रांची (ब्यूरो) । राजधानी रांची की आबादी 35 लाख से अधिक हो गई है। शहर की सड़कों पर हर दिन करीब चार लाख लोग सफर कर रहे हैं, लेकिन शहर में ट्रांसपोर्टिंग की जो व्यवस्था है, वो 50 हजार लोगों तक के लिए ही पर्याप्त है। साढ़े तीन लाख लोग हर दिन कहीं आने-जाने के लिए या तो अपनी टू व्हीलर या कार का उपयोग करते हैं या फिर इसी बदहाल व्यवस्था में सफर करते हैं। यह हाल तब है जब झारखंड राज्य के गठन व रांची के राजधानी बनने के दो दशक से ज्यादा समय हो गए। सिटी में आज भी लोग ट्रांसपोर्ट सर्विस को लेकर लाचार ही नजर आ रहे हैं।

5000 ऑटो को ही परमिट

रांची शहर में आने-जाने के लिए सिर्फ ऑटो ही एकमात्र माध्यम है। शहर में करीब 15 हजार ऑटो हैं, इनमें से एक तिहाई ऑटो को ही सरकार परमिट दे पाई है। रांची शहर में पांच हजार आटो के पास ही परमिट हैं। इसमें 2335 डीजल व पेट्रोल तथा 2665 सीएनजी आटो के पास परमिट है। लेकिन शहर में 10 हजार आटो ऐसे हैं जो अवैध रूप से चल रहे हैं। नतीजन अवैध आटो की वजह से पूरा शहर जाम की चपेट में रहता है। हर इलाके में लोगों को परेशानी होती है। पुलिस और जिला प्रशासन के पास आटो और चालक का कोई डिटेल नहीं रहता है। इस वजह से किसी प्रकार की घटना होने के बाद भी पुलिस को आटो का डिटेल नहीं मिल पाता है।

सिटी बस सर्विस भी फेल

राजधानी में आम लोगों की सुविधा के लिए सिटी बस सर्विस शुरू की गई थी, लेकिन दिनोंदिन इसकी हालत बिगड़ती गई। नगर निगम इसकी सुध लेने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। आम नागरिक तो इन सिटी बसों का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। जेएनएनयूआरएम के तहत राजधानी रांची में 2005 में करीब पांच करोड़ की लागत से 51 बसों के साथ यह सर्विस शुरू की गई थी। बाद में नगर निगम ने और भी बसों की खरीदारी की। एक समय यह संख्या बढ़कर 91 तक पहुंच चुकी थी। लेकिन आज नगर निगम के पास ठीक-ठाक अवस्था में सिर्फ 25 बस रह गई हैं। इनमें भी आये दिन कोई न कोई खराबी आती ही रहती है। 2017 में नगर निगम ने फिर एक बार करीब साढ़े तीन करोड़ की लागत से 26 बसें खरीदीं। जिन बसों में मामूली खराबी भी आ जाती है उसे बनवाने के बजाय स्टोर में खड़ा कर दिया जाता एवं नई बस खरीदने की योजना बनने लगती है।

करोड़ों खर्च पर सुविधा नदारद

नगर निगम ने ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। लेकिन आम लोगों को सुविधा नहीं मिली। नई बसों की खरीदारी के बाद पुरानी बसों की देखभाल बिल्कुल बंद हो गई। ऐसे में बसें धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील होती गईं, बसों के पाट्र्स भी गायब होने लगे। बसों की सीट, बैटरी, पहिए समेत अन्य कल-पुर्जे चोरी हो चुके हैं। नगर निगम के अधिकारी इधर झांकने तक नहीं आते। इन दिनों बसों का संचालन नगर निगम ही कर रहा है।