RANCHI : मंगलवार को रिम्स के एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग के एंट्रेंस पर चालीस केजी का फॉल्स सीलिंग तेज धमाके के साथ अचानक गिर गया। इस दौरान कुछ स्टाफ, मरीज व उनके परिजन वहां मौजूद थे। गनीमत थी कि इस हादसे में किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। इस तरह एक बड़ा हादसा टल गया। हालांकि, कुछ देर के लिए अफरातफरी की स्थिति बनी रही।

थोड़ी देर पहले गुजरे थे सुपरिटेंडेंट

इस हादसे के थोड़ी ही देर पहले रिम्स की डिप्टी सुपरिटेंडेंट डॉ वसुंधरा और सुपरिटेंडेट डॉ एसके चौधरी इसी एंट्रेंस से होकर गए थे। इसी एंट्रेंस से ही ज्यादातर अधिकारी और स्टाफ्स अक्सर आना-जाना करते हैं। मेडिसीन समेत अन्य सामान भी इसी रास्ते से से स्टोर रुम में ले जाया जाता है। ऐसे में फाल्स सीलिंग का गिरना बड़े हादसे की वजह बन सकती थी।

कुछ दिन पहले हुआ था रिपेयर

रिम्स में कुछ दिन पहले ही एडमिनिस्ट्ेटिव बिल्डिंग व हॉस्पिटल में मरम्मत का काम किया गया था। इस मद में लाखों रुपए खर्च किए गए थे। इसके अलावा मेंटनेंस नाम पर भी लाखों रुपए हर महीने खर्च किए जाते हैं। ऐसे में फाल्स सीलिंग का गिरना कहीं न कहीं मरम्मत में लापरवाही की ही बात को उजागर करता है।

व्यवस्था सुधार को लेकर बैठक

रिम्स के डायरेक्टर डॉ बीएस शेरवाल ने मंगलवार को अधिकारियों के साथ मैराथन बैठक की। सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी द्वारा व्यवस्था में सुधार को लेकर दिए गए निर्देशों पर इस बैठक में विचार विमर्श किया गया। डायरेक्टर ने अधिकारियों से हॉस्पिटल में संसाधनों की कमी को लेकर लिस्ट तैयार करने को कहा।

डॉक्टरों पर नजर रखेगा सुपरवाइजर

डायरेक्टर ने अधिकारियों के साथ बैठक में डॉक्टरों की निगरानी करने का आदेश दिया है। इसके लिए एक सुपरवाइजर को नियुक्त किया जाना है। जो डॉक्टरों पर ओपीडी के दौरान नजर रखेगा कि डॉक्टर सेकेंड हाफ में ड्यूटी दे रहे है कि नहीं। इसके बाद वह डायरेक्टर को रिपोर्ट करेगा और डॉक्टर पर कार्रवाई की जाएगी। वहीं इक्विपमेंट खरीदारी मामले में उन्होंने क्वालिटी प्रोडक्ट नहीं देने वाली कंपनियों को ब्लैक लिस्ट करने का निर्देश दिया है।

एक माह बाद भी खराब पड़ी है बायोकेमेस्ट्री मशीन

रिम्स में बायोकेमेस्ट्री डिपार्टमेंट की मशीन पिछले एक महीने से खराब पड़ी है। लेकिन इसे चालू कराने की कोई पहल नहीं की जा रही है। ऐसे में रिम्स के सेंट्रल लैब में आने वाले सैकड़ों मरीज खाली हाथ लौट जा रहे है। इस स्थिति में मरीज या तो अपनी जांच मेडाल में करा रहे है। या फिर प्राइवेट लैब में उन्हें अधिक पैसे चुकाकर अपनी जांच करानी पड़ रही है।