RANCHI: रांची में फुटबॉल के खिलाडि़यों को उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिल पाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां के खिलाडि़यों का सेंट्रल रजिस्ट्रेशन स्कीम के तहत पंजीकरण नहीं हो पाता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि रांची में खिलाडि़यों को आगे बढ़ाने के लिए काम करने वाला कायदे का कोई क्लब ही नहीं है। अकेले सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड(सीसीएल)अपनी एकेडमी के खिलाडि़यों का रजिस्ट्रेशन कराता है। मुट्ठी भर खिलाडि़यों का रजिस्ट्रेशन होता है, तो उनका भी नेशनल लेवल पर सेलेक्शन होना पक्का नहीं होता।

पूरे भारत में खेलने की आजादी

सीसीएल के स्पो‌र्ट्स ऑफिसर आदिल हुसैन बताते हैं कि जिस खिलाड़ी का सीआरएस के तहत रजिस्ट्रेशन हो जाता है, उसे भारत में कहीं भी खेलने की मान्यता मिल जाती है। बड़े टूर्नामेंट में खेलने के दौरान खिलाड़ी अगर अच्छा प्रदर्शन कर जाते हैं, तो उन्हें एक्सपोजर भी मिलता है और सेलेक्टर्स की निगाहों में आने का मौका भी। वैसे आजकल ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध है, इसलिए कुछ खिलाड़ी तो खुद ही रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं।

सिर्फ लोकल टूर्नामेंट खेलते हैं

सिटी के ज्यादातर खिलाड़ी केवल लोकल लेवल के टूर्नामेंट ही खेल पाते हैं। कुछ चुनिंदा प्रतिभावान खिलाड़ी इंटर डिस्ट्रिक्ट लीग खेल पाते हैं। रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण वे नेशनल सेलेक्शन कैंप में शामिल नहीं हो पाते हैं। मजबूरी में कुछ खिलाड़ी दूसरे स्टेट्स का रुख कर लेते हैं। उन्हें दिल्ली या केरल जैसे राज्यों में स्पॉन्सर मिल जाते हैं। जिस टीम के लिए खेलते हैं, वहां उनका रजिस्ट्रेशन भी हो जाता है। यही वजह है कि रांची में अच्छे खिलाड़ी ज्याद दिनों तक नहीं टिक पाते।

क्लबों की कमी से हुआ बंटाधार

चार साल तक नेशनल फुटबॉल टीम का हिस्सा रहे सुबोध कुमार से खास बातचीत

आप रांची से ही आते हैं, आपको रांची में फुटबॉल की मौजूदा स्थिति कैसी नजर आती है?

अभी स्थिति उतनी अच्छी तो नहीं ही कही जा सकती, जितनी पहले थी। यहां इस खेल के विकास के लिए कोई संस्थागत प्रयास नहीं हुआ। इक्का-दुक्का लोग लगे हैं, जो मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उससे इस खेल और खिलाडि़यों को बहुत ज्यादा फायदा मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है।

क्या वजह है कि यहां के खिलाड़ी बहुत आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं?

मुझे लगता है कि सबसे अहम वजह है क्लबों का अभाव। रांची में बेहतरीन क्लब हैं ही नहीं। रांची के अच्छे खिलाड़ी को भी जमशेदपुर जाकर टाटा फुटबॉल एकेडमी ज्वाइन करनी पड़ती है। मैंने खुद टीएफए से ही ग्रेजुएशन किया। तब जाकर मुझे नेशनल टीम में चांस मिला। अगर यहां भी कुछ अच्छे क्लब खुलें, तो खिलाडि़यों का भविष्य संवर सकता है।

आखिर कौन खोलेगा एकेडमी और इसका फायदा क्या है?

जो बड़े औद्योगिक घराने हैं, उन्हें रांची में फुटबॉल एकेडमी खोलने के लिए पहल करनी चाहिए। ऐसा नहीं कि बड़े घरानों को इसमें लॉस होगा। अगर क्लब से अच्छे खिलाड़ी निकलने लगे, तो देश ही नहीं विदेश के भी स्पॉन्सर उन्हीं औद्योगिक घरानों के पास आएंगे, जिन्होंने एकेडमी खोली होगी। इसके अलावा खेल में इनवेस्टमेंट के एवज में सरकार टैक्स रिबेट देती है। कंपनियां चाहें, तो केवल टैक्स के बचाये पैसे से ही एकेडमी चला सकती है। यह काम सीएसआर के जरिए भी हो सकता है।

रांची में फुटबॉल के लिए मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर से आप कितने संतुष्ट हैं?

रांची में फुटबॉल के नाम पर है ही क्या, जिस पर संतोष किया जाए। आप मोरहाबादी स्टेडियम को देख लें या होटवार खेलगांव को, हर जगह की स्थिति बदतर हो गई है। रख-रखाव का ठिकाना ही नहीं है। ऐसा लगता है कि कोई देखने वाला ही नहीं है। खिलाड़ी अगर खेलना चाहें, तो खेलेंगे कहां?