रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में जहां-तहां बसों के खड़े होने की समस्या से सिटी के लोगों को जल्द ही निजात मिलने वाली है। नगर निगम और जिला प्रशासन के सहयोग से सिटी के करीब 60 स्थानों को चिन्हित कर वहां बस स्टापेज बनाने की कवायद चल रही है। चिन्हित स्थानों पर बस स्टॉपेज के रूप में इसे डेवलप किया जाएगा। जहां नागरिक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। राजधानी रांची में बसों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। एसी, नॉन एसी और सीएनजी बसों को भी चलाने की योजना है। आने वाले समय में पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा और ज्यादा बेहतर हो उसी उददेश्य से यह निर्णय लिया गया है। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को और ज्यादा सुविधायुक्त बनाने में रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन भी सहयोग देगा। फिलहाल राजधानी रांची में 30 से भी कम सिटी बसें चल रही हैं, जिससे आम नागरिकों को आवागमन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं बस स्टॉपेज के नहीं होने के कारण भी पैसेंजर्स इधर-उधर खड़े होकर बसों का इंतजार करते रहते हैं।

समय भी होगा तय

बसों का परिचालन बेहतर तरीके से हो और अधिक से अधिक लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही इस्तेमाल करें, इसके लिए कॉरपोरेशन हर संभव प्रयास कर रहा है। बस स्टॉपेज के साथ-साथ बसों के रुकने का समय भी तय किया जाएगा। निर्धारित समय पर बस अपने स्थान पर आकर रुकेगी। यहीं से सवारी बस में बैठेंगे। पिस्का मोड़ से लेकर फिरायालाल चौक, लालपुर, अरगोड़ा चौक, हरमू आदि स्थानों पर बस स्टापेज बनाए जाएंगे। स्मार्ट सिटी में सारी चीजें व्यवस्थित ढंग से हो, इसका ख्याल रखा जा रहा है। नगर निगम और जुडको की ओर से शहर की सूरत संवारने को लेकर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में साफ-सफाई, नो पार्किंग, वेंडर मार्केट में फुटपाथ और सब्जी दुकान लगाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। सिटी को जाम फ्री बनाने की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं।

जहां-तहां रोककर बैठाते हैं सवारी

फिलहाल राजधानी में सिटी बस हो या ऑटो सभी बेतरतीब तरीके से सड़क पर चलते हैं। जहां मन हुआ वहीं गाड़ी रोक कर सवारी बैठाने लगते हैं। इससे यातायात पर काफी असर पड़ता है। बस या ऑटो के पीछे चलने वाले लोगों को मुसीबत हो जाती है। ड्राइवर कभी अचानक रोककर सवारी उतारने या बिठाने लगते हैं जिससे पीछे आ रहे लोग कई बार दुर्घटना के भी शिकार हो जाते हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने पहले भी इस मुददे को प्रमुखता से उठाया था। जिसमें बस चालकों की कलाबाजी पर पड़ताल करते हुए खबर प्रकाशित की गई थी। बस से भी ज्यादा समस्या ऑटो वाले खड़े करते हैं। ऑटो चालकों के लिए भी निश्चित स्थान जरूरी है। जहां से ये लोग सवारी बैठाएं या उतारें।

बेकार हुए पहले बने स्टापेज

सिटी के कुछ स्थानों पर पहले भी बस और ऑटो स्टापेज बनवाए गए थे। लेकिन देखभाल के अभाव में सभी स्टापेज बर्बाद हो गए। कहीं शेड उखड़ गया तो कहीं फुटपाथ दुकान सजने लगी। स्टापेज की देखभाल के लिए निजी कंपनी को जिम्मेवारी सौंपी गई। लेकिन कंपनी ने सिर्फ अपना विज्ञापन लगाकर छोड़ दिया। स्टॉपेज की न कभी रिपेयरिंग कराई गई न ही इसका रंग-रोगन हुआ। इन स्टॉपेज के बारे में न तो पब्लिक को पता है और न ही ड्राइवर को। बस या ऑटो भी इन स्टापेज के पास नहीं रुकते हैं। दो साल पहले बस स्टापेज की मरम्मती की योजना बनी थी। इसके लिए पांच करोड़ रुपए भी प्रस्तावित हुए। लेकिन पूरी योजना फाइलों में ही दबी रह गई।

पब्लिक में भी अवेयरनेस नहीं

पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने वाले लोगों में भी सिविक सेंस की कमी नजर आती है। लोगों को भी खुद को अवेयर करना होगा। ऑटो या बसों के निश्चित स्टापेज पर ही जाकर गाड़ी में बैठें या उतरें। ऐसा करने से न तो गाड़ी चालक को दिक्कत होगी और न ही पैसेंजर या पीछे आने वाले मुसीबत में फंसेंगे। ऑटो और बस ड्राइवर पहले और ज्यादा सवारी बैठाने के चक्कर में दूसरे व्यक्ति को नजर अंदाज करते हैं। वहीं इन लगाम लगाने वाली पुलिस भी चौक-चौराहों या सड़क पर खड़े होकर मूकदर्शक बन कर सिर्फ लोगों को देखती रहती है। या फिर पुलिस वाले बगैर हेलमेट पहने बाइक या स्कूटी चलाने वाले को पकडऩे में बिजी रहते हैं। पुलिस, पब्लिक और ड्राइवर सभी के सहयोग से ही राजधानी का आवागमन बेहतर होगा। सड़क पर जाम की समस्या खड़ी नहीं होगी।