RANCHI: रांची में फुटबाल के खेल व खिलाडि़यों की स्थिति ठीक नहीं है। इसके पीछे कई वजहें हैं। पेश है चार साल तक नेशनल फुटबॉल टीम का हिस्सा रहे सुबोध कुमार से दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की खास बातचीत।

सवाल: आप रांची से ही आते हैं, आपको रांची में फुटबॉल की मौजूदा स्थिति कैसी नजर आती है?

जवाब: अभी स्थिति उतनी अच्छी तो नहीं ही कही जा सकती, जितनी पहले थी। यहां इस खेल के विकास के लिए कोई संस्थागत प्रयास नहीं हुआ। इक्का-दुक्का लोग लगे हैं, जो मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उससे इस खेल और खिलाडि़यों को बहुत ज्यादा फायदा मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है।

सवाल: क्या वजह है कि यहां के खिलाड़ी बहुत आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं?

जवाब: मुझे लगता है कि सबसे अहम वजह है क्लबों का अभाव। रांची में बेहतरीन क्लब हैं ही नहीं। रांची के अच्छे खिलाड़ी को भी जमशेदपुर जाकर टाटा फुटबॉल एकेडमी ज्वाइन करनी पड़ती है। मैंने खुद टीएफए से ही ग्रेजुएशन किया। तब जाकर मुझे नेशनल टीम में चांस मिला। अगर यहां भी कुछ अच्छे क्लब खुलें, तो खिलाडि़यों का भविष्य संवर सकता है।

सवाल: आखिर कौन खोलेगा एकेडमी और इसका फायदा क्या है?

जवाब: जो बड़े औद्योगिक घराने हैं, उन्हें रांची में फुटबॉल एकेडमी खोलने के लिए पहल करनी चाहिए। ऐसा नहीं कि बड़े घरानों को इसमें लॉस होगा। अगर क्लब से अच्छे खिलाड़ी निकलने लगे, तो देश ही नहीं विदेश के भी स्पॉन्सर उन्हीं औद्योगिक घरानों के पास आएंगे, जिन्होंने एकेडमी खोली होगी। इसके अलावा खेल में इनवेस्टमेंट के एवज में सरकार टैक्स रिबेट देती है। कंपनियां चाहें, तो केवल टैक्स के बचाये पैसे से ही एकेडमी चला सकती है। यह काम सीएसआर के जरिए भी हो सकता है।

सवाल: रांची में फुटबॉल के लिए मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर से आप कितने संतुष्ट हैं?

जवाब: रांची में फुटबॉल के नाम पर है ही क्या, जिस पर संतोष किया जाए। आप मोरहाबादी स्टेडियम को देख लें या होटवार खेलगांव को, हर जगह की स्थिति बदतर हो गई है। रख-रखाव का ठिकाना ही नहीं है। ऐसा लगता है कि कोई देखने वाला ही नहीं है। खिलाड़ी अगर खेलना चाहें, तो खेलेंगे कहां?