RANCHI:कोरोना वायरस ने एक बार फिर बसों के पहिए पर ब्रेक लगा दिया है। लगभग दो महीने से सभी बसें खड़ी हैं। एक ओर जहां बसें अपनी जगह पर रुकी हुई हैं, तो वहीं दूसरी ओर बस ओनर्स की देनदारियां दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। बस ओनर 2020 के लॉकडाउन से उबरे भी नहीं थे कि इस साल फिर अप्रैल महीने से ही स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के नाम पर राजधानी में आशिंक लॉकडाउन लागू हो गया। हालांकि, अप्रैल में ट्रांसपोर्टेशन की अनुमति थी लेकिन संक्रमण की दहशत ऐसी थी कि बसों को सवारी नहीं मिल रहे थे। वहीं इस महीने से ट्रांसर्पोटेशन में भी रोक लगा दी गई। बस कारोबार से जुडे़ एजेंट, ड्राइवर, खलासी, कंडक्टर, मैकेनिक व दूसरे सभी लोगों को इससे भारी परेशानी का सामना करना पड़ा है। बस ओनर की भी हालत खराब होती जा रही है।

आमदनी नहीं पर खर्च जस के तस

बस ओनर एसोशिएशन के अध्यक्ष कृष्ण मोहन सिंह ने बताया कि 2020 से ही आमदनी पर गहरा असर पड़ा है। बसें खड़ी हैं तो एक पैसे की आमदनी नहीं हो रही। दूसरी ओर खर्च जस के तस हैं। एक साल में सिर्फ तीन महीने ही गाड़ी ठीक से चली है। ऐसे में गाड़ी का इंश्योरेंस, इंस्टालमेंट, टैक्स चुकाना भी मुश्किल हो रहा है। बस ओनर्स की परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। एक गाड़ी का इंस्टालमेंट से लेकर इंश्योरेंस में लगभग एक लाख रुपए का खर्च आता है। कमाई ही नहीं होगी तो बस ओनर भी कहां से चुका पाएंगे। कृष्ण मोहन ने बताया कि एक बस से लगभग 15 परिवार पलते हैं। कमाई नहीं होने से सब की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है। आज ऐसी परिस्थिति आ गई है कि सरकार एक दो दिन में बाजार खोल भी देती है तो 50 परसेंट बस ओनर ऐसे हैं, जो अपनी गाड़ी रोड पर लाने की स्थिति में नहीं हैं।

स्कूल बसों के ओनर भी पस्त

बसों में भी स्कूल बसों के मालिकों की हालत ज्यादा खराब है। लगभग 14 महीने से स्कूल बसें खड़ी हैं। बसों के ड्राइवर और खलासी या तो सब्जी बेच रहे हैं या तो कोई और काम कर रहे हैं। 2020 के मार्च महीने से ही अधिकतर स्कूल बंद हैं। अब भी स्कूलों के खुलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। सिटी के अलग-अलग स्कूलों में लगभग 450 स्कूली बसें चलती हैं। इन बसों के ओनर से लेकर ड्राइवर, खलासी की भी हालत खराब है। बीते डेढ़ साल से इन्हें सभंलने का मौका भी नहीं मिला है। एशोशिएशन के अध्यक्ष कृष्ण मोहन सिंह ने बताया कि स्कूलों के प्रबंधन की ओर से बस ओनर को कुछ भी पेमेंट नहीं किया गया। जबकि टैक्स, ईएमआई, स्टाफ को पेमेंट संबंधित कई खर्च बस ओनर पर है। आमदनी नहीं होने से बस ओनर की हालत बिगड़ती जा रही है।

रांची से खुलती हैं 300 बसें

राजधानी में लगभग 300 बसें रोजाना चलती हैं। इसमें 150 बसें राज्य के अंदर एवं 150 बसें राज्य से बाहर चलने वाली हैं। सभी की हालत एक जैसी है। एक महीने से बसों के हर तरह के आवागमन पर प्रतिबंध लगा हुआ है। 300 बसों पर पांच हजार लोग आश्रित हैं, जिनकी कमाई भी बंद है। उनके परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल हो रहा है। एसोसिएशन के अध्यक्ष के अनुसार बसों का परिचालन भले नहीं हो रहा है, लेकिन टैक्स जारी है। टैक्स के बोझ तले बस मालिक दब गए है। बैंकों से भी ईएमआई को लेकर आने वाले फोन कॉल ने भी मालिकों का जीना मुश्किल कर रखा है।

सरकार से राहत की उम्मीद

बस संचालक उम्मीद भरी निगाह से सरकार की ओर देख रहे हैं। सरकार से उन्हें मदद की आस है। बस चालकों का कहना है कि सरकार को रोड टैक्स में राहत देनी चाहिए। जब बसें रोड पर चली ही नहीं फिर रोड टैक्स क्यों। कई बस ओनर ने लोन के लिए अप्लाई भी किया है। बस संचालक एक-एक बस का करीब 12000 रुपए रोड टैक्स देते हैं। समय पर नहीं देने पर फाइन का भी डर बना रहता है। इसके अलावा हर महीने ईएमआई 50,000 एवं सालाना इंश्योरेंस लगभग एक लाख का एक महीने के हिसाब से 8500 रुपए होता है। मतलब खड़ी बस का खर्चा भी 55 से 60 हजार रुपए है।

बस ओनर की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी है। बस मालिकों को सरकार से राहत की बड़ी उम्मीद है। सभी ओनर्स का कम से कम एक साल का टैक्स माफ होना चाहिए। बस से जुड़े सभी लोगों को संभलने के लिए कुछ विशेष राहत दी जाए। साथ ही सभी बसों के परिचालन का लाइफटाइम भी बढ़ाया जाए।

- कृष्ण मोहन सिंह, अध्यक्ष, बस ओनर एसोसिएशन, रांची