रांची (ब्यूरो)। मार्च महीने के अंत से ही रांची में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। जैसे-जैसे गर्मी का पारा हाई हो रहा है, शहर में आगलगी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हर दिन कहीं ना कहीं आग लगने की घटना हो रही है। इसके बावजूद प्रशासन इसपर कुछ नहीं कर रहा है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने शहर के कई सरकारी भवनों का हाल जाना, जहां हर दिन हजारों लोग अपना काम कराने के लिए पहुंचते हैं, अगर वहां आगलगी जैसी घटना हो जाए तो क्या बड़ी मुश्किल हो जाएगी। सिटी के ज्यादातर सरकारी भवनों में आग से बचाने की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है।

स्पॉट-1: कचहरी

कचहरी चौक स्थित रजिस्ट्री ऑफिस के अपोजिट में जहां वकील लोग बैठते हैं, वहां की हालत सबसे ज्यादा खराब है। वहां लोगों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। अगर यहां आगलगी की घटना हो गई तो संभालना मुश्किल हो जाएगा। यहां फायर सेफ्टी को लेकर कोई अरेंजमेंट नहीं है। सबसे बड़ी बात कि अगर आग लगती है तो वहां गाड़ी पहुंचने में भी परेशानी होगी, जाम हमेशा लगा रहता है। इस कैंपस में एक ही छोटा गेट है जिससे लोगों का आना-जाना लगा रहता है। वकीलों के साथ-साथ यहां आम पब्लिक भी काम कराने के लिए पहुंचती है। हलांकि बार भवन का जो नया भवन है, उसमें व्यवस्था है, लेकिन पुरानी जगह पर किसी का ध्यान नहीं है।

स्पॉट-2 : डीसी ऑफिस

रांची जिला कलेक्टेरिएट में भी फायर सेफ्टी की व्यवस्था कुछ खास नहीं है। ए ब्लॉक में फायर फाइटिंग मशीन तो लगी हुई है, लेकिन पाइप की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है। वहीं, बी ब्लॉक में तो यह व्यवस्था भी नहीं है। मशीन लगाई गई है, लेकिन यहां भी पाइप की व्यवस्था बेहतर नहीं है। जबकि यहां जिले के सभी सीनियर अधिकारी बैठते हैं। यहां ग्राउंड फ्लोर पर ट्रेजरी के पास पाइप की स्थिति भी खराब है। इन दोनों भवनों में पूरे जिले भर के लोग अपना काम कराने आते हैं, कोई घटना हो जाने पर परेशानी बढ़ सकती है।

स्पॉट-3: सदर अस्पताल

रांची सदर अस्पताल आग से निपटने के लिए तैयार नहीं है। रांची सदर अस्पताल में फ ायर फाइटिंग सिस्टम की बेहतर व्यवस्था नहीं है। ऐसे में किसी बड़े हादसे के समय मरीजों की जान कैसे बचेगी, इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सदर अस्पताल, राज्य का सबसे बड़ा जिला अस्पताल है जहां मरीजों के लिए 250 बेड की व्यवस्था है। कई मंजिलों में चल रहे इस अस्पताल में आग बुझाने की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। ऐसे में आग लगने की घटना के बाद वहां भर्ती मरीजों और अस्पताल कर्मियों की जान कैसे बचेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

ऑक्सीजन प्लांट्स के बाद बढ़ी जरूरत

कोरोना काल के दूसरे दौर में ऑक्सीजन की कमी से उपजे हालात के बाद अस्पतालों में पीएसएम और लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए हैं और ज्यादातर बेड ऑक्सीजन सपोर्टेड बनाए गए हैं, ऐसे में आग से बचाव की ज्यादा ठोस व्यवस्था की जरूरत है पर राजधानी के सदर अस्पताल में आग से बचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

कहीं नहीं है पानी की व्यवस्था

सरकारी भवनों की सबसे खराब हालत यह है कि वहां कहीं भी रिजर्व पानी नहीं रखा गया है। हर सरकारी भवन में जहां फायर फाइटिंग सिस्टम लगा हुआ है, वहां आपातस्थिति के लिए पानी रिजर्व में रखना है। लेकिन डीसी ऑफिस से लेकर दूसरे सभी भवनों में पानी रिजर्व में नहीं रखा गया है। यानी कोई घटना होने पर कुछ भी नहीं किया जा सकता है।

क्या है सरकार का नियम

नेशनल बिल्डिंग कोड -2005 के भाग 4 में आग और जीवन सुरक्षा के बारे में जिक्र है। इसी आधार पर सरकारी इमारतों में भवन निर्माण विभाग, अग्निशमन विभाग के माध्यम से गृह विभाग से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर फ ायर फ ाइटिंग सिस्टम लगाया जाता है। विभाग की ओर से प्रत्येक इमारत में रिजर्व वाटर टैंक भी बनाने को कहा जाता है, ताकि विषम परिस्थितियों में उक्त पानी का उपयोग आग बुझाने के लिए किया जा सके।

फ ायर फ ाइटिंग सिस्टम के लिए ये है जरूरी

-अलार्म सिस्टम

-स्वचालित अग्नि पहचान यंत्र

-आग बुझाने वाले उपकरण

-रिजर्व वाटर टैंकर

-बिजली तारों को सुव्यवस्थित करना

-लिफ्ट में बिजली से जुड़े उपकरणों और तारों का मेंटेनेंस

विभाग में भी मैनपावर की कमी

राजधानी रांची में कुल 4 फ ायर स्टेशन हैं, जो राजेंद्र चौक डोरंडा, ऑड्रे हाउस, पिस्का मोड़ और धुर्वा में मौजूद हैं। इन सभी फ ायर स्टेशनों पर मैन पावर की भी काफी कमी है। दरअसल कहीं भी आगलगी की घटना होने पर दमकल की गाड़ी में ड्राइवर के अलावा 3 फायरमैन के साथ जाने का नियम है। लेकिन मैनपावर की कमी इतनी ज्यादा है कि ड्राइवर के अलावा सिर्फ दो ही लोग घटनास्थल पर जा पाते हैं।