रांची(ब्यूरो)। रांची में रविवार को ईद-उल-अजहा का त्यौहार सादगी के साथ मनाया गया। सुबह 5.30 बजे से मस्जिदों में शुरू हुआ नमाज का सिलसिला 9.30 बजे खत्म हुआ। हरमू रोड स्थित मुख्य ईदगाह में मौलाना असगर मिसबाही ने दो रकअत शुक्राने की नमाज अदा कराई। इस दौरान उन्होंने अपनी तकरीर में आपसी मोहब्बत, भाईचारे और अमन की बहाली पर जोर दिया। अपनी तकरीर को उन्होंने मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी के एक शेर के साथ अंजाम दिया - उनका जो फर्ज है वो, अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैगाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे।

ज्यादातर लोगों ने मस्जिदों में पढ़ी नमाज

ईद-उल अजहा की नमाज रांची के करीब 80 मस्जिदों, खानकाहों, मदरसों और ईदगाहों में पढ़ी गई। कुर्बानी की रस्म अहले सुबह पूरी करने की गरज से अधिकतर लोगों ने अपने-अपने मोहल्लों की मस्जिदों में नमाज अदा की। रांची के मुख्य ईदगाह में भीड़ तो हुई, लेकिन ईद की नमाज जितनी नहीं हुई। वहीं डोरंडा और कांके ईदगाह में भी नमाजें अदा की गईं।

शांतिपूर्ण गुजरा त्यौहार

ईद-उल-अजहा का त्यौहार शांतिपूर्ण तरीके से गुजर गया। इस दौरान कुर्बानी को लेकर सभी मस्जिदों और ईदगाहों से उलेमा-ए-कराम ने लोगों से अपील की थी। कहा गया था कि कुर्बानी ऐसी होनी चाहिए, जिससे किसी को तकलीफ न पहुंचे। लोगों ने इस अपील का एहतारम भी किया, जिसकी वजह से कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटी।

किसी की भावना को ठेस न पहुंचे

राजधानी के मुख्य ईदगाह में नमाज से पहले हुई तकरीर में मौलाना असगर मिसबाही ने आपसी मेल-मिलाप और दूसरों की भावनाओं की कद्र करने की सीख दी। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को खुदा का हुक्म है कि उन्हें दूसरों के जज्बात का ख्याल रखना है। किसी के खिलाफ कोई गलत बात न कहें। किसी के देवी-देवता पर टिप्पणी न करें और न ही ऐसा कोई काम करें, जिससे दूसरे किसी भी समुदाय के लोगों की भावनाएं आहत हों। असली मुसलमान वही है, जो दूसरों से मोहब्बत करे न कि अदावत।