रांची (ब्यूरो) । माह-ए-रमजान अपने अंतिम पड़ाव पर है। शुक्रवार को रमजान के महीने का अंतिम जुमा यानी अलविदा जुमा है। जुमे की नमाज के लिए सभी मस्जिदों में विशेष व्यवस्था की गई है। भीषण गर्मी को देखते हुए मस्जिदों में छतों के ऊपर तथा सड़कों के किनारे तिरपाल से शेड की अस्थायी व्यवस्था की गई है। रांची सिटी के करीब 70 मस्जिदों में शुक्रवार को अलविदा जुमे की नमाज अदा की जाएगी, जिसमें हजारों की संख्या में लोग नमाज अदा करेंगे। चूंकि यह अंतिम शुक्रवार है, इसलिए इस दिन दुआए खैर के साथ मग्फिरत की भी दुआ की जाएगी। सभी मस्जिदों में दिन के 1 बजे से लेकर 2 बजे तक नमाज अदा होगी।

चांद देखने की अपील

21 अप्रैल को माहे रमजान 1444 हिजरी की 29 तारीख है, जिसमें पवित्र ईद-उल-फित्र का चांद नजर आने की संभावना है। इसे लेकर सिटी के तमाम उलेमा-ए-कराम ने लोगों से चांद देखने की अपील की है। एदार-ए-शरीया, झारखंड के नाजिमे आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी ने कहा है कि सभी धार्मिक कार्यक्रम व इबादतें चांद की तारीख के अनुसार सम्पन्न होती हैं। अत: चांद देखने की भरपूर कोशिश करें। अगर कहीं चांद नजर आ जाए तो दारुलकजा एदार-ए-शरीया झारखंड इसलामी मरकज हिंदपीढ़ी रांची को सूचित करें। चांद देखने के लिए एदार-ए-शरीया झारखंड ने राज्य भर में बड़ी व्यवस्था की है। चांद दिखने पर सम्पर्क के लिए मोबाइल नंबर 6202583475/ 9835553380/ 9199780992/ 9771338239/ 9934137121 जारी किया गया है।

रमजान के आखिरी लम्हों को गनीमत समझें (फोटो उमर खालिद)

रमजान मुबारक में इबादत करने का हम सबको मौका मिला, हम लोग खुशनसीब थे। जो लोग तरावीह नमाज नहीं अदा की रोजे नहीं रखे वह अपने आपको बदनसीब समझते होंगे। रमजान मुबारक जिसे रहमत मगफिरत और जहन्नम से निजात का मुकद्दस करार दिया गया। अपनी तमाम तर रहमतों और बरकतों समेत हमसे जुदा होने को है। पता नहीं इसके बाद हमें अगले साल रमजान मुबारक का महीना नसीब होता है या नहीं। लिहाजा माहे रमजान का यह जुमा इस बात का तकाजा करता है कि हम अपने रब को मना लें। माहे रमजान का आखिरी लम्हात को गनीमत जानते हुए गुनाहों पर नदामत का इजहार करते हुए तौबा का दामन थाम लें। रसूल (स) ने इरशाद फरमाया किसूरज के तुलूह और गुरूब वाले दिनों में कोई भी दिन जुमा के दिन से अफजल नहीं। यानी जुमा का दिन तमाम दिनों से अफजल है। रसूल (स) ने फरमाया कि जब जुमा का दिन आता है तो फरिश्ते हर दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं। पहले आने वाले बंदे का नाम लिखते हैं, जो बाद में आते हैं उनका बाद में नाम लिखते हैं। जब इमाम खुतबा देने के लिए आता है तो फरिश्ते रजिस्टर को बंद कर देते हैं। फरिश्ते खुतबा सुनते हैं। जब मस्जिद में खुतबा हो तो बात नहीं करनी चाहिए। रमजान की आखिरी लम्हों को गनीमत समझना है।

खालिद उमर, सामाजिक कार्यकर्ता, हिंदपीढ़ी

समाज सुधार का माध्यम है रमजान (फोटो कुर्बान अली)

रमजान मात्र मुसलमानों के लिए इबादत का महीना नहीं है बल्कि यह समाज सुधार का भी एक शक्तिशाली माध्यम है। समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार एवं अपराध को रोक पाने की समस्त प्रयत्न की असफलता से यह सत्य अब उजागर हो गया है कि मात्र पुलिस और कानून के बल पर समाज से बुराइयों को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसको समाप्त करने का एक ही रास्ता है और वह है तक़वा, अर्थात लोगों के हृदय में इस भावना को जागृत करना है कि वह ईश्वर के सामने उत्तरदाई हैं और इस कारण वश में अपने आप को समस्त बुराइयों से दूर रखें रमजान इसी भावना को जागृत करने का महीना है। ईश्वर से संबंध विच्छेद (अलग होकर) करके समाज नैतिक पतन का शिकार हो जाता है, जैसा कि वर्तमान समाज में हुआ है। रमजान ईश्वर से संबंध सुदृढ़ करने का प्रभावशाली माध्यम है। अत: रमजान नैतिक पतन से समाज की रक्षा करता है और समाज के उत्थान में सहायक सिद्ध होता है।