एमजीएम में ब्लड बैंक के पीछे, इमरजेंसी के पास बिखरा पड़ा है बायो मेडिकल वेस्ट

हाईकोर्ट के आदेश की भी यहां किसी को नहीं है कोई परवाह

छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : हाईकोर्ट के कड़े तेवर के बाद एमजीएम हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन और पॉल्यूशन डिपार्टमेंट ने अपना गॉगल्स उतारा। पॉल्यूशन डिपार्टमेंट की टीम एमजीएम हॉस्पिटल जाकर जहां तहां फेंके गए बायो मेडिकल वेस्टेज की जानकारी ली। आरएन चौधरी के नेतृत्व में टीम जब एमजीएम हॉस्पिटल पहुंची तो ब्लड बैंक और किचन के पास पेशेंट्स द्वारा यूज किए गए बैंडेज, ग्लब्स, निडिल्स, सिरिंज सहित तमाम तरह के बायोमेडिकल वेस्ट बिखरे पड़े थे। पॉल्यूशन डिपार्टमेंट के आरएन चौधरी ने एमजीएम के सुपरिटेंडेंट को बायो मेडिकल वेस्टेज के डिस्पोजल में लापरवाही बरतने पर कार्रवाई की चेतवानी भी दी है।

आनन-फानन में पहुंची टीम

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद प्रदूषण विभाग की टीम हरकत में आयी। टीम बुधवार को आनन-फानन में एमजीएम अस्पताल पहुंची और वहां पर पड़े बायो मेडिकल वेस्टेज स्थिति का जायजा लिया। इस दौरान टीम को पता चला कि अस्पताल का इंसीनिरेटर करीब पांच वर्षो से खराब पड़ा हुआ है। 540 बेड के अस्पताल से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के कुछ वेस्टेज को उसी में जला दिया जाता है तो कुछ वेस्टेज को जहां-तहां फेंक दिया जाता है। एक बार इनसीनिरेटर की रिपेयरिंग के लिए कवायद शुरू की गई थी। लेकिन प्रशासनिक कारणों टेंडर को कैंसिल कर दिया गया था।

हरकत में आया एमजीएम प्रशासन

टीम के निरीक्षण के बाद एमजीएम प्रशासन हरकत में आया। टीम के एमजीएम में रहते ही आनन-फानन में ब्लड बैंक और किचन रास्ते में पड़े मेडिकल वेस्टेज को हटाने का काम शुरू हो गया। टीम के जाते ही कचरे को हटाने का काम बंद हो गया।

दिखावे के लिए हटा वेस्टेज

एमजीएम में जहां तहां पड़े मेडिकल वेस्टेज को सिर्फ दिखावे के लिए ही हटाया गया है। वेस्टेज को सिर्फ रास्ते के किनारे से हटाकर शौचालय की तरफ जमा कर दिया गया है। लिहाजा कचरे को ट्रांसफर करने के दौरान वहां से गुजरना भी मुश्किल था। लोग जैसे तैसे वहां से गुजर रहे थे।

कर्मियों की भी परवाह नहीं

एमजीएम हॉस्पीटल मैनेजमेंट को अपने कर्मियों की भी परवाह नहीं है। हॉस्पीटल कंपाउंड में जहां-तहां पड़े कचरे को देखकर शायद ऐसा ही लगता है। एमजीएम के डॉक्टर बलराम झा कहते हैं कि मेडिकल वेस्टेज से तो सभी लोगों को परेशानी है। इसकी जद में जो भी आएगा संक्रमित हो जाएगा। लेकिन एमजीएम मैनेजमेंट भी क्या करे। यहां तो कर्मचारियों का घोर अभाव है। सफाई कर्मचारी भी लापरवाही बरतते हैं।

खुले में जलाई जाती है दवाईया

एमजीएम में दवाइयों को जलाने का काम खुले में होता है। ब्लड बैंक के पीछे एक्सपायरी दवाइयों को जलाने का काम होता है। जली हुई दवाइयों की शीशियां कुछ ऐसी ही बानगी पेश कर रही हैं। इतना ही नहीं यहां बायो मेडिकल वेस्ट को डिस्पोजल करने वाला इंसीनिरेटर भी बीमारियां उगल रहा है। इसकी जांच पड़ताल करने के लिए बुधवार को प्रदूषण विभाग की टीम एमजीएम अस्पताल पहुंची थी। इस दौरान जगह-जगह पर बायो मेडिकल कचरा पड़ा मिला।

इंसिनरेटर खराब 2011 से नहीं हुआ है रिन्यूअल

एमजीएम अस्पताल में बने इंसीनिरेटर मशीन करीब पांच सालों से खराब पड़ी है। इंसीनिरेटर खराब होने के कारण मशीन लीक करता है और धुआं उपर न जाकर नीचे ही फैलता है। इससे आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इंसनिरेटर के धुएं से खतरनाक बीमारियों का डर भी बना रहता है। एमजीएम के कर्मचारियों का कहना है कि इंसीनिरेटर मशीन मानक के अनुरूप नहीं होने के कारण विभाग की ओर से इसका रिन्यूअल नहीं किया जा रहा है। यहां पर न तो इंसीनिरेटर सही है और न ही वेस्ट वाटर टीट्रमेंट। इतना ही नहीं, सेक्यूर लैंड बिल और कलर कोडिंग बाल्टी का भी व्यवस्था नहीं है। इंसीनिरेटर में मेडिकल वेस्ट को 900-1100 तापमान पर जलाया जाता है, लेकिन यहां पर खराब होने के कारण 300 तापमान पर ही जलाया जाता है।

क्या कहते है बायो मेडिकल वेस्टेज का नियम

नियम के मुताबिक बायोमेडिकल वेस्टेज को बिना किसी ट्रीटमेंट के 48 घंटे से ज्यादा नहीं रखा जा सकता है। ऐसा न करने वालों पर पांच साल की कैद या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है। लेकिन इन सब कायदे-कानून को एमजीएम के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया है।

अंडर ग्राउंड वाटर को भी करता है प्रभावित

बायो मेडिकल वेस्टेज को प्रॉपर ढंग से डिस्पोजल नहीं किया जाय तो यह इंवॉयरमेंट और अंडर ग्राउंड वाटर दोनों को प्रभावित कर सकता है। बायो मेडिकल वेस्टेज से निकलने वाली डाईऑक्सीन और फ्यूरॉन गैस वातावरण में घुल जाती हैं। यदि बिना डिस्पोजल के इसे जमीन में दबा दिया जाए तो यह बारिश के मौसम में अंडर वॉटर को प्रदूषित करता है। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 'मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स' तैयार किए हैं। इसके तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी लेना भी जरूरी है।

वर्जन

पॉल्यूशन डिपार्टमेंट की टीम एमजीएमं हॉस्पीटल में जांच के लिए आई थी। नए इनसिरीनेटर के लिए प्रस्ताव बना कर भेजा गया है। उम्मीद है जल्द ही नया इनसीरिनेटर लगाया जाएगा।

आरवाई चौधरी, सुपरीटेंडेंट, एमजीएम