छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: बिष्टुपुर स्थित शावक नानावटी तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान में मंगलवार को निजी व सरकारी विद्यालयों में छात्रों को मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के खिलाफ शिक्षकों और स्कूल प्रबंधकों को जागरूक करने के लिए आयोजित कार्यशाला में बच्चों को शारीरिक व मानसिक दंड, उनके साथ भेदभाव जैसे मुद्दों पर दिनभर मंथन चला। विशेषज्ञों ने कॉर्पोरल पनीशमेंट पर रोक लगाने के लिए अपने बहुमूल्य विचार रखे और साथ ही इसके नुकसान से लोगों को अवगत कराया।

होगी दंडात्मक कार्रवाई

राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की ओर से आयोजित इस कार्यशाला का सह आयोजक जिला शिक्षा विभाग था। कार्यशाला को संबोधित करते हुए एनसीपीसीआर झारखंड की अध्यक्ष आरती कुजुर ने कहा कि बच्चों को शारीरिक-मानसिक दंड या भेदभाव जैसे मामले प्रकाश में आने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। कार्यशाला में मनोविशेषज्ञ के रूप में उपस्थित डॉ निशांत गोयल ने बच्चों के मनोविज्ञान से संबंधित जरूरी बातें साझा की और कॉर्पोरल पनीशमेंट के दुष्परिणामों पर विस्तार से चर्चा करते हुए आगाह भी किया। उन्होंने बताया कि कैसे बच्चों के साथ सकारात्मक व्यवहार के जरिए शिक्षण को प्रभावी बनाया जा सकता है और छात्रों को बिना प्रताडि़त किए सही दिशा दिखाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि कार्पोरल पनीशमेंट का बच्चों पर दूरगामी असर होता है। इससे शिक्षकों को बचना चाहिए।

कार्पोरल पनीशमेंट दंडनीय

एनसीपीआर की ओर से तकनीकी विशेषज्ञ परेश शाह ने कॉर्पोरल पनीशमेंट के नुकसान व भावी पीढ़ी पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव के बारे में प्रभावी प्रस्तुति दी। उन्होंने इस संबंध में कानूनी प्रावधानों से भी अवगत कराया और कहा कि यह दंडनीय अपराध है। ऐसा करने पर सजा हो सकती है।

मोटू कहने पर करनी पड़ती है पिटाई

कार्यशाला के अंत में खुले सत्र का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिभागियों ने अपने विचार रखे और कई जटिल स्थितियों का जिक्र करते हुए विशेषज्ञों से खुलकर सवाल पूछे। इस दौरान एक प्रिंसिपल ने कहा कि स्कूल के कुछ बच्चे उन्हें मोटू कहकर बुलाते हैं ऐसे में मजबूरीवश उनकी पिटाई करनी पड़ती है। इस पर एनसीपीसीआर के विशेषज्ञों ने समझाते हुए कहा कि वे ऐसा कर रहे हैं तो बच्चों को गलत दिशा की ओर ढकेल रहे हैं। इस खुली चर्चा का लाभ यह दिखा कि कार्यक्रम के समापन पर सभी प्रतिभागियों ने सकारात्मक रवैया दिखाते हुए इसके प्रति दूसरों को भी जागरूक करने का आश्वासन दिया।

क्या है कार्पोरल पनीशमेंट

आमतौर पर यह माना जाता है कि जब बच्चा स्कूल में जाता है तो शिक्षक उसके अभिभावकों के विकल्प के तौर पर होते हैं और बच्चे को सही दिशा देते हैं। समय के साथ विद्यालयों में कॉर्पोरल पनीशमेंट ने एक प्रथा का रूप ले लिया। साल दर साल शिक्षकों की एक पीढी से दूसरी पीढी में यह कुप्रथा हस्तांतरित होती रही। शिक्षण संस्थानों में बच्चों के बीच अनुशासन बनाए रखने के नाम पर जो सबसे ज्यादा प्रचलित कुप्रथा रही है वह है शारीरिक व मानसिक दंड (कॉर्पोरल पनीशमेंट) देने की। इसमें बच्चों के बीच अनुशासन के लिए शारीरिक और मानसिक दंड को आवश्यक समझा जाता है।

कॉर्पोरल पनीशमेंट का कानूनी प्रावधान

शिक्षा का अधिकार अधिनियम -2009 की धारा-17 किसी भी तरह के शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना व भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसके साथ ही जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 की धारा-82 में भी यह परिभाषित है और ऐसे कृत्य को अंजाम देने वाले व्यक्ति के प्रति कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान है।

जमशेदपुर से हुई शुरुआत

देश में इस तरह की यह पहली कार्यशाला आयोजित की गई जिसके लिए जमशेदपुर को चुना गया। दूसरे शहरों में भी इसी प्रकार कार्यशाला का आयोजन किया जाना है। कार्यशाला को प्रभावी बनाने के लिए स्कूल शिक्षा के क्षेत्र से जुडी कई जानी मानी हस्तियों व विशेषज्ञों को बुलाया गया था। इसमें शैलेश कुमार चौरसिया (आइएएस, अतिरिक्त सचिव) मानव संसाधन विकास मंत्रालय, झारखंड एसीपीसीआर की अध्यक्ष आरती कुजुर, सचिव कॉर्पोरल पनिशमेंश कमिटी श्री संजय मिश्र, मनोचिकित्सक डॉ निशांत गोयल आदि शामिल हैं।