रांची (ब्यूरो) । राजधानी रांची में ट्रेवल करना किसी ट्रबल से कम नहीं है। पांच-सात किमी यात्रा करने में ही हालत खराब हो जाती है। ट्रेवल करने के लिए लोगों के पास ज्यादा ऑप्शन नहीं होने के कारण सवारी वाहनों में यात्रियों की भीड़ ज्यादा रहती है। राजधानी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर सिर्फ ऑटो, सिटी बस और ई-रिक्शा हैं। ऑटो और ई-रिक्शा का फेयर ज्यादा होने के कारण ज्यादातर लोग सिटी बस का इस्तेमाल करना चाहते हैं। लेकिन इसकी भी संख्या कम होने की वजह से यात्रियों को बैठने तक की जगह नहीं मिलती है। नगर निगम की सिटी बस में यात्रा करना किसी जंग लडऩे से कम नहीं है। बस में यात्री बेबस नजर आते हैं। सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि लड़कियां, महिलाएं और बुजुर्गो को भी ट्रेवल करने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है। फेयर थोड़ा कम होने के कारण लोग मजबूरी में इसका इस्तेमाल करते हैं। बस में यात्रा करने वाले पैसेंजर्स ने बताया कि न चाहते हुए भी सिटी बस में ट्रेवल करते हैं। दूसरा कोई ऑप्शन ही नहीं है।

सीट से ज्यादा खड़े पैसेंजर्स

सिटी बसों में इंसानों को सीट पर बिठा कर नहीं बल्कि भेड़-बकरी की तरह लाद कर ले जाया जाता है। बस में सिर्फ महिला-पुरुष ही ट्रेवल नहीं करते, बल्कि स्कूल कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स और बुजुर्ग भी यात्रा करते हैं। बीते 22 सालों में रांची नगर निगम सिटी में बेहतर पब्लिक ट्रांसर्पोटेशन की व्यवस्था शुरू नहीं करा सका है। ट्रांसपोर्टेशन की जो व्यवस्था है उसे भी दुरुस्त करने में निगम पूरी तरह फेल है। बस ड्राइवर कैपासिटी से 'यादा पैसेंजर चढ़ा लेते हैं, जिन्हें सीट नहीं मिलने के कारण खड़े होकर ही जाना पड़ता है। बस की सीट पर जितने पैसेंजर बैठे होते हैं, उससे ज्यादा बस में खड़े होकर ट्रेवल करते हैं। खड़े होकर चलने वाले यात्रियों को टिकट भी नहीं दिया जाता, जिसे लेकर यात्रियों में नाराजगी भी देखी जाती है। बस में कैपासिटी से ज्यादा यात्री बिठाने का फायदा चोर-उचक्के उठा रहे हैं। मौका मिलते ही ये लोगों के मोबाइल, पर्स समेत अन्य सामान लेकर फरार हो जाते हैं।

18 करोड़ खर्च पर फायदा नहीं

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि राजधानी रांची में ढंग से पब्लिक ट्रांसपोर्ट आज तक शुरू नहीं हो सका है। इस वजह से सिटी के लोग ऑटो और निजी वाहनों पर निर्भर हो गए हैं। दस साल पहले शुरू हुए जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन के तहत राजधानी रांची सिटी के लोगों को ट्रेवल करने के लिए 70 बसें खरीदी गईं। लेकिन रांची की सड़कों पर 70 बसें एक साथ कभी नहीं चल पाईं। राजधानी का पॉपुलेशन लगातार बढ़ता गया, लेकिन सिटी बस की संख्या बढऩे की जगह घटती चली गईं, जबकि इन दस सालों में नगर निगम ने बसों की खरीद, उनकी मरम्मत में करीब 18 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। लेकिन लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। एक बार फिर से नगर निगम ने 240 सिटी बसें खरीदने का सपना दिखाया है। न जाने यह कब साकार होगा।

सिर्फ 15 सिटी बस

रांची की जनसंख्या करीब 20 पहुंच चुकी है। हर दिन हजारों लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर होते हैं। ऐसे में जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट की काफी 'यादा जरूरत है, उस परिस्थति में विभाग लाचार बना बैठा है। कई बार बस बढ़ाने, पुरानी बसों की रिपेयरिंग से लेकर नई बसों की खरीदारी का निर्णय हुआ, लेकिन सभी फाइलों में ही बंद हैं। इसका खामियाजा आम पब्लिक भुगत रही है। इन दिनों सिर्फ कचहरी से मेन रोड होते हुए राजेंद्र चौक तक ही बसें जा रही हैं। बाकी अन्य रूट पर कोई बस नहीं चल रही है।