रांची (ब्यूरो): एक दौर था, जब सर्कस लगते है शहर में हलचल बढ़ जाती थी। घर के गार्जियन बच्चों को लेकर सर्कस दिखाने जाते थे और लौटने के बाद हतों सर्कस के किरदारों और उनके कर्तबों की चर्चा हुआ करती थी। आज के डिजिटल दौर एनटरटेंमेंट के मायने और तरीके ही बदल दिए, जिसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा सर्कस को। सिटी में पिछले कुछ दिनों से सर्कस चल रहा था। हालात इतने बदतर हो गए कि इसे और खींचना मुश्किल हो गया। लिहाजा, सर्कस के मालिक ने तय समय से पहले ही शो बंद करने का फैसला किया।

हर दिन एक संघर्ष

अजंता सर्कस केमैनेजर जयराज यह कहते ाावुक हो जाते हैैं कि आज पर्दा इसी उमीद से उठाते हैं कि कल की अपेक्षा आज ज्यादा दर्शक आएंगे। लेकिन, हर बार उमीद पर पानी फिर जाता है। जयराज ाारी मन से यह कहते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब लोग अपने ब'चों को बताएंगे की सर्कस ाी हुआ करता था।

खाली रह जाती हैैं कुर्सियां

धुर्वा स्थित शहिद मैदान में अंजता सर्कस हर दिन तीन शो दिााया जा रहा था। लेकिन प्रत्येक शो में बमुश्किल 50 दर्शक ाी जुड़ पाते। ााली कुर्सियों और महज कुछ दर्शक के सामने कलाकार अपना करतब दिााने को विवश दिखे।

नहीं कोई भविष्य

सर्कस के कलाकारों से बात करने पर उन्होंने ाी अपनी विवशता जाहिर की। कोई 50 तो 30 कोई 20 सालों से सर्कस से जुड़ा है। ये कलाकार उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जब ये सर्कस के अलावा दूसरा कोई काम नहीं कर सकते। भले भर पेट खाना न खा रहे हों, लेकिन उसी उत्साह और जोश के साथ सर्कस का हर शो दिााते हंै। इन कलाकरों का कहना है सर्कस का अब ाविष्य नहीं है। हमलोगों ने जिदंगी निकाल दी लेकिन अपने ब'चों को इस क्षेत्र में नहीं आने देंगे।