रांची: महिलाओं के लिए सिटी में टॉयलेट्स की उपलब्धता और उनकी स्वच्छता पर संजीदगी बेहद जरूरी है। इस विषय पर केवल खानापूर्ति से काम नहीं चलने वाला। सरकार, नागरिक संगठनों और आम लोगों को मिलकर इस पर विचार करना होगा और अपना योगदान भी सुनिश्चित करना होगा। सिटी की महिला समूह और एनजीओ की प्रतिनिधियों का मानना है कि अब तक महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर टॉयलेट्स को लेकर जितने भी कदम उठाए गए हैं, वे नाकाफी हैं। आबादी के अनुपात में शहर में टॉयलेट्स काफी कम हैं। इसके अलावा हाईजीन की समस्या भी है, जिसे लेकर महिलाओं को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां प्रस्तुत है कुछ चुनिंदा महिला समूह और एनजीओ प्रतिनिधियों की बात :
बेहद अहम है यह मुद्दा
टॉयलेट्स का निर्माण, एक बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी सोच है। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि कितना मुश्किल होता है महिला के लिए जो घर से बाहर किसी काम से निकलती हैं और उनके आसपास सुलभ साधन नहीं होते। नेचुरल कॉल को रोक कर रखना न सिर्फ तकलीफदेह होता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव होता है। यूटीआई, किडनी इन्फेक्शन जैसी कई बीमारियों से हम महिलाओं को बचा सकते हैं। यह एक बहुत ही जरूरी कदम है और में इसे पूरी तरह से समर्थन देती हूं।
रश्मि साहा, संस्थापक, मुक्ति मिशन
कमजोर करती है टॉयलेट्स की कमी
आज के समय में जहां हम महिला-पुरुष एक समान, यह सोच रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं और कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, ऐसे में हमारे शहर में महिला शौचालय का न होना बेहद दुखद बात है। आज हमारे शहर में औरतें, युवतियां काफी संख्या में घर के बाहर काम-काज करती हैं। उनकी जरूरत का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जो किसी आफिस में काम करती हैं, उनकी समस्या को तो नजरअंदाज भी किया जा सकता है, लेकिन जो महिला सड़क पर झाड़ू लगाती हुई दिखती है या जो ठेला लगा कर गुजर-बसर करती है, सब्जी बेचती है, घर से किसी काम के लिए निकलती हैं, उनकी समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर महिला शौचालय की समस्या का निदान कर दिया जाता है तो हम सब की भी जिम्मेदारी बनती है कि उसके साफ-सफाई पर ध्यान दें और प्रयोग के बाद फ्लश करना न भूलें। इस हेतु हमारी संस्था दिव्यम ड्रीम फाउंडेशन अध्यक्ष कुमुद झा के मार्गदर्शन में जागरूकता अभियान चलाती रहती है। आगे भी समय-समय पर महिलाओं को जागरूक करने का काम हम करते रहेंगे।
अंशुमाला कर्ण, दिव्यम ड्रीम फाउंडेशन
केवल बातों से नहीं चलेगा काम
रांची को राजधानी बने 20 साल हो चुके हैं। पिछले पांच-छह सालों में सिटी में कई जगह मॉड्यूलर टॉयलेट्स बनवाए गए। लेकिन, ये खानापूर्ति ही बनकर रह गए। केवल नाम के टॉयलेट्स हैं। इनमें सफाई से लेकर सुरक्षा तक के प्रबंध नहीं हैं। पुरुषों के द्वारा महिला टॉयलेट्स का इस्तेमाल करना, अंदर लाइट न होना, पानी की कमी, हैंड वाश का न होना और कई जगह लॉक टूटे होने के कारण इनका इस्तेमाल नामुमकिन हो गया है। सरकार से यह अपील करूंगी कि बेहतरीन पिंक टॉयलेट्स का निर्माण जगह-जगह पर कराया जाए और हर साल केवल टॉयलेट्स के रख-रखाव के लिए अलग से बजट में राशि का प्रावधान किया जाए।
वन्दना उपाध्याय, माही केयर फाउंडेशन
प्राइवेसी और सेफ्टी जरूरी
नेचुरल कॉल तो कोई नहीं रोक सकता। यह कहीं भी, कभी भी आ सकता है। इसके लिए हमारा प्रयास होता है कि जो भी महिलाएं हमारे पास आती है उनके लिए कम से कम एक अच्छा टॉयलेट हो। इसके लिए हमलोग प्रयास करते रहे हैं। आगे भी हमारा प्रयास होगा कि जब भी महिलाओं के लिए टॉयलेट की बात होगी तो हमारी टीम आवाज उठाएगी और टॉयलेट बनाकर रहेंगे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट का यह अभियान महिलाओं की प्राइवेसी और सेफ्टी को लेकर है। इसे हम प्रमोट करेंगे और जिम्मेवारों को नींद से जगाने का भी प्रयास करेंगे। जिससे कि महिलाओं को नेचुरल कॉल आए तो उन्हें होल्ड करने की जरूरत न पड़े।
पूनम होरो, एनडीडब्ल्यूएम, स्टेट को-आर्डिनेटर
नेचुरल कॉल रोकने से इंफेक्शन का खतरा
नेचुरल कॉल कभी भी आ सकता है। एक-दो दिन में तो किसी को नेचुरल कॉल होल्ड करने में परेशानी नहीं होगी। लेकिन हर दिन नेचुरल कॉल को रोकना वो भी लंबे समय तक तो इंफेक्शन हो जाएगा। यूरिनरी ब्लैडर को डैमेज करने के अलावा इंफेक्शन होगा। जो कई और तरह की इंटरनल प्राब्लम्स खड़ी कर सकता है। इसके बाद इलाज कराने के लिए हॉस्पिटल के चक्कर लगाने पड़ेंगे। प्राइवेसी के साथ हाइजीन भी महिलाओं के लिए जरूरी है।
डॉ मनीषा, गायनेकोलॉजिस्ट