रांची (ब्यूरो)। अगर हौसला रखते हैं तो हर नामुमकिन मुमकिन हो सकता है। इसे प्रूफ किया है रांची रिम्स की पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट की डॉ दिव्या सिंह ने। एक्सीडेंट के कारण 6 महीने तक अस्पताल में रहीं। व्हीलचेयर पर बैठी रहीं और आज अपने हौसले से बनीं डॉक्टर। रांची की रहने वाली दिव्या सिंह का बचपन से सपना था कि वह डॉक्टर बनें। इन्होंने डॉक्टर बनने के लिए खूब मेहनत करके पढ़ाई की। रिम्स में सभी डॉक्टरों से पहले पहुंचती हैं और सभी मरीजों का इलाज करके ही घर लौटती हैं।

एक्सीडेंट ने बदली जिंदगी

दिव्या कहती हैं कि हमें नियोनेटोलॉजी में एडमिशन करवाना था जिसके लिए हमें 15 दिसंबर 2013 को दिल्ली जाकर परीक्षा देनी थी। हमने इस परीक्षा की तैयारी काफी अच्छी तरह से कर ली थी। जिसके बाद हम और हमारे दोस्त ने दिल्ली जाकर के परीक्षा दी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दिल्ली में हमारा एक्सीडेंट हो गया। यह एक्सीडेंट काफी भयानक था। हम जिस कार में बैठे थे उसकी हालत भी काफी खराब हो गई और जो हमारे दोस्त गाड़ी चला रहे थे उनकी वहीं पर मौत हो गई। मैं कार के पीछे की सीट पर बैठी थी।

छह महीने रही अस्पताल में

दिव्या बताती हैं कि मैं इस एक्सीडेंट में घायल हो गईं। हमें कुछ दिनों तक कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हुआ है और मैं इस अस्पताल तक कैसे पहुंची। उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ यह याद है कि हमारी कार एक्सिडेंट हुई थी परंतु इसके बाद हमें कुछ मालूम नहीं है कि हम अस्पताल कैसे पहुंचे। मुझे कार से किसने निकाला। परंतु जब हमें बताया गया तो पता चला कि मेरा स्पाइनल कॉर्ड डैमेज हो गया था और तो और मेरी गर्दन के नीचे के अंग में भी पैरालाइसिस मार दिया था। इसकी वजह से मैं बिल्कुल काम नहीं कर पा रही थी।

परिवार ने बढ़ाया हौसला

दिव्या कहती हैं कि जब हमारा समय काफी खराब चल रहा था तब हमें पापा और भाई ने सहारा दिया। वह हमें हमारे सपने को लेकर के काफी कुछ समझाते थे और मेरे हौसले को बढ़ाते थे। वे बोलते थे कि तुमने जो सपने देखे हैं वह जरूर पूरे होंगे। वह कहते कि तुम जब ठीक हो जाओगी तब तुम वो सब कुछ कर सकती हो जो तुमने करने की ठानी है। जब मेरा इलाज चल रहा था तो मेरे पापा और भाई दोनों हमेशा मेरे साथ रहते थे।

रिम्स में पीडियाट्रिक्स ज्वाइन की

दिव्या ने बताया कि जब हम रांची में रहते थे तब मैं राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में पीडियाट्रिक्स विभाग में सीनियर रेजिडेंट के तौर पर काम करती थीं। परंतु जब मैं हादसे के छह महीने बाद दोबारा रिम्स च्वाइन करने गई तो वहां के अधिकारी मुझे व्हीलचेयर पर देख कहने लगे कि तुम इस स्थिति में मरीजों का इलाज कैसे करोगी। इतना कहकर मुझे वहां से लौटा दिया जाता था परंतु मैंने फिर भी हार नहीं मानी और मैं फिर से रिम्स च्वाइन करने के लिए गई। वहां के अधिकारियों से विनती की कि हमें एक मौका दीजिए जिससे मैं साबित कर दूंगी कि मुझे इस स्थिति में रहने के बावजूद भी काम में कोई कटौती नहीं होगी। काफी विनती करने के बाद उन लोगों ने हमें नौकरी पर रख लिया और फिर मैंने अपना काम करना प्रारंभ कर दिया।

पापा ने डिजाइन की मेरी कार

दिव्या बताती हैं कि हमें अस्पताल आने-जाने में काफी कठिनाइयां होती थीं, जिसे देख पापा से रहा नहीं गया तो मेरे पापा ने मेरे लिए मारुति ओमनी वैन को विशेष रूप से डिजाइन करवाया। जिससे मैं आसानी से उस पर बैठकर अस्पताल जा सकूं। इसको पापा ने इस तरह से डिजाइन करवाया था कि इसमें व्हील चेयर को लिफ्ट करने का सिस्टम लगा हुआ था। जिसकी वजह से अब हमें अस्पताल जाने में कोई परेशानी नहीं होती है।

38 हजार मरीजों का ऑनलाइन इलाज

दिव्या कहती है कि जब कोविड पीरियड का समय चल रहा था तब हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से हम खुद कई बार कोविड पॉजिटिव हो गईं, परंतु वहां के डायरेक्टर के आदेश के अनुसार मैं ई संजीवनी की ऑनलाइन ओपीडी से जुड़ गई और इस ऑनलाइन ओपीडी के जरिए खुद का इलाज तो किया। साथ ही साथ हमने कई मरीजों का इलाज करके उन्हें ठीक भी किया। मैं तीन साल में लगभग 38,000 से अधिक मरीजों का ऑनलाइन इलाज कर चुकी हूं, जिसमें कई बार तो हमने दूर में रहने वाले मरीजों से बात करके उनका इलाज किया और इसके साथ-साथ देश से बाहर भी दूसरे देशों के मरीजों को इलाज करके उन्हें ठीक किया। जो मेरे लिए एक नया अनुभव था।

ऑटोबायोग्राफी गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर

दिव्या कहती हैं कि मैंने अपनी जिंदगी में काफी मुश्किल समय का सामना किया है। इन सभी मुश्किल समय को और हमारे साथ बीती हुई हर चीज को हमने एक किताब के रूप में बनाया है जो मेरी ऑटोबायोग्राफी है। मेरी यह ऑटोबायोग्राफी गर्ल विथ विंग्स ऑन फ ायर है। दिव्या हर एक के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं कि मुश्किल कितना भी बड़ा क्यों न हो हमें उस मुश्किल से पीछे कभी नहीं हटना चाहिए।