JAMSHEDPUR: कहते हैं न कि किसी पुरूष की कामयाबी के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है, लेकिन हमारी सोसाइटी में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है, जिनकी सफलता के पीछे किसी पुरूष का हाथ है। हम आपके लिए तीन एग्जांपल्स ले कर आए हैं। इनमें से एक हैं टेल्को स्थित विद्या भारती चिन्मय विद्यालय की टीचर मंजू कादयान, बारीडीह हाई स्कूल की टीचर रीना शर्मा और ग्रेजुएट कॉलेज की प्रोफेसर अरुंधती डे। तीनों अपने हसबेंड की हेल्प से अपनी फैमिली व प्रोफेशनल लाइफ में सफलता की नई कहानी लिख रही हैं।

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पति ने हमेशा बढ़ाया हौसला

शादी के बाद तीन साल लखनऊ में रहकर पीएचडी की, इसके बाद कॅरियर को लेकर कई सालों तक लंबी भागदौड़ रही। समय के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियां बढ़ीं, लेकिन पति ने हमेशा इन जिम्मेदारियों को उठाने के लिए अपना कंधा आगे बढ़ाया। कुछ मौके आए जब खुद कदम पीछे हटाने के बारे में सोचा, लेकिन पति ने हौसला बढ़ाया और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। एक महिला के सक्सेस में पति का रोल कितना अहम हो सकता है इसका बेहतरीन उदाहरण अरुंधती डे हैं। ग्रेजुएट स्कूल कॉलेज फॉर वीमेन में केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर अरुंधती डे के पति अमित शंकर डे ने हमेशा अपनी पत्नी के साथ खड़े रहकर उन्हें उनके सपनों को पूरा करने में मदद की। यह उनका सपोर्ट ही है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने के साथ-साथ पढ़ाई से लेकर प्रोफेसर जैसे सम्मानित पद का सफर अरुंधती आसानी से तय कर पाईं। अमित शंकर डे एमडी ऑफिस में कॉस्ट मैनेजमेंट एंड रिव्यू डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं।

हमेश्ा मिला साथ

अरुंधती की शादी ख्000 में हुई थी। उस वक्त वो लखनऊ में रहकर पीएचडी कर रही थीं। शादी के बाद पति ने उनके पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट नहीं आने दी। अरुंधती ने बताया कि पीएचडी करने का बाद वो जॉब नहीं करना चाहती थीं, लेकिन पति ने हौसला बढ़ाया। पति के इस सपोर्ट के बाद उन्होंने अपने कॅरियर को आगे बढ़ानी की ठानी। ख्00भ् में घर में अपनी एक साल ख् महीने की बेटी आलोका को पति के जिम्मे छोड़ वो बतौर रिसर्च एसोसिएट आईआईटी खड़गपुर गईं। इसके बाद कोलकाता में कॉन्ट्रैक्ट रिसर्च ऑर्गनाइजेशन में काम किया। बेटी जब तीन साल की हुई तो वे वापस पति के पास जमशेदपुर लौटीं। ख्008 में जेपीएससी के थ्रू बतौर प्रोफेसर नियुक्ति हुईं। इस दौरान अमित शंकर डे हर कदम पर उनके साथ रहे। उनका यह साथ आज भी कुछ वैसा ही है। अरुंधती ने बताया कि फिलहाल वो प्रोफेसर के साथ-साथ एग्जामिनेशन कंट्रोलर भी हैं। ऐसे में वर्क प्रेशर और जिम्मेदारी काफी रहती है। उन्होंने कहा, यह पति का सपोर्ट ही है कि इस जिम्मेदारी को अच्छे ढंग से निभा पा रही हैं। दोनो बेटियों, ग्यारह साल की आलोकनंदा डे और छह साल की अनन्या की देखभाल में भी अमित अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं।

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हसबेंड ने नहीं छोड़ने दी जॉब

आदित्यपुर निवासी रीना शर्मा के हसबेंड जेके झा लोयोला स्कूल में टीचर हैं। रीना खुद बारीडीह हाई स्कूल में टीचर हैं। रीना ने कहा कि वे वर्ष ख्00क् से टीचिंग में हैं। वर्ष ख्00ख् में उनकी शादी हुई। शादी के वक्त रीना यह सोचकर परेशान थीं कि शादी के बाद उनकी जॉब कंटिन्यू रहेगी या नहीं, लेकिन शादी के बाद सारी परेशानी दूर हो गई। रीना ने बताया कि उनके हसबेंड ने उन्हें पूरा सहयोग दिया और जॉब नहीं छोड़ने को कहा। रीना ने कहा कि उनके हसबेंड ने उनसे कहा था कि दोनों मिलकर सब कुछ मैनेज कर लेंगे। दोनों की आपसी तालमेल की वजह से शादी से पहले शुरू हुआ प्रोफेशन शादी के क्फ् साल बाद भी कायम है।

बच्चे को नहलाने व खिलाने की जिम्मेवारी पति की

रीना और जेके झा का एक बेटा है अरमान। वह लोयोला स्कूल में पढ़ता है। रीना ने बताया कि उनके हसबेंड बेटे को स्कूल ले जाते हैं। वे स्कूल से लौटते वक्त उसे साथ घर ले आती हैं। जब वे स्कूल जाती हैं तो हसबेंड ही बेटे को नहलाने, खाना खिलाने से लेकर सारा काम करते हैं। घर में बच्चे को पढ़ाने में भी हसबेंड उनकी हेल्प करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं घर का काम खुद ही कर लेती हैं, लेकिन उनके हसबेंड भी इसमें उनकी हेल्प करते हैं।

किसी काम के लिए नहीं देता प्रेशर

रीना के हसबेंड जेके झा ने कहा कि वे अपनी वाइफ पर कभी भी कोई एकस्ट्रा बर्डेन नहीं देते। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि सुबह देर से सोकर उठते हैं। ऐसे में नाश्ता बनाने का प्रेशर रीना पर नहीं देता। घर में ब्रेड व दूसरे अरेंजमेंट रहता है, उससे काम चल जाता है और खाना बाहर खा लेते हैं। स्कूल जाने के दौरान बेटे को तैयार करने में भी रीना हेल्प करती हैं। वह नाश्ता तैयार करती हैं और जेके झा खुद तैयार होने के साथ-साथ बेटे को भी तैयार करते हैं।

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हर कदम रखते हैं साथ मिलकर

मंजू कादयान आज जिस मुकाम पर हैं, उसमें उनके हसबेंड स्क्वाड्रन लीडर एनएस कादयान का सपोर्ट है। मंजू टेल्को स्थित विद्या भारती चिन्मय विद्यालय में टीचर हैं और उनके हसबेंड एनएस कादयान टाटा मोटर्स में सिक्योरिटी हेड। उनके दो बच्चे हैं। उनकी बेटी वंशिका क्लास छह में और बेटा विख्यात क्लास चार का स्टूडेंट है। मंजू के हसबेंड एनएस कादयान ने बताया कि दोनों डिफेंस फैमिली से बिलांग करते हैं। वर्ष ख्00क् में उनकी शादी हुई। एनएस कादयान ने कहा कि उन्होंने कभी मंजू पर इस बात के लिए दबाव नहीं बनाया कि वह क्या करे और क्या नहीं। उसके हर काम में मेरा सपोर्ट रहता है। किचन में भी उसकी हेल्प जरूर करता हूं।

हसबेंड के प्रोत्साहन के बाद ही आई टीचिंग में

मंजू कादयान ने कहा कि शादी के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद हसबेंड के प्रोत्साहन के बाद वर्ष ख्00म् में उन्होंने बीएड भी कम्प्लीट किया। इसके बाद उनकी केंद्रीय विद्यालय में जॉब भी हो गई। वे लोग मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले हैं, लेकिन जब उनके हसबेंड का ट्रांसफर जमशेदपुर हुआ तो उन्होंने भी ट्रांसफर लिया, लेकिन उनकी पोस्टिंग चक्रधरपुर में हुई। कुछ महीनों तक तो वे वहां आना-जाना करती रहीं, लेकिन बच्चों के कारण व स्कूल काफी दूर होने के कारण उन्होंने उसे छोड़ दिया। बाद में उन्होंने टेल्को स्थित विद्या भारती चिन्मय विद्यालय में टीचर के रूप में ज्वाइन कर लिया। उन्होंने कहा कि वे स्कूल जाते वक्त बच्चों को उनके स्कूल ड्रॉप कर देती हैं और वापसी में उन्हें घर ले आती हैं। उन्होंने कहा कि हसबेंड के सपोर्ट का ही परिणाम है कि उन्होंने ज्योग्राफी में कॉरेस्पांडेंस कोर्स कर रही हैं।

हसबेंड रखते हैं पूरा ध्यान

मंजू कादयान ने कहा कि टीचिंग प्रोफेशन में होने के नाते बच्चों की फिलिंग वे बखूबी समझ लेती हैं। वर्किग होने का एक फायदा यह है कि बच्चे कॉफिडेंट और इंडिपेंडेंट हो जाते हैं। दोनों भाई-बहन में बेहतर बांडिंग में डेवलप हो गई है और दोनों एक दूसरे का बेहतर ध्यान रखते हैं। उन्होंने कहा कि हसबेंड इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि कोई डिस्टर्बेस न हो। वे खुद ही बच्चों का होमवर्क पूरा करवाते हैं।