रांची(ब्यूरो)। राज्य का सबसे बड़ा सरकारी हॉस्पिटल भ्रष्टाचारियों और दलालों का अड्डा बन गया है। यहां खून के दलाल तो पहले से एक्टिव थे ही। अब इस अस्पताल के कुछ डॉक्टर से लेकर कर्मचारी तक वसूली में शामिल हो गए हैं। हम बात कर रहे हैं रिम्स की। यह हॉस्पिटल अपनी सुविधाओं के लिए कम असुविधाओं और समस्याओं के लिए अक्सर सुर्खियों में रहता है। इसी महीने एक डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी पर कार्रवाई की गई है, लेकिन इसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो रहा है। तीन-चार दिन पहले ही फिर एक बार पैसा मांगने का मामला सामने आया है। गिरिडीह से आए मरीज रंजन महतो के परिजनों ने बताया कि जल्द डॉक्टर से दिखाने के लिए उससे 1500 रुपए की डिमांड की गई।

रोकने-टोकने वाला भी नहीं

रिम्स में मरीजों से लगातार वसूली की जा रही है, लेकिन इसपर एक्शन लेने वाला तो छोडि़ए कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं। पहले दवा और टेस्ट के नाम पर रिम्स के कुछ चिकित्सक ऊपरी कमाई करते थे। अब सीधे इलाज के लिए पैसे मांगे जा रहे हैैं। हाल के दिनों में ऐसे केस सामने आए हैैं, जिसमें हिम्मत दिखाकर मरीज या उनके परिजनों ने डॉक्टर के खिलाफ आवाज उठाई। यह बात और है कि उस आवाज पर आगे कोई कठोर कार्रवाई नहीं हो सकी।

आर्थिक रूप से कमजोर मरीज आते हैं

रिम्स सरकारी हॉस्पिटल होने के नाते यहां ज्यादातर लोग फ्री इलाज कराने के उद्देश्य से ही आते हैं। इनमें आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों की संख्या अधिक रहती है। सिर्फ रांची ही नहीं बल्कि पूरे राज्य और राज्य के बाहर से भी मरीज अपना इलाज कराने रिम्स आते है। अब सवाल यह उठता है कि इस अस्पताल में भी डॉक्टरों द्वारा इलाज के नाम पर उगाही की जाएगी तो बेबस और लाचार मरीज कहां जाकर अपना इलाज कराएंगे। सिर्फ इलाज ही नहीं यहां तो बॉडी देने के लिए भी उगाही हो रही है। इसके अलावा डेथ सर्टिफिकेट, बर्थ सर्टिफिकेट लेने, ब्लड का इंतजाम करने, जांच और दवा के लिए भी लोगों से पैसे की मांग की जा रही है।

दलालों से सावधान के लगे हैं बोर्ड

रिम्स एडमिनिस्टिेे्रशन द्वारा हॉस्पिटल कैंपस में दलालों से सावधान संबंधित कई जगह बोर्ड लगाए गए हैं, लेकिन हॉस्पिटल के जो डॉक्टर, कर्मी, गार्ड और नर्स ही दलाल बने बैठे हैं तो उनपर रिम्स प्रबंधन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।

दिखावे के लिए शो-कॉज

डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत आने पर सिर्फ शो-कॉज किया जाता है। इसके अलावा कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती है। पुलिस भी ऐसे केस दर्ज करने की जगह पीडि़त को ही दौड़ाती है। इसका नतीजा है कि इस तरह के मामले थम नहीं रहे। इसका ताजा उदाहरण डॉक्टर अंशुल कुमार हैं। अब्दुल्ला ने डॉक्टर पर 40 हजार रुपए मांगने का आरोप लगाया। अब्दुल्ला शिकायत लेकर कई बार बरियातू थाने दौड़ता रहा,लेकिन उसकी शिकायत नहीं सुनी गई। अंत में उसने ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कराई। इसके बाद रिम्स प्रबंधन ने डॉक्टर को शो-कॉज जारी किया। चिकित्सा अधीक्षक की अध्यक्षता में जांच टीम भी गठित की गई। पूरी जांच रिपोर्ट निदेशक को सौंपने के बाद भी अबतक कोई कारवाई नहीं हुई है।

केस 1

19 नवंबर : गिरिडीह से आए मरीज रंजन महतो जल्दी इलाज कराकर वापस लौटना था। उन्होंने अस्पताल के स्वाथ्यकर्मी को जल्द डॉक्टर से दिखाने की बात कही। इस पर स्वास्थ्य कर्मी ने 1500 रुपए की मांग कर डाली।

केस 2

05 नवंबर : सीटीवीएस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राकेश कुमार पर मरीज ने 20,000 रुपए लेने का आरोप लगाया। इस पर अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे स्वास्थ्य मंत्री ने डॉक्टर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।

केस 3

2 नवंबर : बॉडी देने के एवज में सिमडेगा से आए एक परिवार से पांच हजार रुपए की मांग की गई। न्यूरो सर्जरी विभाग के एक कर्मचारी ने ही पैसे मांगे।

केस 4

20 अक्टूबर : कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुल सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग के कार्डियेक सर्जन डॉ। अंशुल कुमार पर ने अब्दुला नामक व्यक्ति से 40 हजार रुपए मांगे। अब्दूल्ला ने ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कराई।