहां तक इन घोटालों की बात है, वह पीएम थे और बात उन तक पहुंची थी. उन्हें चीजों की जानकारी थी. 2जी मामले में ए. राजा की पीएम को लिखी चिट्ठियों से साफ संकेत मिलता है कि राजा क्या करनेवाले थे, पीएम ने इन चिट्ठियों का सिर्फ रुटीन जवाब दिया. कोयला मामले में उन्हें यह श्रेय देना चाहिए कि जैसे ही कोयला सचिव पारख ने उन्हें बताया कि स्क्रीनिंग कमिटी की प्रक्रिया से पैसा कमाने, दबाव और लॉबीइंग को बढ़ावा मिल रहा है, वह मामले को समझ गए. नवंबर 2004 में उन्होंने फैसला लिया कि कोयला मंत्रालय नीलामी या मार्केट-डिस्कवरी प्रक्रिया अपनाएगा. यहां राय ने कहा कि किसी निजी लड़ाई का सवाल ही नहीं उठाता. वह दोनों बिल्कुल अलग-अलग स्तर पर हैं. वह 10 साल प्रधानमंत्री रहे हैं, वह एक राजनीतिक हस्ती, विचारक, वैश्विक हस्ती हैं और उनका  उनसे टकराने का कोई सवाल नहीं है. उनकी रिपोर्ट्स तथ्यों पर आधारित है और मुद्दे उनके स्तर तक जाते हैं. उन्होंने कार्रवाई करने या न करने का जो रास्ता चुना वह उनकी मर्जी थी.

कैग का उस समय पीएम के पास जाना सही नहीं होता
पूर्व कैग ने कहा कि वह तब भी यह मुद्दा उठा सकते थे, लेकिन किसी कैग का पीएम या मिनिस्टर के पास जाना सही नहीं होता.  सही तरीका यही है कि वह  अपनी ड्राफ्ट फाइडिंग्स संबंधित मंत्रालय तक पहुंचाते हैं और वह इस पर प्रतिक्रिया देते हैं. फिर वह इन प्रतिक्रियाओं को मिलाकर रिपोर्ट तैयार करते हैं. हालांकि वह कर्टसी के तौर पर करीबन हर छह महीने पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलते रहते थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने यह मुद्दे उठाए थे. जब 26 दिसंबर को ए. राजा ने लिखा कि वह लाइसेंस या लेंटर ऑफ इंटेंट जारी करेंगे, पीएम कह सकते थे कि इस मामले को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स में ले जाया जाए. तब नतीजा कुछ और निकल सकता था.

पीएम का नाम रिपोर्ट से बाहर रखने की बात सच है
पीएम का नाम रिपोर्ट से बाहर रखने की सांसदों की सिफारिश पर राय ने बताया कि पब्लिक अकाउंट्स कमिटी की बैठक के दौरान कांग्रेस सांसदों ने अलग से मिलकर उन्हें पीएम का नाम रिपोर्ट से बाहर रखने को कहा था. संजय निरुपम, संदीप दीक्षित और अश्वनी कुमार ने उनसे यह बात कही थी. कुछ और भी लोग थे, यह सबसे पहले अश्वनी कुमार ने शुरू किया, उन्होंने उनसे कहा कि पीएम का नाम बाहर रखा जाए. दूसरे सांसद उनके साथ थे और हां में सिर हिला रहे थे. पीएसी बैठक सुबह हुई और फिर लंच था. लंच या उससे ऐन पहले कुमार ने उनके सामने यह मुद्दा उठाया. कांग्रेस सांसद ग्रुप बनाकर उनके पास आए थे. पीएसी में नवीन जिंदल और दूसरे लोग भी थे. उस समय तक 2जी रिपोर्ट संसद में रखी जा चुकी थी. सो उन्होंने उन्हें कहा कि जो रिपोर्ट संसद के सामने है उसमें से किसी का नाम कैसे बाहर किया जा सकता है, वैसे भी राजा की चिट्ठियां जिनका जवाब पीएम ने दिया था, ऐसी चीज थी जिसे इग्नोर नहीं किया जा सकता था. वह उनसे रिपोर्ट बदलने के लिए नहीं कह रहे थे, वह पीएसी में चर्चा के रुख पर सुझाव दे रहे थे. निरुपम ने उनके डेप्युटी से कहा कि उनकी रिपोर्ट बिल्कुल अराजनीतिक है, लेकिन वह उसे राजनीतिक मुद्दा बना देंगे.

कैग के बारे में किया था गलत और असंसदीय भाषा का प्रयोग
पूर्व कैग ने बताया कि जब वह बैठक में नहीं थे तो उन्होंने कैग के बारे में गलत और असंसदीय भाषा का प्रयोग भी किया था. इस वजह से पीएसी के चेयरमैन डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने स्पीकर को निरुपम और दीक्षित के खिलाफ लिखित शिकायत भेजी थी, लेकिन स्पीकर का कोई जवाब नहीं आया.

यह किताब के लिए प्रमोशन का तरीका नहीं
कुछ लोगों का मानना है कि इन चर्चाओं के माध्यम से राय अपनी किताब को लेकर सनसनी फैला रहे हैं. इसपर उनका कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. उनका कहना है कि वह तो सिर्फ वही बता रहे हैं, जो उनकी रिपोर्ट के बाद सबके सामने आया है.

बीजेपी नेताओं से नहीं थी कोई नजदीकी
राय कहते हैं कि किसी से नजदीकी का कोई सवाल ही नहीं उठता है. जाहिर है उन्हें पीएसी चेयरमैन से बात करनी पड़ती थी, जो विपक्षी दल के नेता थे. वह  उनसे लगातार संपर्क में थे. कैग चेयरमैन के बगल में बैठते हैं. इसमें पॉलिटिकल अजेंडा कहां था. उन्होंने कहा कि कैग को तथ्यों से चुनौती दीजिए, व्यक्तिगत आरोप न लगाएं. उन्होंने कहा कि वह डॉ. जोशी को पहले से नहीं जानते थे. वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे और राय दिल्ली यूनिवर्सिटी से हैं. वह उन्हें पहली बार 2जी रिपोर्ट के दौरान मिले. पद छोड़ने के बाद से वह उनसे कभी नहीं मिले हैं. उनका 35 साल का सिविल सर्विस का करियर खुद इस बात की गवाही देता है. राय ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस सरकारों के साथ भी काम किया है और मार्क्सवादी सरकारों के साथ भी किया है. उनका करियर खुली किताब है.

जागरूक होने के लिए मीडिया को देते हैं क्रेडिट
राय कहते हैं कि उन्हें एक अच्छी और प्रोफेशनल टीम के नेतृत्व का सौभाग्य मिला. उन सबने देश में गवर्नेंस स्ट्रक्चर के बारे में बहुत कुछ सीखा है. उन्होंने कहा कि वह कभी शेषन से खुद की तुलना नहीं करते. मीडिया ने उनका बहुत सहयोग किया. मीडिया हमेशा से ही बहुत जागरूक और स्वतंत्र रही है. उनका कहना है कि उन्हें मीडिया को क्रेडिट देना होगा.

पॉलिटिकल करियर का कोई इरादा नहीं
उनके पॉलिटिकल करियर को लेकर फैली अफवाहों पर राय कहते हैं कि अफवाहों में कितना दम होता है. कोई रिपोर्ट सच साबित हुई है क्या. उन्होंने कहा कि पहले तो उन्हें बीजेपी के करीब बताया जा रहा था, फिर वह AAP के कैंडिडेट क्यों बनेंगे. इसलिए इधर-उधर की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए.

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