हर विमान में एलीट स्पेशल सर्विसेज़ ग्रुप के साठ-साठ कमांडो सवार थे।

उनका लक्ष्य था तीन भारतीय हवाई अड्डों हलवारा, आदमपुर और पठानकोट पर रात के अंधेरे में पैराशूट के ज़रिए उतरना, उन पर क़ब्ज़ा करना और वहां मौजूद भारतीय विमानों को नष्ट करना।

जैसे ही मेजर ख़ालिद बट्ट के नेतृत्व में रात 2 बजे, 60 पाकिस्तानी कमांडो पठानकोट एयर बेस के नज़दीक उतरे, उनको एक के बाद एक मुसीबतों ने घेर लिया।

हवाई अड्डे के आसपास नहरों, झरनों और कीचड़ से भरे खेतों ने उनकी गति को अवरुद्ध किया।

तीन घंटों में ही पौ फटने लगी और तब तक एक गांव वाले ने पठानकोट सब एरिया मुख्यालय को उनके उतरने की सूचना दे दी।

एक कमांडो वापस भागा

आनन-फ़ानन में क़रीब 200 लोग जमा किए गए। अधिकतर कमांडोज़ अगले दो दिनों में हिरासत में ले लिए गए।

1965: जब भारतीय ठिकानों पर पाक सैनिक उतरे

दो दिन बाद उनका नेतृत्व कर रहे मेजर ख़ालिद बट्ट भी पकड़े गए। हलवारा में रात के अंधेरे के बावजूद नीचे से उतरते हुए छाताधारी सैनिक साफ़ दिखाई दे रहे थे।

हवाई ठिकाने के सुरक्षा अधिकारी ने सभी एयरमैन और अफ़सरों में राइफ़लें और पिस्टल बांट कर निर्देश दिया कि हवाई अड्डे से सटे घास के मैदानों में जैसे ही उन्हें कोई हरकत दिखाई दे, वो बिना झिझके गोली चला दें।

कुछ पाकिस्तानी कमांडो वास्तव में हवाई ठिकाने के प्रांगण में गिरे थे, लेकिन इससे पहले कि वो हरकत में आ पाते, उन्हें युद्धबंदी बना लिया गया।

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हालांकि जॉन फ़्रिकर अपनी किताब 'बैटिल फ़ॉर पाकिस्तान' में लिखते हैं कि उनमें से एक कमांडो मेजर हज़ूर हसनैन ने जबरन एक भारतीय जीप का अपहरण कर लिया और वो अपने एक साथी के साथ वापस पाकिस्तान भागने में सफल हो गए।

हलवारा बेस में ग्राउंड ड्यूटी में काम कर रहे वित्त विभाग के प्रमुख स्कवार्डन लीडर कृष्ण सिंह ने ख़ुद पाकिस्तानी कमांडोज़ के लीडर को पकड़ा। वो अकेले ग़ैर सैनिक थे जिन्हें 1965 और 1971 दोनों युद्धों में इसी तरह के कारनामे के लिए वीर चक्र दिया गया।

भौंकते कुत्तों ने पकड़वाया

आदमपुर में भी पाकिस्तानी सैनिकों का यही हाल हुआ। उन्हें एयर बेस से काफ़ी दूर गिराया गया जिसकी वजह से वो एकत्रित नहीं हो पाए। रात में भौंकते हुए कुत्तों ने उनका राज़ खोल दिया।

1965: जब भारतीय ठिकानों पर पाक सैनिक उतरे

1965 भारत-पाक युद्ध के दौरान पठानकोट एयर बेस की तस्वीर।

सूरज निकलते ही उन्होंने मक्के के खेतों में शरण ली। उनको लुधियाना से आए एनसीसी के युवकों ने ढूंढ़ा। कुछ छाताधारियों को क्रोधित गांव वालों ने मार डाला।

कुल 180 छाताधारियों में से 138 को बंदी बनाया गया, 22 सेना, पुलिस या गांव वालों के साथ मुठभेड़ में मारे गए और क़रीब 20 वापस पाकिस्तान भागने में सफल हो गए।

इनमें से अधिकतर लोग वो थे जिन्हें पठानकोट एयरबेस पर गिराया गया था क्योंकि वहां से पाकिस्तानी सीमा की दूरी मात्र 10 मील थी।

1965: जब भारतीय ठिकानों पर पाक सैनिक उतरे

पीवी एस जगनमोहन और समीर चोपड़ा अपनी किताब 'द इंडिया पाकिस्तान एयर वार' में लिखते हैं, "60 कमांडोज़ का ग्रुप शायद एक बड़ा समूह था जो लोगों का ध्यान खींचे बग़ैर अपना काम अंजाम नहीं दे सकते थे। दूसरे लिहाज़ से यह एक छोटा समूह भी था जो घेर लिए जाने पर अपने आप को बचाने की क्षमता नहीं रखता था।"

पाकिस्तान ने गुवाहाटी और शिलांग में भी कुछ छाताधारी सैनिक गिराए लेकिन वो सभी कोई भी नुक़सान पहुंचाने से पहले गिरफ़्तार कर लिए गए।

पैराट्रूपर्स के डर से दिल्ली भागे

इन सब घटनाओं ने कई बार दोनों देशों में बहुत हास्यास्पद स्थिति पैदा कर दी। एक बार एक ड्यूटी ऑफ़िसर को सपने में छाताधारी सैनिक दिखाई दिए।

वो नींद में ही चिल्लाया, "दुश्मन, दुश्मन, फ़ायर फ़ायर।" चूंकि चारों तरफ़ ब्लैक आउट की वजह से घुप्प अँधेरा था, इसलिए लोग देख नहीं पाए कि ये आवाज़ कहां से आ रही है. कई लोग जाग गए और चारों तरफ़ शोर मच गया। पिस्टलें निकाल ली गईं लेकिन इससे पहले कि शूटिंग मैच शुरू होता, कमांडिंग ऑफ़िसर को सारा माजरा समझ में आ गया।

1965: जब भारतीय ठिकानों पर पाक सैनिक उतरे

बीबीसी स्टूडियो में एयर मार्शल भूप बिश्नोई के साथ रेहान फ़ज़ल।

एयर मार्शल भूप बिश्नोई याद करते हैं, "हलवारा में छाताधारी सैनिकों के उतरने के बाद दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस पर भी ये अफ़वाह फैल गई कि वहाँ पर पाकिस्तानी पैराड्रॉप होने वाला है, चूंकि हिंडन एक फ़ैमिली स्टेशन था, वहाँ के सीओ ने कहा कि लोग अगर चाहें तो अपने बीवी बच्चों को सुरक्षित जगह पर छोड़ कर आ सकते हैं। जिसको जो सवारी मिली वो उसमें अपने परिवार वालों को बैठा कर दिल्ली की ओर भागा।"

आपस में ही गोलीबारी

इससे भी दिलचस्प घटना पाकिस्तान में हुई। वहां ख़बर आई कि भारतीय छाताधारी सैनिक सरगोधा हवाई अड्डे पर उतारे जाने वाले हैं। पाकिस्तान के एयर हेड क्वॉर्टर ने कमांडोज़ से लदा हुआ सी-130 विमान सरगोधा के लिए रवाना कर दिया।

जब वो विमान अंधेरे में सरगोधा एयर बेस पर उतरा और उसमें से कमांडोज़ नीचे उतरने लगे तो एक ज़रूरत से ज़्यादा सावधान संतरी ने समझा कि वो भारतीय पैरा ट्रूपर हैं और दोनों पक्षों के बीच गोलियाँ चलने लगीं। इस ग़लतफ़हमी की गोलीबारी में कितने लोग हताहत हुए, इसका पता नहीं चल पाया। ( एटर कॉमॉडोर मंसूर शाह, द गोल्ड बर्ड : पाकिस्तान एंड इट्स एयरफ़ोर्स)

इसी तरह पठानकोट में संभावित छाताधारी हमले से बचने के लिए सभी अधिकारियों को 9 एमएम की स्टेन कारबाइन दी गई। फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट पठानिया को भी एक कारबाइन मिली।

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चूंकि उन्हें उसे चलाना नहीं आता था, फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट तुषार सेन उन्हें कारबाइन चलाने के गुर सिखा रहे थे।

तभी उनकी उंगलियाँ फिसलीं और कारबाइन से 9 एमएम गोलियों का पूरा बर्स्ट वहाँ आराम कर रहे पायलटों के सिरों के कुछ इंच ऊपर से निकल गया।

उसके बाद आपस में जो शब्दों की बौछार हुई, उसकी आप सिर्फ़ कल्पना ही कर सकते हैं।

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