रांची(ब्यूरो)। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एक परिवार की तरह होते हैं, जिसमें सबको मिलकर कार्य करना होता है। ऐसे में सामूहिक प्रयास से एचईसी को अच्छी स्थिति में लाया जा सकता है। झारखंड के विकास में एचईसी वरदान साबित हो सकता है। ये बातें झारखंड के गवर्नर रमेश बैस ने कहीं। सोमवार को वह एचईसी का भ्रमण करने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि किसी परिवार में यदि माता बूढ़ी हो जाती है तो हम सभी उनकी सेवा करते हैं। अधिकारी एवं कर्मचारी मिलकर 6 दशक पुरानी इस संस्थान की सेवा कर इसे बचायेंगे, ऐसी आशा है। इस दौरान राज्यपाल ने एफएफपी प्लांट में एलपीजी से चलने वाले फर्नेंस का उद्घाटन किया। साथ ही प्रशासनिक भवन परिसर में वृक्षारोपण भी किया। इसके बाद उन्होंने एचईसी के अधिकारियों के साथ बैठक की, जिसमें मुख्य रूप से एचईसी के सीएमडी नलिन सिंघल, सीएमडी, डॉ राणा एस। चक्रवत्र्ती, निदेशक (विपणन सह उत्पादन), एमके सक्सेना निदेशक (कार्मिक), ए.पांडा, निदेशक (वित्त) मौजूद थे।

एचईसी की बेहतरी का करेंगे प्रयास

राज्यपाल ने कहा कि पीएसयू या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के घाटे के प्रमुख कारण मिस मैनेजमेंट है। विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का समय पर निदान नहीं कर पाना है। उन्होंने कहा कि एचईसी को कभी राष्ट्र का गौरव माना जाता था, इसका अस्तित्व बचा रहे, इसके लिए मैं प्रयास करूंगा। उन्होंने कहा कि झारखंड में खनिज और प्राकृतिक सौंदर्यता है। विकास की दिशा में आगे बढऩे हेतु जन सहयोग का अपेक्षित सहयोग आवश्यक है।

संगठनों ने मांगा सहयोग

राज्यपाल से विभिन्न श्रमिक संगठनों एवं अधिकारियों के संगठनों ने मिलकर एचईसी के पुर्णोद्धार के लिए अपने स्तर पर कोशिश करने का आग्रह किया। राज्यपाल ने कहा कि इंडस्ट्री में कई यूनियन होती हैं। मैं देख रहा हूं कि यहां सारे यूनियन का एक ही सोच है कि एचईसी कैसे बचे। मैंने पहले सिर्फ इस संस्थान के बारे में सुना था। आज इसे देखा भी।

क्या है एचईसी के हालात

इससे पूर्व एच.ई.सी के सबंध में अधिकारियों द्वारा अवगत कराया गया कि यहां की मशीनें 60 वर्ष पुरानी हो चुकी है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में बचे रहने के लिए मशीनों का आधुनिकीकरण होना नितांत आवश्यक है। अभी एचईसी के पास 1700 करोड़ का कार्यादेश है। एचईसी ने बोकारो स्टील प्लांट, भिलाई और दुर्गापूर स्थित प्लांट की स्थापना में अपना महत्वूपर्ण योगदान दिया है। इसरो का मोबाईल लॉचिंग पैड भी एचईसी द्वारा ही निर्मित किया गया है। अधिकारियों द्वारा कहा गया कि एचईसी के पास अभी उपलब्ध 1000 एकड़ भूमि में से 300 एकड़ बेचने की अनुमति दें ताकि उस राशि से एचईसी का आधुनिकीकरण किया जा सके। बैंकों द्वारा बैंक गारंटी वापस ले ली गई, जिसके कारण परेशानी है। एचईसी को 7,199 एकड़ जमीन दी गई थी, जिसमें 2578 एकड़ प्रयोग किया गया है, लगभग 73 एकड़ जमीन में अतिक्रमण है। आज भी लगभग 10,000 परिवार प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से एचईसी से जुड़े हैं। इतने बड़े संस्थान में स्थाई सीएमडी। नहीं होने के कारण निर्णय लेने में विलम्ब होता है।