JAMSHEDPUR: कथनी और करनी का फर्क क्या होता है, ये पीके ने देखा। पीके ने पिंजड़े में कैद एक बेजुबान पक्षी इंसानों का भविष्य बताते देखा वहीं दूसरी तरफ जिससे सबका वर्तमान और भविष्य है उस पानी को सड़क पर बहते देखा। सुखी जीवन के लिए लोग क्या-क्या उपाय करते हैं, लेकिन जिसके बिना जीवन संभव ही नहीं उस पानी को बचाने के लिए सड़क पर लगे नल को बदलने का टाइम किसी के पास क्यों नहीं है? जवाब की तलाश में निकला पीके कई सवालों से घिरता गया। कई सवालों ने हैरान किया तो कई ने परेशान।

कथनी और करनी का फर्क

हमारा देश ऐसा है जहां इंसान तो क्या जानवर, पेड़-पौधों, नदी-पहाड़ों की भी पूजा की जाती है। क्या ये पूजा सिर्फ धार्मिक स्थलों और धर्म की किताबों तक ही सीमित है? पीके ने देखा जिस गाय को लोग माता कहकर पूजते हैं उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। डस्टबीन के आस-पास पड़े कचरे को खाकर ये अपना पेट भरती हैं। अक्सर इस जूठन के साथ कचरे में पड़े पॉलिथिन और ऐसी ही अन्य चीजें भी गलती से निगल लेती है जो कई तरह की बीमारियों के साथ-साथ उनके मौत की वजह भी बनती है।

पीके का सवाल- क्या इंसानों की यही फितरत है कि कहते कुछ हैं और करते कुछ और? एक तरफ जिसकी पूजा करते हैं, दूसरी तरफ उस पर अत्याचार भी करते हैं।

तोता बताता है भविष्य

सॉफिस्टिकेटेड सैटेलाइट और आधुनिक उपकरणों से जानकारी जुटाने के बावजूद कई बार मौसम का सही पूर्वानुमान तक नहीं मिल पाता। अगली सरकार किसकी बनेगी यह बताने में बड़े-बड़े एग्जिट पोल भी फेल हो जाते हैं, लेकन पिंजड़े में बंद एक तोता लोगों का पूरा जीवन एक पल में बता देता है। लाखों-करोड़ों की लागत के बावजूद सैटेलाइट, एग्जिट पोल कई बार एक छोटी सी भविष्यवाणी नहीं कर पाते, लेकिन सिर्फ क्0 रुपए खर्च करने पर एक तोता कुछ सेकेंड में एक पर्ची निकालकर इंसान का पूरा भविष्य बता देता है। पीके ने शहर में कुछ ऐसा ही नजारा देखा। सड़क के किनारे बैठे बाबा तोते के जरिए लोगों का भविष्य बता रहे थे। आने-जाने वाले कई लोग पूरी गंभीरता के साथ तोते की इस भविष्यवाणी के लिए बाबा के पास रूक अपना भविष्य जान रहे थे। पीके हैरान, क्या ऐसा भी होता है?

पीके का सवाल- क्या एक तोता इंसान का भविष्य बता सकता है? क्या अपना भविष्य इंसान खुद नहीं बनाता? क्या हमारे कर्म हमारा भविष्य निर्धारित नहीं करते? अगर हां, तो फिर क्या यह महज एक अंधविश्वास नहीं है?

और बहता गया पानी

सड़क पर लगे नल से पानी बह रहा है। आसपास से सैकड़ों लोग गुजर रहे हैं, लेकिन किसी को परवाह नहीं। किसी के पास भी नल को बंद करने का टाइम नहीं। पानी के बगैर जीवन संभव नहीं है। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक किसी न किसी काम में इसका इस्तेमाल होता है। प्यास बुझाने के साथ-साथ नहाने, कपड़ा-बर्तन धोने तक हर काम में इसका इस्तेमाल है। फिर भी किसी को इसकी परवाह नहीं है। इस नजारे ने पीके को हैरान कर दिया।

पीके का सवाल-जो चीजें समझ से परे हैं उनके पीछे इंसान भागते हैं, लेकिन जो जीवन का आधार है उसे बचाने की चिंता किसी को भी नहीं है। क्या हमें इनकी चिंता नहीं करनी चाहिए? क्या जीवन के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों को यूं ही बर्बाद होते देखना चाहिए?