रांची (ब्यूरो) । शिक्षा के दान को सर्वोच्च दान भी कहते हैैं, क्योंकि शिक्षा से ही भविष्य संवरता है। हमारे समाज में ऐसा अनगिनत लोग मौजूद हैैं, जो नि:स्वार्थ भाव से आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्ग के बच्चों को या तो पढ़ा रहे हैैं या फिर उनके पढऩे के लिए जरूरी चीजों का इंतजाम कर रहे हैैं। रांची और झारखंड के दूसरे जिलों में ऐसे कई अधिकारी हैैं, जो बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रहे हैैं। कुछ टीचर तो ऐसे हैैं, जो बच्चों की पढ़ाई में आर्थिक और अन्य प्रकार की मदद कर रहे हैैं। मकर संक्रांति के अवसर 'दैनिक जागरण- आईनेक्स्ट ऐसे चुनिंदा लोगों की कहानी पेश कर रहा है, जो शिक्षा के महादान से जुड़कर दूसरों को भी प्रेरणा दे रहे हैैं।

आसान बनाई आईआईटी की राह

- खुद अपर मुख्य सचिव रहते फ्री में दी बच्चों को शिक्षा

झारखंड में अपर मुख्य सचिव रैंक से रिटायर्ड आईएएस अधिकारी केके खंडेलवाल बच्चों को आईआईटी में भेज रहे हैं। अपनी नौकरी के बीच से ही समय निकालकर कई बच्चों को देश के टॉप आईआईटी में भेज चुके हैं। सरकारी सेवा की व्यस्तता के बावजूद खंडेलवाल वक्त निकालकर बच्चों को आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराते हैं। केके खंडेलवाल मैथ्स और फिजिक्स की तैयारी कराते हैं। खंडेलवाल बताते हैं कि जब तक नौकरी में रहे, ऑफि स जाने से पहले और ऑफि स से लौटने के बाद जितना समय मिला बच्चों को पढ़ाया। बीच में जब भी समय मिलता रहा, बच्चों को पढ़ाते रहे। अब हमारा रिटायरमेंट हो गया है, अब हमारे पास समय भी है, अधिक से अधिक बच्चों को आईआईटी जेईई की तैयारी कराना है। खंडेलवाल ने खुद आईआईटी से पढ़ाई की है। 1981 में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में उन्हें ऑल इंडिया 52वीं रैंक मिली थी। लेकिन, लक्ष्य यहीं तक सीमित नहीं रहा। वर्ष 1988 में यूपीएससी में सफ ल परीक्षार्थियों की सूची में आठवां स्थान हासिल किया।

डीएसपी ने गढ़े 60 अधिकारी

- अपने बलबूते विकास ने कई युवाओं को बनाया सफल

खुद अधिकारी हैैं और दूसरों को भी अधिकारी बनते देखने के सपने को साकार कर रहे हैं झारखंड सरकार के डीएसपी (अनुसंधान प्रशिक्षण विद्यालय) के पद पर कार्यरत विकास चंद्र श्रीवास्तव। इन्होंने खुद एक कठिन प्रतियोगिता परीक्षा जेपीएससी पास कर पुलिस सेवा में एंट्री की। लेकिन, दूसरों को भी इस सेवा में लाने या इससे भी कहीं आगे पहुंचाने के लिए यह अपनी ड्यूटी के अलावा भी तन-मन-धन लगा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि इनसे पढ़ चुके दर्जनों लोग आज बड़े-बड़े पदों पर तैनात हैं, जिनमें से ज्यादातर समाज के गरीब तबके से आते हैं। विकास चंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि उनकी डीएसपी की पाठशाला से फ्री कोचिंग लेकर ऑल इंडिया सर्विस और प्रदेश के प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं समेत बाकी प्रतिष्ठित नौकरियों में जाने वालों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। झारखंड ही नहीं उनकी फ्री कोचिंग का लाभ पड़ोसी बिहार के छात्रों को भी उपलब्ध हो रहा है। डीएसपी विकास का कहना है कि अभी तक उनके 16 छात्र डीएसपी के लिए चुने गए हैं और 25 प्रशासनिक सेवा और दूसरे कैडर के लिए चुने जा चुके हैं। 2012 में उनके 62 छात्र एकबार में इंस्पेक्टर और सार्जेंट जैसे पदों के लिए चुन लिए गए थे। उनकी फ्री कोचिंग में पढ़े 60 से च्यादा छात्र बिहार और झारखंड लोकसेवा आयोग की ओर से आयोजित कई परीक्षाएं पास कर चुके हैं।

दिखा रहे सीधा रास्ता

हर वंचित को शिक्षा मिले इसके लिए अलख जगा रहे हैं रांची के डॉ राकेश पॉल। वे समाज के वैसे बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं जो पढऩा तो चाहते हैं लेकिन उनके पास किसी तरह का साधन उपलब्ध नहीं है। उन बच्चों को अपनी तरफ से सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए पढ़ा रहे हैं। राकेश पॉल का कहना है कि बहुत सारे बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं, मैैं उन्हें पढ़ा रहा हूं। बहुत सारे बच्चे पढ़ाई छोड़कर दूसरे रास्ते पर भटक गए हैं, उनको पढ़ाई में मन नहीं लगता है। उनको भी खोज कर उनको शिक्षा से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि अभी रांची के अलावा दूसरे शहरों में भी बच्चों को शिक्षित करना है। रांची में 2010 से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। उनके पढ़ाए हुए बच्चे नौकरी भी कर रहे हैं, कई बच्चे जो गलत राह पर भटक गए थे, वह भी बेहतर जीवन जी रहे हैं।

पढऩे वालों तक पहुंच रहे मास्टर साब

- गरीब और जरूरतमंद बच्चों की हर जरूरत कर रहे हैैं पूरी

एक टीचर ऐसे भी हैैं, जो अपनी नौकरी के बाद भी बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव-गांव घूमते रहते हैैं। रांची के कांके स्थित प्लस टू हाई स्कूल में कार्यरत टीचर सफदर ईमाम जरूरतमंद बच्चों को ढूंढ़ कर उनतक पहुंच जाते हैैं। कभी किसी की फीस भर देना, तो कभी किसी को किताब-कॉपी पहुंचाना, इनकी दिनचर्या में शामिल है। बच्चों को स्कूल के बाद भी एक्स्ट्रा क्लासेज लेकर परीक्षा की तैयारी कराते हैैं। अपनी सैलरी का अच्छा खासा हिस्सा ये हर महीने बच्चों की पढ़ाई की जरूरतें पूरी करने में खर्च कर देते हैैं। सरकारी स्कूल में इंग्लिश का टीचर होते हुए भी सफदर स्कूल की छुट्टïी के बाद आसपास के गांवों में घूमते हैैं। जहां-कहीं बच्चों का समूह दिखता है, उन्हें बिठाकर घंटे-दो घंटे पढ़ाते हैैं। ऐसा नियमित रूप से करते तो हैैं ही, साथ ही साथ बच्चों की जरूरतें भी पूरी करने में पीछे नहीं रहते। सैकड़ों की संख्या में बच्चों को स्कूल ड्रेस, गर्म कपड़े, किताब-कॉपी आदि उपलब्ध कराने के साथ ही फ्री में बच्चों पढ़ाकर सफदर समाज में एक नई इबारत लिख रहे हैैं।