रांची (ब्यूरो) । यदि आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, रिन्युअल कराना हो या फिर वाहन के पेपर से संबंधित कोई भी काम करना हो तो आपको डीटीओ ऑफिस जाना ही होगा। लेकिन डीटीओ ऑफिस का हाल ऐसा है कि यहां एक बार में कोई काम नहीं होता। जबतक आपको आठ से दस बार दौड़ा न दिया जाए डीटीओ ऑफिस से जुड़ा कोई काम नहीं होता। वहीं यह ऑफिस कम और कबाड़खाना अधिक नजर आ रहा है। पुरानी-पुरानी फाइल को रखने तक की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। लोहे की रेक पर फाइलें रखी रहती हैं जो बार-बार गिरती रहती हैं। इसी क्रम में कई पुरानी उपयोगी फाइलें गायब भी हो चुकी हैं। ऑफिस में भले इन दिनों बिचौलियों की सक्रियता थोड़ी कम हुई है। लेकिन तीन बजे के बाद अब भी ऑफिस में बिचौलिये एक्टिव हो ही जाते हैं। वैसा व्यक्ति जो बार-बार कार्यालय का चक्कर लगा कर परेशान है उन्हें ये अपने झांसे में ले लेते हैं। परेशान व्यक्ति भी अंत में खुद से इनकी शरण में चला जाता है।

कभी मशीन खराब तो कभी स्टाफ गायब

डीटीओ ऑफिस का हाल ऐसा है कि सप्ताह-दस दिन के अंदर यहां कोई काम नहीं होता। दिए गए समय सीमा के अंदर भी किसी व्यक्ति का काम पूरा नहीं हो पाता। कभी मशीन खराब रहती है तो कभी कर्मचारी गायब रहते हैं। बीते दिनों प्रिंटिंग का रबर खराब था, जिससे लाइसेंस बनने के बाद भी इसका प्रिंट नहीं निकल पा रहा था। जब रिबन ठीक हुआ और कार्ड प्रिंट होने लगा तो कार्ड एक्टिवेट होने में परेशानी आने लगी। इसे ठीक करने में तीन दिनों का समय लग गया। जब लिंक ठिक हुआ तो कर्मचारी छुट्टी पर चली गईं। कार्ड एक्टिवेट करने वाली कर्मचारी के छुट्टी पर जाने के बाद यह काम बिल्कुल बंद हो गया। कोई दूसरा कर्मी उस काम को करता हुआ नहीं दिखा। नतीजन पेंडेंसी की संख्या बढऩे लगी। इसी तरह अन्य सभी काम के लिए किसी न किसी बहाने चार से पांच दिन लटका दिया जाता है। आवेदक ऑफिस का चक्कर लगा-लगा कर परेशान होते रहते हैं।

कोई आए-जाए, रोक नहीं

डीटीओ ऑफिस में परिवहन पदाधिकारी की उपस्थिति में सबकुछ संयमित रहता है। जबतक डीटीओ ऑफिस में हैं सभी आने-जाने वालों पर नजर रखी जाती है। लेकिन ऑफिसर के जाते ही सब कुछ जैसे नियंत्रण से बाहर निकल जाता है। कोई भी व्यक्ति बे रोक-टोक ऑफिस में आना-जाना शुरू कर देता है। इसमें सबसे ज्यादा दलालों और वकीलों को फायदा होता है। वे आकर आसानी से अपना काम कराकर चलते बनते हैं।