-टीसीसी से संचालित 'फ्यूचर' प्रोग्राम के स्टूडेंट्स ने बयां की अपनी दास्तां

-टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन ने स्टूडेंट्स को दीं शुभकानाएं

JAMSHEDPUR : सुविधाओं की कमी सपनों के आड़े आई। कोई रास्ता नही सूझ रहा था की कैसे आगे बढ़े। मदद के लिए टाटा स्टील की ट्राइबल कल्चरल सोसाइटी आगे आई और सपनों को पंख लग गए। पिछड़े आदिवासी वर्ग के होने के कारण और सुविधाओं से वंचित होने के कारण प्रतिभा के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने में असमर्थ स्टूडेंट्स की कुछ यही कहानी थी। टीसीसी से संचालित 'फ्यूचर' प्रोग्राम के इंजीनियरिंग कोचिंग प्रोग्राम के फ्क्, टाटा स्टील स्कॉलर्स प्रोग्राम के भ्फ् और नर्सिग प्रोग्राम के ख्म्8 स्टूडेंट्स ने सैटरडे को सोनारी स्थित टीसीसी में टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन, सुनील भाष्करन व अन्य ऑफिशियल्स के समक्ष अपने अनुभव शेयर किए। टीवी नरेंद्रन ने भी स्टूडेंट्स को अपनी शुभकानाएं दीं और कंपनी के सामुदायिक सहभागिता पर प्रकाश डालते हुए भविष्य में समाज के जरूरतमंद तबके के सहयोग का भराेसा दिया।

जिंदगी ने ली करवट

मुसाबनी की रहनेवाली लक्ष्मी मार्डी की जिंदगी में छाई धुंध अब साफ हो चली है। उसे याद है जब उसकी मां गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। करीब छह महीने वह बिस्तर पर रही। लक्ष्मी मार्डी ने उनकी सेवा की लेकिन जान नहीं बचा सकी। पिता ने दूसरी शादी कर ली। पारिवारिक हालात बद से बदतर होते चले गए। पढ़ने का बहुत मन था लेकिन पढ़ाई में तेज होने के बावजूद आगे का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। मुसाबनी माइंस इंटर कॉलेज से क्ख्वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। जमशेदपुर में रहनेवाले रिश्तेदार के घर आई। उनके सुझाव पर ट्राइबल कल्चर सोसाइटी से संपर्क किया। सहयोग मिला और यहां से जिंदगी ने करवट ली। मेटास एडवेंटिस्ट कॉलेज में बीएससी नर्सिग के चार वर्षीय पाठ्यक्रम में दाखिला मिल गया। खुशी इस बात की है कि अब वह पीडि़त मानवता की सेवा के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने के सपने को साकार कर सकेगी।

दूर हुआ अंधेरा

पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल रही। 7 भाई-बहनों में सबसे बड़ी सुनीता मार्डी के पिता टाटा स्टील में काम करते थे। सेवानिवृत्त होने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। समय ऐसा आया जब अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की फीस जुटानी भी मुश्किल हो गई। पढ़ाई जारी रखी। मिसेज केएमपीएम इंटर कॉलेज में दाखिला लिया। 9फ् प्रतिशत अंक लेकर क्0वीं बोर्ड में स्कूल टॉपर रही। इसके बाद क्ख्वीं की परीक्षा राज्य स्तर पर सर्वोच्च अंक के साथ उत्तीर्ण की। तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों सम्मान मिला। इंजीनियर बनने की तमन्ना थी, लेकिन आगे की राह में अंधेरा था। किसी की सलाह पर पॉलिटेक्निक प्रवेश परीक्षा दी और सफल रही। इसके बाद ट्राइबल कल्चर सोसाइटी के सहयोग से इंजीनियरिंग का सपना पूरा करने में एक बार फिर जुट गई। टीसीएस की मदद से इंजीनियरिंग कोचिंग संस्था प्रेरणा क्लासेस में कोचिंग कर रही है। टीसीएस की मदद से ही हॉस्टल भी मिल गया है और आर्थिक मदद भी मिल रही है। अब इंतजार सिर्फ इंजीनियर बनने का सपना पूरा होते देखने का है।

जली आशा की किरण

निम्न वर्ग से संबंध रखनेवाले रामस्वरूप सोरेन की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव लिए रही। तमन्ना इंजीनियर बनने की थी। इसके लिए पढ़ाई के दौरान अपना स्ट्रीम बदल लिया। एक समय ऐसा था, जब महसूस होता था कि जिंदगी में कुछ नहीं हो सकेगा। ट्राइबल कल्चर सोसाइटी से संपर्क साधा, तो यहां उम्मीद की किरण जल उठी। इंजीनियरिंग कोचिंग संस्था प्रेरणा क्लासेस में दाखिला मिल गया। टीसीसी और टीसीएस की ओर से फीडबैक सेशन, समय-समय पर आयोजित किए जानेवाले मोटिवेशनल स्पीच ने जिंदगी को सकारात्मक ढर्रे पर लाने में काफी योगदान दिया। अब बारी अपने भरपूर प्रयास की है। इतना ही नहीं, हम आर्थिक समस्या की चिंता से भी मुक्त हैं क्योंकि आर्थिक मदद तो मिलती ही है, जेब खर्च, स्टडी मैटीरियल भी उपलब्ध हो रहे हैं। हम जब चाहें, किसी समस्या पर अधिकारियों से बात कर उसे हल कर सकते हैं।

और मिल गई मंजिल

ओडि़शा के मयूरभंज के रहनेवाले गणेश गागराई का अनुभव काफी रोमांचित करनेवाला था। गणेश के मुताबिक एक समय ऐसा था जब महसूस होता था कि ट्राइबल स्टूडेंट्स को आगे बढ़ने का कोई स्कोप नहीं है। नवोदय विद्यालय में क्0वीं में पढ़ता था। कुछ बनने, करने की चाह में भुवनेश्वर की बस पकड़ ली। कई रातें बस स्टैंड पर गुजारीं। संघर्षपूर्ण समय बीता, लेकिन बीबीएलबी में दाखिला मिला। सबसे बड़ी दिक्कत रहने की थी। भुवनेश्वर में ट्राइबल स्टूडेंट्स को हॉस्टल मिलना कठिन था। काफी भटकने के बाद एक जगह वन विभाग की जमीन देखी। पैसे नहीं थे लेकिन निश्चय किया कि यहां एक घर बनाते हैं। अपने जान-पहचान, रिश्तेदार, गांव, समाज हर जगह से चंदा जमा किया। हो जनजाति के कुछ और छात्रों को इस काम में लगाया। तीन महीने में छत हो गई। आज वहां म्0 छात्र रह कर पढ़ाई कर रहे हैं। वे झुग्गी-झोपडि़यों में रहनेवालों को मुफ्त में ट्यूशन भी पढ़ाते हैं।