-ससुराल से आई हरी साड़ी व लहठी पहनेंगी व्रती महिलाएं

-11 महिलाओं व मुहल्लेवासियों के भोज के बाद होगा समापन

-यह पर्व सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन शुरू होता है

JAMSHEDPUR: क्फ् दिनों की पूजा के बाद शुक्रवार को मधुश्रावणी व्रत का समापन होगा। शादी के बाद पड़ने वाले पहले सावन में नव विवाहित सुहागन अपने मायके में जाकर विधि-विधान से यह पूजा करती हैं। विवाह के बाद पहले सावन में होने वाली इस पूजा का अलग ही महत्व है। यह पूजा करने के लिए शहर मिथिला समाज की शहर की अधिकतर नव विवाहिताएं अपने मायके गई हैं। पर्व को लेकर उनमें खासा उत्साह है और घरों में पूरे जोर-शोर से तैयारियां की गई हैं।

गाती हैं पारंपरिक गीत

नव विवाहिता अपनी बहनों एवं सहेलियों के साथ मिथिला के पारंपरिक गीतों को गाते हुए विभिन्न बगीचों एवं मंदिरों में जाकर फूल तोड़ती हैं और दूसरे दिन इसी बासी फूल से नाग-नागिन सहित भगवान भोलेनाथ व गौरी की पूजा करती हैं। इस पूजा में हरे रंग की चीजों का इस्तेमाल ज्यादा होता है, क्योंकि सावन महीना ही हरियाली का माना जाता है। शादीशुदा महिलाएं हरी साड़ी और हरी लहठी पहनती हैं। मधु श्रावणी में सुबह पूजा और कथा होती है और शाम को बांस की बनी हुई टोकरी को फूल और पत्तों से सजाया जाता है।

ससुराल से आती है सामग्री

यह पूजा नव विवाहित अपने मायके में करती हैं। पूजा के लिए उपयोग में आने वाली हर सामग्री ससुराल से आती है। मिट्टी के नाग-नागिन गढ़े जाते हैं। ससुराल से साड़ी और श्रृंगार पिटारी आती है जिसमें लाह की चूड़ी, सिंदूर, धान का लावा होता है। साथ ही मायके वालों के लिए भी उपहार भेजे जाने की परंपरा है। व्रती क्फ् दिन की पूजा में वही साड़ी पहनती हैं। इस त्योहार के साथ प्रकृति का भी गहरा नाता है। कई घरों में पूजा स्थल पर रंगोली भी बनाई जाती है। पूजा के लिए सबसे पहले एक कोहबर बनाया जाता है, जहां प्रति दिन पूजा की जाती है। पहले दीप जलाते हैं, फिर ससुराल से आए सामानों के साथ मैना के पत्ते पर धान का लावा रखा जाता है। इसके बाद उस पर दूध चढ़ाया जाता है। व्रती हर सुबह कथा सुनने के बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं। व्रती महिलाएं क्फ् दिनों तक नमक का सेवन नहीं करती हैं। यह पर्व सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन शुरू होता है। इस वर्ष मधु श्रावणी पूजा ख्ब् जुलाई से शुरू हुई और पांच अगस्त को इसका समापन होगा। व्रत के आखिरी दिन पति पत्‍‌नी से मिलने उसके मायके आते हैं। शाम को पूजा संपन्न होने के बाद क्क् महिलाओं को भोजन कराया जाएगा। इसके बाद मुहल्ले के लोगों को भोज कराया जाएगा। तब जाकर व्रती महिला भोजन करेगी और पूजा का विसर्जन करेगी।