सर, इसका तो पहले ही

लातेहार में तीन दिनों से ऑपरेशन अनाकोंडा के तहत नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में शहीद पांच जवानों की डेड बॉडीज का पोस्टमॉर्टम नौ जनवरी की रात में रिम्स में डीसी विनय कुमार चौबे के निर्देश पर किया जा रहा था। टीम में शामिल डॉ अजीत कुमार चौधरी, डॉ विनय कुमार, पोस्टमॉर्टम हाऊस का कर्मचारी मोहन मल्लिक, राजू मल्लिक, टिंकू जवानों की डेड बॉडीज का पोस्टमॉर्टम कर रहे थे। टीम ने दो जवानों सुदेश कुमार तथा चम्पा लाल मालवीय की डेड बॉडीज का पोस्टमॉर्टम किया। उस वक्त बाबूलाल पटेल की डेड बॉडी भी मॉच्र्युरी में लाई गई। जैसे ही टीम डेड बॉडी का पोस्टमॉर्टम करने की तैयारी करने लगे, उसी समय राजू ने चिल्लाकर कहा- सर इसका तो पहले ही पोस्टमॉर्टम हो चुका है। इस बात पर सब हैरान हो गए। सभी ने जाकर देखा, तो बाबूलाल पटेल का पेट 15 इंच लंबा चीरा हुआ था और बोरा सिलने के स्टाइल में उसकी सिलाई की गई थी। जब डॉक्टर्स ने उसे छूकर देखा, तो पेट के अंदर कड़ी चीज होने का अहसास हुआ। डॉक्टर्स ने तुरंत पोस्टमॉर्टम रोक दिया। बाहर आकर डॉक्टर्स ने इसकी जानकारी रिम्स डायरेक्टर डॉ तुलसी महतो व सीआरपीफ के अधिकारी को दी। डॉक्टर्स की टीम ने पूछा कि क्या जवान की बॉडी से पहले ही छेड़छाड़ की गई है, इसपर डॉक्टर्स को यह बताया गया कि घटनास्थल से ही जवान की डेड बॉडी को रिम्स भेजा गया है। इसके बाद सीआरपीएफ के अधिकारियों ने जवान की डेड बॉडी को बाहर रखने के लिए कहा। इसके बाद बम निरोधक दस्ता को बुलाया गया। बम निरोधक दस्ता ने पेट के अंदर बम होने की पुष्टि की।
क्या कहते हैं doctors?
रिम्स में पोस्टेड डॉ अजीत कुमार चौधरी तथा लैब टेक्निशियन दयामय मुखर्जी ने बताया कि उनके मन में पहले यह बात आई कि आखिर इसका पोस्टमॉर्टम किसने किया है। चूंकि जिस ढंग से सिलाई की गई थी, वह डॉक्टर की सिलाई नहीं लग रही थी। वह किसी पारा मेडिकल स्टाफ द्वारा की गई सिलाई लग रही थी। फिर, डेड बॉडी को 15 इंच तक सिला गया था। अमूमन पेशेवर डॉक्टर किसी बॉडी को उतनी लंबाई तक नहीं सिलता। उसे बोरा की तरह सिल दिया गया था। फिर, इसकी जांच की गई कि यदि जवान का ऑपरेशन पहले ही हुआ होगा, तो घाव लेकर वह ऑपरेशन अनाकोंडा में भाग क्यों लेगा। इसलिए उनलोगों को शक हुआ। शक होने पर पोस्टमॉर्टम रोक दिया गया।

तो उड़ जाती mortuary
बीडीडीएस के अधिकारी ने बताया कि अगर पोस्टमॉर्टम के दौरान सिलाई को तोड़ा जाता, तो रिम्स की मॉच्र्युरी बिल्डिंग समेत कई लोग मारे जाते। इस तरह के बम को प्रेशर रिलीज डिवाइस बम कहा जाता है। इसमें चार-पांच लोगों के उडऩे की संभावना बनती है।
रिम्स में आए एक अन्य जवान की डेड बॉडी का जब पोस्टमॉर्टम किया जा रहा था, तो उस वक्त भी डॉक्टर्स ने पाया कि उसका निचला हिस्सा पूरी तरह डैमेज हो गया था। उसके ऊपरी हिस्से में सिलाई के निशान मिले थे। पर, उस समय इनलोगों ने सोचा कि हो सकता है कि लातेहार सदर अस्पताल में ही जवान की डेड बॉडी का पोस्टमॉर्टम हो गया हो।

Never before
इस तरह से बम का यूज इंडिया में संभवत: पहली बार हुआ है। बीडीडीएस के एक्सपर्ट के मुताबिक, आज तक इस तरह के केस को उन्होंने कभी हैंडल नहीं किया था। यह उनका पहला अनुभव था। हालांकि, नक्सलियों द्वारा शरीर के अंग में सीरिंज से बम लगाए गए थे, ताकि प्रेशर पडऩे पर बम विस्फोट हो जाए और ज्यादा से ज्यादा केजुअल्टी हो। एक्सपर्ट ने बताया कि इस तरह की टेक्निक का इस्तेमाल श्रीलंका में लिट्टे द्वारा किया जाता रहा है। पर, नक्सलियों ने जिस ढंग से बम को प्लांट किया है। सचमुच में वह बहुत खतरनाक है। बम को जब तौला गया तो वह दो केजी चार सौ ग्राम का था।