-को-ऑपरेटिव कॉलेज में ¨हदी साहित्य में आदिवासी विमर्श विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

-वक्ता बोले, प्रकृति प्रेमी होते हैं आदिवासी, उनसे ही सुरक्षित हैं जंगल और पहाड़

JAMSHEDPUR: को-ऑपरेटिव कॉलेज में आदिवासी विमर्श विषय पर संगोष्ठी का आयोजन शनिवार को ¨हदी डिपार्टमेंट की ओर से किया गया। मुख्य वक्ता प्रख्यात कथाकार रणेन्द्र कुमार ने कहा कि ग्लोबोलाइजेशन के इस दौर में अगर हम जिंदा है तो आदिवासियों के कारण ही हैं। आदिवासी प्रकृति प्रेमी होते हैं। इस कारण पहाड़ व जंगल सुरक्षित हैं। आदिवासी समाज में आज भी वर्ण व्यवस्था व जाति व्यवस्था नहीं है। इस समाज में निचले तबके का व्यक्ति ही पुजारी है। सारी सामाजिक व्यवस्था एक सिस्टम के तहत चलती है। इस कारण यह समाज पूरी तरह संगठित रहता है। कृषि सभ्यता से जुड़े लोग प्रकृति से जुड़े रहते हैं। आदिवासी समाज के भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति ही करता है, लेकिन अन्य समाज में यह नहीं है। जन्म से लेकर मरण तक के सारे कार्य सभी समाजों में प्रकृति पर आधारित है। लेकिन यहां विकास के लिए प्रकृति का विनाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ¨हदी साहित्य में आदिवासी दर्शन के इन सब बातों का उल्लेख करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अन्य लोग दिकू शब्द का गलत इस्तेमाल करते हैं, जबकि आदिवासी समाज में दिकू उन्हें कहा जाता है जो बिना मेहनत के खाते हैं। सभी समाज में स्त्रियों को महत्वपूर्ण दर्जा मिला हुआ है। आज स्त्रियों के शरीर की नुमाईश विज्ञापनों में हो रही है, फिर भी समाज चुप है। आदिवासी समाज में इस तरह की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार टूटने के कारण आज लोग नशा सेवन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज आदिवासी समाज को डॉयन प्रथा व नशा के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। मौके पर को-ऑपरेटिव कॉलेज के ¨हदी डिपार्टमेंटाध्यक्ष डॉ। विजय कुमार पीयूष, डॉ। अशोक सिन्हा, डॉ। अविनाश कुमार सिंह सहित कई प्रोफेसर व छात्र उपस्थित थे।

आदिवासी नेता ही लूट रहे आदिवासियों को : जयनंदन

को-ऑपरेटिव कॉलेज में ¨हदी साहित्य में आदिवासी विमर्श विषय पर संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए प्रख्यात कथाकार जयनंदन ने कहा कि झारखंड में तो आदिवासी नेता ही आदिवासियों को लूटने का कार्य कर रहे हैं। आदिवासी मुख्यमंत्रियों के बनने के बावजूद आदिवासियों का विकास नहीं हो पाया। आदिवासी जीवन दर्शन से संबंधित लेख ¨हदी साहित्य में बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है, इसे और उभारने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि चांडिल डैम आज फ्ब् साल से पूरा नहीं हो पाया। इसका पानी वहां के निवासियों को न मिलकर उसका पानी कंपनियां इस्तेमाल कर रही है और वहां के लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं।

आदिवासी ही झेलते हैं विस्थापन: डॉ। मिथिलेश

रांची विश्वविद्यालय के ¨हदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ। मिथिलेश ने कहा कि यह बड़ी विडंबना है कि पूरे देश-विदेश में जहां आदिवासी रहते हैं वहीं पर फैक्ट्रियां लगती है और वे विस्थापन का दंश झेलते हैं। उन्होंने कहा कि जहां ये फैक्ट्रियां लगती हैं, वहीं के लोग सबसे ज्यादा गरीब होते हैं। इस विसमता को पाटने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें आदिवासियों का जीवन दर्शन ग्रहण करने की आवश्यकता है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकारें स्मार्ट सिटी, बुलैट ट्रेन बनाने की बात करती है, लेकिन कोई स्मार्ट गांव बनाने की बात नहीं करता है। संगोष्ठी को बिहार विधानसभा के पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ चांपिया की बेटी बहालेन चांपिया व शहर के आदिवासी नेता डेमका सोय ने संबोधित किया।