रांची (ब्यरो) । तीन जनवरी से 30 जनवरी तक चलने वाले संकाय संवर्धन कार्यक्रम में शुक्रवार को खालसा कॉलेज अमृतसर, पंजाब के कानून विभाग की प्रोफेसर डॉ पवनदीप कौर ने भारतीय संविधान और मानवाधिकार विषय पर लेक्चर दिया। कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन नहीं हो सकती है, लेकिन यह दिखाता है कि भारत ने उस समय मानवाधिकारों की प्रकृति को कैसे समझा, जब संविधान को अपनाया गया था।

पर्यावरण की जानकारी दी

करोड़ीमल कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ नामदेव ने पर्यावरण और साहित्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ तालमेल और उत्प्रेरणा का शानदार उदाहरण आधुनिककाल के हिंदी साहित्य का छायावादी काव्य है। यहां प्रकृति सिर्फ लुभाती नहीं है। वह प्रसन्नता तथा सुख-दुख की साथिन भर नहीं है। वह प्रेरणा है बंधन से मुक्ति की। रांची विमेंस कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ गीता सिंह ने मानवाधिकार विषय पर व्याख्यान दिया।

गंभीरता से नहीं लिया गया

चंद्रगुप्त इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट कॉलेज, पटना के प्रोफेसर डॉ संतोष कुमार ने अनुसंधान, व्यावसायिक विकास और शैक्षणिक नेतृत्व विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में किस प्रकार के अनुसंधानों को प्राथमिकता दी जाए, यह प्रश्न भी दो दशकों से बराबर उठाया जा रहा है। समय-समय पर इस संबंध में संस्तुतियां भी की जाती रही हैं, परन्तु शोधकर्ताओं ने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया। इसका एक कारण तो यह रहा है कि प्राथमिकता का आधार क्या हो, इस संबंध में कोई निश्चित मत नहीं बन सका.शैक्षिक नेतृत्व के लिये जन्मगत अथवा वंशानुक्रम की विशेषताओं को आजकल स्वीकार नहीं किया जाता अपितु व्यक्तित्व सम्बन्धी अनेक गुणों तथा अर्जित योग्यताओं को ही शैक्षिक नेतृत्व का आधार स्वीकार किया जाता है।